Sunday 25 February 2018

80 WPM Hindi Shorthand Dictation (Legal) For Court & SSC Steno Typing Po...

80 WPM Hindi Shorthand Dictation For Court & SSC Typing

48 WPM Balram


हमारे बडे हमे प्राय: यह शिक्षा देते है कि हमे सदा ईमानदार रहना चाहिए। सत्‍य का आचरण करना चाहिए, सत्‍य का आचरण करना चाहिए, अपने कर्तप्‍य का पालन करना चाहिए तथा कमजोर व गरीबों की सहायता करनी चाहिए। वस्‍तुत: यह कुछ नैतिक मान्‍यताएं है जिन्‍हे हम अपनी जीवन के लिए बड़ा महत्‍वपूर्ण मानते आए है। तथा जिनके अधिकाधिक प्रचलन के लिए हम प्रयत्‍नशील रहे है हमारे द्वारा ऐसा किया जाने का कारण वस्‍तुत: यही रहा है कि हम इन नैतिक मान्‍यताओं को अपने जीवन को सुखमय बनाने का साधन मानते है और यह मानते है कि इसके बिना मानव जीवन विकृत व कष्‍टमय हो जाता है, परंतु इसके विपरीत संसार में जब हम देखते है कि असत्‍य, धोखाधड़ी तथा बेईमानी का जीवन जीने वाले दुखी नहीं उलटे सुखी है तो इस बात पर प्रश्‍न चिन्‍ह लग जाता है कि सत्‍य, कर्तव्‍य पालन तथा ईमानदारी आदि नैतिक मान्‍यताओं को हमें अपने अपने जीवन यापन का आधर बनाना चाहिए या नही क्‍योंकि अनुभव की बात यह है कि संसार में प्रत्‍येक व्‍यक्ति दिखाए के लिए तो सत्‍य सत्‍चरित्रता व ईमानदारी को अच्‍छा बताता है और यह कहता है कि यह हमारे जीवन के आधार होने चाहिए। परतु वास्‍तविक व्‍यवहार में असंख्‍य लोग इन आदर्शो को तिलांजली देते दिखाई दते है है। जब वे यह देखते है कि इन पर चलने से जीवन की वास्‍तविक समस्‍याए हल नहीं होती तथा  इनकी परवाह ना करने वाले लोग दुनिया में अधिक सुखमय जीवन बिताते है।
            सच्‍चाई व ईमानदारी को अधिकांश लोग क्‍यों नहीं अपनाते, इस प्रसंग में बेईमानी व ईमानदारी से संबंधित एक कहानी बड़ी प्रसांगिक है। कहा जाता है कि एक बार ईमानदारी व बेईमानी किसी नदी में स्‍नान करने गई। स्‍नान के लिए अपने अपने कपड़े उतार कर उन दोनो ने देर तक डुबकी लगाए रखने की होड़ के साथ नदी में डुबकी लगाई। बेईमानी अपनी प्रबृत्ति के कारण जल्‍दी पानी से बाहर निकल आई और ईमानदारी के कपड़े स्‍वयं पहन कर वहां से चली गई। ईमानदारी जब बाद मे पानी से बाहर  आई और नदी के किनारे अपने कपड़ो को नहीं पाया , तो वह असंमजस में पड़ गई क्‍योंकि बेईमानी के कपडे पहन कर वह अपने को बेईमान नहीं बनाना चाहती थी । ऐसी स्थिति में उसने निवस्‍त्र रहना ही अच्‍छा समझा। कहा जाता है कि तब से ईमानदारी बिना वस्‍त्र की है और उसके कपड़ो को बेईमानी ने पहन रखा है। परिणामस्‍वरूप लोग जो नंगेपन से बचना चाहते है। ईमानदारी के वस्‍त्र पहनने वाली ईमानदारी को अपना लेते है और जब तक उन्‍हे ईमानदारी की वास्‍तविकता की पहचान हो पाती है वे उसी के अभयस्‍थ होकर रह जाते है क्‍योंकि उसके सहारे लोगो की अनेक समस्‍याए सरलता से हल हो जाती है। कहानी के अनुसार यही कारण है कि ईमनदारी दुनिया में अकेली पड़ गई है और उसके अपनाने वाले बहुत कम लोग है, जबकि बेईमानी को अपनाने वाले और उसके साथ रहने वाले लोग असंख्‍य है और

