40 WPM Hindi Dictation for High Court & SSC Steno Exam POST 224
कुल शब्द
– 407
निवेशक
इसे प्रतिदिन की जरूरतों की खरीदारी को ऑटोमेटिक करने की दिशा में पहला कदम मानते
है। कई निर्माताओं ने एमाजॉन को अपने डिवाईस में शामिल कर लिया है। उदाहरण के लिए
जनरल इलेक्ट्रिक ऐसी वाशिंग मशीने बेचती है जो अपने डिटरजेंट स्वयं आर्डर कर सकती
है। बडे कन्ज्यूमर बेंड और एमाजॉन को ऐसी सेवाएं आकर्षित करती है। अगर कोई खरीदार
किसी आईटम को स्वयं आर्डर करता हैं तो वह अधिक वफादार होगा। कुछ बैंड्स के लिए
बटन बहुत अचछी तरह काम कर रहे है। उदाहरण के लिए अमेरिका में मैक्सवेल हाऊस काफी
के लिए अमेजॉन के लिए आधे से अधिक आर्डर डेश बटन से किए जाते है। अमेजॉन ने बताया
कि अमेरिका में हर मिनिट में दो से अधिक आर्डर डेश बटन से होते है लेकिन अमेजॉन
और बडे प्रोडक्ट बेंड शापिंग के नये दौर पर बहुत खुशिया मना सकती हैं। एमेजॉन ने
अपनी ऑटोमेटिक सर्विस के डेटा जारी नहीं किए हैं। आधुनिक विजनेस में सबसे आश्चर्य
जनक संघर्ष टेक्नॉलाजी के प्रति आशावादी और निराशावादी रूख रखने वालों के बीच हो
रहा है। पहले गुट का तर्क है कि विश्व टेक्नॉलाजी आधारित इनोवेशन के दौर में है।
टेक कंपनियों के सीईओं अपने पक्ष में विशेषणों का ढेर लगा देते है। विजनेस
प्रोफेसर कहते है जब मशीन बहुत अधिक बुद्धिमान हो जायेगी तब मनुष्य का क्या
होगा। निराशावादियों का कहना है कि कुछ कंपनियों की स्थिति अच्छी है पर अर्थव्यवस्था
तो स्थिर है। जार्ज मेशन यूनीवर्सिटी के टायलर कोबेन का कहना है, अमेरिका अर्थव्यवस्था
प्रारंभ में फायदा उठाने के बाद बीमार पड़ गई है। गार्डन तर्क देते है – दूसरी औद्योगिक
क्रांति के अविष्कारो बिजली मोटरकार, हवाई जहाज की तुलना में आईटी क्रांति ने
मामूली बदलाव किया है। फेडरिक एरिक्सन और जॉन व्हीगल लिखते है – गूगल, अमेजन
जैसे मुट्टी भर सितारों को छोड़ दे तो पूंजीबाद तेजी से बूढा हो रहा है। यूरोप की
100 सबसे कीमती कंपनिया चालीस वर्ष से अधिक पहले स्थापित हुई थी। अमेरिका भी
अधेड़ हो चुका है। कंपनियों का नेतृत्व अब साहसी पूंजीपतियों के हाथ में नहीं,
बल्कि बेनगार्ड ग्रुप जैसी विराट कंपनियों के पास है। अधिकतर बड़ी कंपनियां
कार्पोरेट अफसरसाह नियुक्त कर रही है। यूरोप के सीईओं केस जमा कर रहे है। अपनी
फर्मो के शेयर खरीदकर पूर्व प्रतिद्वंद्वियों के साथ विलय कर अपनी स्थिति मजबूत
बनाते है। धुधली तस्वीर का मामला कुछ हद तक सही हो सकता है पर पिछले बीस वर्षो
में जन्मी उबेर, गूगल और फेसबुक जैसी नई विशाल कंपनियों के प्रभाव को कम करके
नहीं आका।
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