Saturday 24 February 2018

45 WPM HINDI DICTATION




उच्‍चतम न्‍यायालय ने अभिनिर्धारित किया कि ब्रिटेन में होने वाला नियम की क्राउन तब तक किसी कानून द्वारा बाध्‍य नहीं है जब तक स्‍पष्‍टत: अथवा आवश्‍यक विवक्षित तौर पर उस कानून ने उसे बाध्‍य ना किया हो, अभी भी भारत मे लागू है। इसके परिवर्तन केवल यह है कि क्राउन अथवा राज्‍य के स्‍थान पर हमारे संविधान के अनुसार राज्‍य की कार्यपालक सरकार का नाम लिया जायेगा। उच्‍चतम न्‍यायालय ने स्‍पष्‍ट किया कि राज्‍य कानून द्वारा बाध्‍य नहीं है जब तक कि ऐसा स्‍पष्‍टत: अथवा आवश्‍यक विवक्षित तौर पर द,ष्टिगोचक ना हो। इस नियम को लागू करने में प्रत्‍यक्ष रूप से यह आवश्‍यक है कि न्‍यायालय विधायिका के आशय को याद करने का प्रयास कानून के सभी सुसंगत उपबंधों को साथ लेकर करे और केवल एक विशिष्‍अ उपबंध पर ही, जिसके बारे में पक्षकारों में विवाद हो, ध्‍यान ना केन्‍द्रित रखे। इस विवादास्‍पद प्रश्‍न पर विचार करते समय कभी-कभी यह जांच करना भी आवश्‍यक हो जाता है कि क्‍या यह निष्‍कर्ष, कि किसी कानून के विशिष्‍ट उपबंधो द्वारा राज्‍य बाध्‍य नहीं है। उस कानून की कार्य कुशलता पर रोक लगाएगा।अथवा इस असमान्‍यता स्थिति पर पहुचाएगा कि वह कानून अपनी उपयोगिता खो दे। और यदि इन दोनो में से किसी प्रश्‍न का उत्‍तर यह दर्शाए कि उस कानून के द्वारा आरोपित दायित्‍व राज्‍य के विरूद्ध लागू किया जाना चाहिए, तो न्‍यायालय आवश्‍यक विवक्षित तौर पर यह निष्‍कर्ष निकालने के लिए राज्‍य कानून द्वारा बाध्‍य है, बल्कि यह है कि वह एक कानून का लाभ ले सकता है अथवा नहीं तो अर्थान्‍वयन के उसी सिद्धांत को लागू किया जा सकता है। ऐसा आभास होता है कि उपयुक्‍त मामले तक उच्‍चतम न्‍यालय अंग्रेजी अवधारणा कि काध्‍य किसी कानून द्वारा तब तक बाध्‍य नहीं होगा जब तक वह कानून स्‍पष्‍टत: अथवा आवश्‍यक विवक्षित तौर पर ऐसा ना कह दे। वो मानता रहाता है। परंतु निम्‍नलिखित मामलों में ऐसा दृष्टिगोचर होता है कि उच्‍चतम न्‍यायालय की अभिवक्ति में अचानक परिवर्तन आया और धारणा उपर्युक्‍त के विपरीत हो गई। उच्‍चतम न्‍यायालय का अब कथन यही है कि किसी कानून के द्वारा साध्‍य उतना ही बाध्‍य है जितना की कोई और, केवल उस समय को छोडकर जब कोई कानून स्‍वयं की स्‍पष्‍टत: अथवा विवक्षित तौर पर यह स्‍पष्‍ट करते है कि राज्‍य बाध्‍य नहीं है।
         पश्चिम बंगाल राज्‍य बनाम भारत संघ में उच्‍चतम न्‍यायालय के बहुमत के न्‍यायधीशों ने कहा कि यह नियम कि राज्‍य तब तक बाध्‍य नहीं है जब तक उस कानून में स्‍पष्‍टत: अथवा विवक्षित तौर पर ऐसा ना उल्लिखित हो। विधायिका द्वारा प्रयुक्‍त शब्‍दों अथवा अभिव्‍यक्तियों के वास्‍तवविक अर्थ को  समझने के लिए न्‍यायालय को कानून के संपूर्ण रूप को पड़ते हुए उसके लक्ष्‍य उद्देश्‍य और परिधि का ध्‍यान रखना आवश्‍यक है। न्‍यायालय को विधायिका का आशय ज्ञात करने के लिए अर्थान्‍वयन किए जाने वाले खण्‍डों की तुलना करनी चाहिए।

Sunday 18 February 2018

Thursday 15 February 2018

Hindi Story 131


कुल 404
समय 10 मिनिट

किसी जमाने में एक चोर था। वह बड़ा ही चतुर था। एक दिन उस चोर ने सोचा कि जब तब वह राजधानी में नहीं जायेगा और अपना कोई कर्तव्‍ य नहीं सिखायेगा तब तक चोरों कें बीच उसकी धाक नहीं जमेगी। ऐसा सोच वह राजधानी चला गया। और जाते ही पूरे नगर  का चक्‍कर लगाया उसने तय किया कि राजा के महल के वह अपना काम शुरू करेगा। राजा ने रात दिन महल की रखवाली के लिए बहुत से सिपाही तैनात कर रखे थे । बिना पकड़ें गये परिंदा भी महल में नहीं घुस सकता था। महल में एक बहुत बड़ी  घड़ी थी लगी थी जो पूरे दिन के हर घंटे बजती थी। इसी घड़ी की मदद से चोर ने राजा के महल में घुसने की  तरकीब निकाली उसने लोहे की कुछ  कीले ली और जब रात को घड़ी में बारह बजाए तो घंटे की हर आवाज  के साथ वह महल की दीवार में एकाएक कील थोकता गया इस तरह बिना शोर किए  उसने दीवार में बारह कीले लगा दी फिर उन्‍हे पकड़ पकड़ कर  वह उपर चड़ गया और महल में  दाखिल हो गया। इसके साथ उसने महल में से बहुत से हीरे चुरा लिये। अ‍गले दिन जब चोरी का पता  लगा तो राजा ने अपने मंत्रियों को आदेश दिया कि शहर की सड़को पर गश्‍त करने के लिए सिपाहियों की संख्‍या दुगनी कर दी जाये।  यह भी कहा  गया कि अगर कोई भी रात को घूमता हुआ  पाया गया तो उसे चोर समझ  कर पकड़ लिया जायेगा। जिस समय दरबार में यह एलान हो रहा था एक नागरिक के भेष में चोर मौजूद था उसे सारी योजना पता चल गई उसे यह भी मालूम हो गया कि वह कौन से कस सिपाही  है  जिन्‍हे गश्‍त के लिए चुना गया है तभी उसने साधु का रूप धारण किया और उन सभी सिपाहियों की बीबीओं से जाकर मिला। उनमें हर एक महिला बात के लिए उत्‍सुक थी कि उसका पति ही चोर को पकड़े और राजा से इनाम ले उसने एक एक सभी औरतो से  कहा  कि  उसके पति की  पोशाक में चोर उसके घर आयेगा लेकिन उसे अपने घर से    अन्‍दर मत आने देना नहीं तो वह तुम्‍हें दबोच लेगा। घर के सारे  दरवाजे बंद कर लेना और भले ही  वह पति की आवाज में बोलता सुनाई दे उसके उपर जलता कोयला फेकना। सभी औरतों ने ऐसा ही किया और फल यह हुआ  कि सिपाहीं जल गये और उन्‍हें अस्‍पताल ले जाया गया।


Hindi Dictation High Court Typing : 47 WPM - 45 WPM


कुल 472
समय 10 मिनिट

प्रतिदावा को मात्र धन के बाद में स्‍वीकार किया जा सकता है, कब्‍जा एवं स्‍वामित्‍व के बाद में नहीं। इसी सिद्धांत को जसबंत सिह बनाम दर्शन कुमार एआईआर 1983 पटना के वाद में विरोधी दृष्टिकोण को अपनाया और अभिधारित किया कि प्रतिदावा धन-संबंधी वाद तक ही सीमित नहीं है। मुजरा और प्रतिदावा में भिन्‍यता है। मुजरा वादी के विरूद्ध प्रतिदावा है। किंतु प्रतिवादी जब प्रतिदावा पेश करता है तो वह  प्रतिवाद होता है। 
         यही दृष्टिकोण पंजाब एवं हरियाणा उच्‍च  न्‍यायालय ने सुमन कुमार बनाम सेंट थॉमस स्‍कूल एआईआर 1988 पंजाब एवं हरियाणा 39, के बाद में अपनाया। अभिनिर्णीत किया कि प्रतिवादी किसी भी प्रकार के वाद में प्रतिदावा प्रस्‍तुत कर सकता है। आवश्‍यक नहीं कि ऐसा वाद धन संबंधी हो।
         किंतु, उड़ीसा उच्‍च न्‍यायालय ने इस मत का समर्थन किया। मेसर्स रामसेवक बनाम सरफुद्दीन एआईआर 1991 उड़ीसा 51, के वाद में अभिधारित किया कि प्रतिवादी उन वादों में भी संभंव है जो धन-संबंधी नहीं है।
         बंबई उच्‍च न्‍यायालय ने एमएफ कटारिया बनाम एचएफ कटारिया एआईआर 1994 बाम्‍बे 198, के वाद में इस मत को स्‍वीकार किया कि प्रतिदावा आदेश 8, नियम 6-क‍, के अंतर्गत्‍ धन संबंधी बाद तक ही सीमित  नहीं है।
         प्रतिवाद पत्र में यह अभिवाक् नहीं किया गया था कि प्रतिवादी बीमार यूनिट था और वादी कोई धनराशि बसूल नहीं  कर सकता था। संशोधना प्रार्थना पत्र द्वारा यह अभिवाक् किया जाना था कि प्रतिवादी बीमार यूनिट था और बीमारी के दौरान के समय का ब्‍याज नहीं लगाया जा सकता।
         यह ऐसा अभिवाक् नहीं है जिससे बादी के बाद पर कोई प्रभाव डाले। ना तो साक्ष्‍य ही पेश किए गऐ थे ना ही निश्चित किये गए थे। प्रतिवादी बीमार यूनिट था अथवा  नहीं यह तभी अनिश्चित किया जा सकता है जब ऐसा  अभिवाक् करने की अनुमति प्रदान कर दी जाती है। इस स्‍तर पर यदि अभिवाक् करने की अनुमति प्रदान कर दी जाती है तो  वादी के वाद पर कुप्रभाव नहीं पड़ेगा। (मेसर्स जे एस टिन्‍स फेब्रीकेशन बनाम यूको बैंक)
         आदेश 8 नियम 1 का उपनियम 1, न्‍यायालय को शक्ति प्रदान करता है कि वह प्रतिवादी को जबाव दावा दाखिल करने के लिए न्‍यायोचित समय प्रदान करे। प्रत्‍येक मामले के तथ्‍यों एवं परिस्थियिातें के आधार पर न्‍यायालय जबाव दावा दायर करने का समय प्रदान करता है, किंतु प्रतिवादी अधिकार के रूप में जबाव दावा दाखिल करने के कर्इ अवसर की मांग  नहीं कर सकता।
         अस्‍थाई निषेधाज्ञा आदेश पारित करने के पूर्व किसी भी समय प्रतिवादी से जबावदावा दाखिल करने हेतु कह सकता  है। ऐसे मामले में वादी को अधिकार  प्राप्‍त हो जाता है कि अस्‍थाई निषेधाज्ञा प्राप्‍त करने हेतु प्रति जबाव दावा दाखिल करे। यह  अधिकार उसे आदेश 8 नियम 9 के तहत प्राप्‍त होता है यद्धपि आदेश 8 नियम 10 कें अंतर्गत्‍ प्रार्थना नहीं की जा सकती। किंतु धारा 151 के अंतर्गत प्राप्‍त शक्ति का  प्रयोग करते हुए प्रार्थना पत्र न्‍यायालय द्वारा स्‍वीकार किया जा सकता ।

45 WPM Hindi Dictation for High Court, SSC, CRPF, Railways, LDC Exam Post-279


कुल 451
समय 10 मिनिट

 भ्रष्‍टाचार की परिभाषा करते हुए इलियट तथा मेरिल ने लिखा है कि ‘प्रत्‍यक्ष अथवा अप्रत्‍यक्ष लाभ प्राप्ति के हेतु जानबूझकर निश्चित कर्तव्‍य ना करना ही भ्रष्‍टाचार है’ । दूसरे शब्‍दों में हम यह कह सकते है कि भ्रष्‍टाचार का अर्थ अनुचित लाभ है जहां अनुचित साधनों को अपनाकर लाभ प्राप्‍त किया जाये, वहीं भ्रष्‍टाचार है। भ्रष्‍टाचार में कर्तव्‍य का उल्‍लंघन किया जाता है यह उल्‍लघंन जानबूझकर किया जाता है। कर्तव्‍य के इस उल्‍लंघन से व्‍यक्ति को प्रत्‍यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप्‍ से कोई निश्चित लाभ होता है इस  प्रकार हम कह सकते है कि जहां कही भी रूपये पैसे के लिए पद प्राप्‍त करने के लिए या सम्‍पत्ति हड़पने के लिए अथवा अन्‍य किसी लाभ के लिए जानबूझकर  कर्तव्‍य का उल्‍लंघन किया जाये, वहीं भ्रष्‍टाचार है।
         भ्रष्‍टाचारी व्‍यक्ति सदैव सेवा और सहयोग की भावना को नाटकीय ढंग से उपस्थिति करता है। परंतु यथार्थ में वे इन भावनाओं से दूर रहते है। समाज के सार्वजनिक जीवन में होने वाले भ्रष्‍टाचार को स्‍पष्‍ट करते हुए एक विद्यवान ने लिखा है ‘सभ्रांत कहे जाने वाले व्‍यक्ति जो सार्वजनिक हितों को त्‍यागकर व्‍यक्तिगत स्‍वार्थो को प्रधानता देने लगते है, वे अनुचित लाभों के उपयोग की आशा में   समाज एवं कानून विरोधी साधन अपनाते है तो उसे सार्वजनिक जीवन में भ्रष्‍टाचार कहते है।
         सार्वजनिक जीवन में होने वाले भ्रष्‍टाचार का क्षेत्र अत्‍यंत व्‍यापक है। इस भ्रष्‍टाचार में दो बाते है पहली शक्त्‍ि का दुर्पयोग और दूसरी इस दुर्पयोग से प्राप्‍त हेाने वाले किसी लाभ की आशा। आधुनिक युग में   यह देानों की   बाते बड़े व्‍यापक रूप में  देखने को मिल रही है। अशिक्षित व्‍यक्तियों को जाने दीजिए। शिक्षित व्‍यक्त्‍ि भी अपने तुच्‍य स्‍वार्थ  के लिए दूसरे का बड़ा से बड़ा  नुकसान करने में नहीं हिचकिचाते। बड़े बड़े इंजीनियर ठेकेदारों से धन लेकर ऐसी इमारतों को पास कर देते है जो कुछ ही बर्षो में गिर जाती है। कभी  कभी तो एसी इमारतों के लिए भी धन स्‍वीकृत किया  जाता जिनका कभी निर्माण ही नहीं होता। इस प्रकार विभागों द्वारा   खरीदने जाने वाले सामान में ऐसा सामान लिया जाता है जो व्र्‍य‍थ का होता है  यह भ्रष्‍टाचार किसी क्षेत्र विशेष तक सीमित ना होकर सार्वजनिक जीवन में प्रत्‍येक क्षेत्र तक है इससे देश का करोड़ों रूपया बर्बाद होता है।
         आधुनिक युग में सर्वत्र इसी भ्रष्‍टाचार का बोलवाला है। रॉक ने ऐसे भ्रष्‍टाचारी  व्‍यक्तियों के लिए लिखा है कि वे समाज में नैतिकता का गला घोटते है और अविश्‍वास की भावना को प्रोत्‍साहन देकर सामाजिक विघटन की स्थिति उत्‍पन्‍न करते है। हमारे जनजीवन का कोई भी क्षेत्र ऐसा नही है जहां भ्रष्‍टाचार का यह रूप देखने को ना मिलता हो। हमने पहले ही इस बात का उल्‍लेख किया है कि भारत में लोक-जीवन में भ्रष्‍टाचार अत्‍याधिक व्‍यापक मात्रा में देखने को मिलता है।

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कुल 486
समय 10 मिनिट

जब पुलिस परिवादी की सही रिपोर्ट नहीं लिख रही है तब न्‍यायालय परिवादी की रिपोर्ट को एफआईआर के रूप में लिखने का आदेश दे सकता है (इस मामले में परिवादी अपनी बहन की हत्‍या की रिपोर्ट लिखाना चाहता था  परंतु पुलिस इसे इसे आत्‍महत्‍या का मामला बता रही थी) अपराध की क्रूरता के आधार पर इसे दो भागों में बांटा गया है – (अ) संज्ञेय अपराध तथा (ब) असंज्ञेय अपराध।
असंज्ञेय अपराध की सूचना दर्ज कराने के संदर्भ में दण्‍ड प्रक्रिया संहिता 1976 की धारा 155 में उपबंधित किया गया है, जो निम्‍नवत है, जब पुलिस थाने के भारसाधक अधिकारी को उस थाने की सीमाओं कें अंदर असंज्ञेय अपराध की किये जाने की इत्तिला की जाती है तब वह ऐसी इत्तिला का तार ऐसी पुस्‍तक में जो ऐसे अधिकारी द्वारा ऐसे प्रारूप में रखी जायेगी जो राज्‍य सरकार इस निमित्‍य विहित करे, प्रवित्‍त करेगा या प्रवित्‍त करायेगा और इत्तिला देने वालो को मजिस्‍ट्रेट के पास जाने को निर्देशित करेगा।
         जब पुलिस अधिकारी किसी असंज्ञेय मामले का अन्‍वेषण ऐसे  मजिस्‍ट्रेट के आदेश के बिना नहीं करेगा जिसे ऐसे मामले का विचारण करने की या मामले को विचारार्थ सुपुर्द करने की शक्त है कोई पुलिस अधिकारी ऐसेा आादेश मिलने पर (वारंट के बिना गिरफतारी करने के सिवाय) अन्‍वेषय के बारे में वैसी की शक्तियों का प्रयोग कर सकता है, जैसी पुलिस थाने का भारसाधक अधिकार संज्ञेय मामले में कर सकता है।
         जहां मामले का संबंध ऐसे  दो या अधिक अपराधों से है, जिनमें से कम से कम एक संज्ञेय  है वहां इस बात के होते हुए भी कि अन्‍य अपराध अंसज्ञेय है  वह मामला असंज्ञेय मामला समझा जायेगा।
         विस्‍तार व क्षेत्र – धारा 155 की उपधारा 1 में पुलिस द्वारा असंज्ञेय अपराध की सूचना लिखने की प्रक्रिया बताई गई है। यह प्रक्रिया संज्ञेय अपराध की सूचना लिखने की प्रक्रिया से भिन्‍न है। असंज्ञेय अपराध की सूचना का केवल सार लिखा जाता है यह सार थाने का भारसाधक अधिकारी राज्‍य सरकार द्वारा निमित्‍य रजिस्‍टर में स्‍वयं  लिख सकता है या अपने किसी कर्मचारी से लिखा सकता है। आम बोलचाल की भाषा में इस रजिस्‍टर को गैर दस्‍तनदाजी चिक रजिस्‍टर कहते है।  सूचना का सार लिखने के बाद थाने का भारसाधक अधिकारी सूचना देने वाले को संबंधित मजिस्‍ट्रेट के पास  परिवाद दाखिल करने या उससे पुलिस के नाम  अन्‍वेषण का आदेश प्राप्‍त करने को कहेगा। थाने का भारसाधक अधिकारी स्‍वयं भी मजिस्‍ट्रेट से अन्‍वेषण का आदेश प्राप्‍त कर सकता है।
         असंज्ञेय अपराध की सूचना केवल उस थाने के  भारसाधक अधिकारी को दी जा सकती है जिस थाने की सीमाओं  के अंदर ऐसे अंसज्ञेय अपराध का होना  पाया जाता है। संज्ञेय अपराध की सूचना पर यह बंधन नहीं है। संज्ञेय  अपराध की सूचना किसी भी थाने के  भारसाधक अधिकारी को दी जा सकती है, चाहे संज्ञेय अपराध उस भारसाधक अधिकारी के क्षेत्र में ना हुआ हो, इसको ऐसी सूचना दी जा रही है। यदि एफआईआर का कार्य डेली डायरी में नही दर्ज किया गया है, और ना इस डायरी में

Tuesday 13 February 2018

Legal Dictation in Hindi | 40 WPM | Hindi Typing | For SSC steno dictation | Mater Link | Post-125


कुल 480
समय 11 मिनिट 30 सेकेंड

Legal Dictation in Hindi | 40 WPM | Hindi Typing | For SSC steno dictation | Mater Link | Post-125

धारा 31 प्रतिलिप्‍याधिकार बोर्ड बोर्ड को किसी प्रति के पुन: प्रकाशन के लिए अनिवार्य अनुज्ञप्ति देने की शक्ति प्रदान करती है, बोर्ड ऐसी अनिवार्य अनुज्ञप्ति तब दे सकता है जब परिवाद ऐसी भारतीय कृति से संबंधित हो जो या तो प्रकाशित की जा चुकी हो या सार्वजनिक रूप से प्रस्‍तुत की जा चुकी हो परिवाद प्रतिलिप्‍याधिकार की अवधि के दौरान किया गया हो, परिवाद निम्‍नलिखित में से किसी बात से  संबंधित हो। प्रतिलिप्‍याधिकार के स्‍वामी ने कृति को पुन: प्रकाशित करने या पुन: प्रकाशन के अनुज्ञा देने से इंकार कर दिया हो प्रतिलिप्‍याधिकार के स्‍वामी ने उस कृति को सार्वजनिक रूप से प्रस्‍तुत करने की अनुज्ञा देने से इंकार कर दिया है और जिससे वह कृति जनता से रोक ली गई हो या प्रतिलिप्‍याधिकार के स्‍वामी ने ऐसी कृति को या रिकार्ड की दशा में ऐसे रिकार्ड में ध्‍वनंकित कृति को उन शर्तो पर जिन्‍हे परिवादी युक्तियुक्‍त्‍ समझता है, प्रसारण द्वारा सार्वजनिक रूप से संसूचित करने से इंकार कर दिया हो, बोर्ड ने प्रतिलिप्‍याधिकार के स्‍वामी को युक्तियुक्‍त्‍ सुनवाई का अवसर दिया हो, बोर्ड की राय ने प्रतिलिप्‍याधिकार के स्‍वामी के इंकारी के आधार युक्यिुक्‍त्‍ ना हो।    
         यहां यह उल्‍लेखनीय है कि बोर्ड के निर्देशानुसार परिवादी द्वारा निर्धारित फीस दिए जाने के पश्‍चात अनुज्ञा प्रदान करेगा।
         म्‍यूजिक च्‍वाइस इंडिया प्राईवेट लिमिटेड न्‍यू डेल्‍ही बनाम फोटोग्राफिक लिमिटेड मुबंई के मामले में बाम्‍बे कोर्ट ने धारा 3116 का निर्वचन करते हएु स्पष्‍ट यिका है कि अनिवार्य अनज्ञप्ति प्रदान करने की शक्ति प्रतिलिप्‍याािका बोर्ड में निहित है अत/ उक्‍त्‍ उपचार को सिविल वाद के माध्‍यम से मांगना पोषणीय नहीं है अत: अनिवार्य अज्ञप्ति की अनुमति प्रदान करने की शक्त्‍ि केवल प्रतिलिप्‍याधिकार बोर्ड के द्वारा ही दी जा सकती है। इसी प्रकार पुन: प्रकाशन की अनुज्ञा के लिए जहां परिवाद दो या अधिक व्‍यक्तितयों द्वारा किया गया है वहां  पुन: प्रकाशन की अनुज्ञप्ति उस परिवादी को अनुदत्‍त की जायेगी जिसके बारे में बोर्ड की यह राय है कि वह साधारण जनता के हितों की सर्वोत्‍म सेवा करेगा।
         अप्रकाशित भारतीय कृतियों कें प्रकाशन की अनिवार्य अनुज्ञप्ति देने के बारे में धारा 31 क निम्‍नलिखित उपबंध करती है। जहां धारा 2 के खंड 1 के उपखंड 3 में निर्दिष्‍ट किसी भारतीय कृति की दशा में रचियता की मृत्‍यु हो गई है या वह अज्ञात है या उसकी खोज नहीं की जा सकती है या ऐसी कृति में प्रतिलिप्‍याधिकार के स्‍वामी का पता नहीं लग सकता है वहां कोई भ्‍ज्ञी व्‍यक्ति ऐसी कृ‍ति या किसी भाषा में उसका भांषातर प्रकाशित करने की अनुज्ञप्ति के लिए प्रतिलिप्‍याधिकार बोर्ड को आवेदन कर सकेगा। उपधारा 1 के अधीन कोई आवेदन करने के पूर्व  आवेदक अपना प्रस्‍ताव देश के बृहद भाग में परिचालित अंग्रेजी भाषा के किसी दैनिक समाचार-पत्र के एक अंक में प्रकाशित करेगा और जहां आवेदन किसी भाषा में किसी भांषातर के प्रकाशन के लिए वहां उस भाषा के किसी दैनिक समाचार पत्र के एक अंक में भी प्रकाशित करेगा।

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कुल 483
समय 12 मिनिट


राजकीय तथा सामाजिक संस्‍थाए भी परोक्ष रूप से अपराध की दर को भावित करती है। विधि के प्रवर्तन में शिथिलता अपराध का एक कारण है यदि राजकीय संस्‍थानों द्वारा  विधि का परचिालन कठोरता से किया जाये तेा अपराध की दर गिर जाती है इसके विपरीत यदि विधि के क्रियान्‍वयन में शिथिलता आ जाये, तो अपराध की दर बढ़ जाती है। राजनीतिक संस्‍थाए निम्‍न प्रकार से अपराध की दर को प्रभावित करती है।
         राजनीतिक संस्‍थाए, उच्‍च आर्थिक स्थिति के ऐसे व्‍यक्तियों द्वारा प्रभावित रहती है जो अनुचित तरीको से धन कमाते है। यथा मुनाफाखोरी टेक्‍सों से बचाव श्रमिकों का शोषण आदि, ऐसे व्‍यक्ति राजनीतिक संस्‍थाओं की आड़ में सुरक्षित रहते है राजनीतिक संस्‍थाए पुलिस पर भी प्रभाव डालती है। फलस्‍वरूप राजनीतिक संस्‍थाओं से संबद्ध अपराधी, कानून की पकड़ से बंचित रहते है।
         अधिकांश स्‍वेत बंसत अपराध राजनीतिक संस्‍थाओं की आड़ में संभव होते है। ऐसे अपराधी राजनीतिक संस्‍थाओं की आर्थिक सहायता देते है और अनुचित तरीको से धन एकत्र करते है।
         इसी प्रकार सामाजिक संस्‍थाए भी जिनमें धर्म, रीति रिवाज आदि मुख्‍य है अपराध की दर को प्रभावित करती है अपराध की दर को धर्म तथा रीति रिवाज निम्‍न प्रकार से प्रभावित करते है
धार्मिक संस्‍थाए अपने अनुसार रूप में अनुयायियेां को धर्मांध बना देती है, उनमें अन्‍य धर्मो में प्रति, सहनशीलता और आदर की भावना समाप्‍त हो जाती है। फलस्‍वरूप धार्मिक मतभेद साम्‍प्रदायिक विवदो में बृद्धि करते है। उग्र रूप में धार्मिक मतभेद, हिसा का रूप धारण करते है फलस्‍वरूप अपराध की दर बढ़ती है। इसी प्रकार अनेक समाजो में ऐसे रीति रिवाज प्रचलित रहते है जिनमें हत्‍या को शौर्य का प्रतीक माना जाता है उदाहरण के लिए आदिवासी समाजों में सिरोच्‍छेद की प्रथा प्रचलित है इस प्रकार के रीति रिवाज अपराध में बृद्धि करते है अपराध के प्रचार और प्रसार की दृष्टि से ंसचार में लोकअभिकरणों का विशेष स्‍थान है। अपराध की दर को प्रभावित करने दृष्टि से इनमें निम्‍न उल्‍लेखनीय है। समाचार पत्र निम्‍न प्रकार से अपराध के प्रसार में योग देते है। समाचार पत्रो में अपराध संबंधी सूचनाएं प्रकाशित होती है। यथा चोरी डकैती और हत्‍या की घटनाए इस प्रकार की  घटनाओं में अपराधी प्रकृति के लोगों में अपराध के प्रति झुकाव बढ़ता है। अपराध संबंधी सूचनाओं के प्रसार से अपराध लोगों को एक सामान्‍य व्‍यवहार की भांति प्रतीत होने लगता है।  यदि  न्‍यायालयों द्वारा अपराधियों को मिलने वाले दण्‍ड की सूचना प्रकाशित हो, तो लोग अपराधी व्‍यवहार को भय की दृष्टि से देखते है।
समाचार पत्र विख्‍यात अपराधियों को पकड़ने से संबंधित योजनाओं का भी विवरण प्रकाशित करते है इससे अन्‍य अपराधी सजग हेा जाते है और अपने बचाव की तेयारी कर लेते है।
         चलचित्र लोगो के समक्ष जीवन के ऐसे स्‍वरूप को पेश करते है जिससे यथार्थ का बहुत कम संबंध होता है। कुछ चलचिद्धो में चोरी डकैती मारपीट की चमत्‍कारिक विधिया भी दर्शायी जाती है शान शौकत आकर्षक भेषभूषा चलचित्रों कें पमुख पक्ष होते है जिसका सामान्‍य दर्शकों पर

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70 WPM

चेयरमेन साहब मैं आपसे कहना चाहता हूँ कि हम लोग देख रहे है कि गरीबी सबके लिए नहीं है कुछ लोग तो देश में इस तरह से पनप रहे है‍ कि उनकी संपत...