Saturday 28 April 2018

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जहां तक अपीलार्थी के विद्यवान अधिवक्‍ता द्वारा उठाये गये दूसरे बिंदु का प्रश्‍न है, इस संबंध में यह कहना उचित होगा कि जो कपड़ा मृतिका मौसमी पहने हुई थी, उस पर मानव का खून लगा पाया गया। उन कपड़ों को पुलिस ने शील करके अन्‍य वस्‍तुओं के साथ विधि विज्ञान प्रयोगशाला को भेजा था। शव के विच्‍छेद के समय मृतिका के दो भागों पर अन्‍य प्रकार की स्‍लाईट बनाई गई थी और उन्‍हे विधि विज्ञान प्रयोगशाला को भेजा गया था। यद्धपि दण्‍ड प्रक्रिया संहिता की धारा 342 के अधीन अभियुक्‍त द्वारा किए गए कथन का मजिस्‍ट्रेट या पीठासीन अधिकारी द्वारा प्रमाणन ना किया जाना एक अनियमितता हो सकती है, यह किसी भी प्रकार से विचारण को स्‍वत: दूषित नहीं करती। अब यह सुस्‍थापित विधि है कि आरोप विरचित करने में कोई लोप भी विचारण को दूषित नहीं करेगा। जब तक कि उसे अभियुक्‍त को उससे कोई नुकसान नहीं पहुंचाता हो। यह भी सुस्‍थापित है कि यदि प्रारंभिक प्रकम पर इस आशय का कोई आक्षेप ना किया गया हो तो वाद में अपील या पुनरीक्षण के प्रकरण पर जब तक आवेदक तथ्‍यों के आधार पर न्‍यायालय का यह समाधान ना कर दे कि उसके साथ अन्‍याय हुआ है, ऐसा कोई लोप कार्यवाही को दूषित करने का प्रभाव नहीं रख सकता है।
      आवेदक के विरूद्ध श्री दुबे ने यह भी दलील दी थी कि अभियुक्‍त ने विचारण समय में न्‍यायालय के समक्ष स्‍वयं के दोषी होने का अभिवाक् करते हुए उक्‍त कथन नहीं किया था, अपितु विद्यवान विचारण न्‍यायालय ने सादे कागज पर उसके हस्‍ताक्षर ले लिए थे। इस प्रकार की दलील दिया जाना अनुज्ञात नहीं किया जा सकता। विधि की यह उपधारणा है कि ऐसे सभी कार्य को जो विधि के अनुसरण में किया जाना अपेक्षित है, विधि द्वारा विहित प्रक्रिया का अनुसरण करते हुए किए जाते है। जब तक अन्‍यथा की स्थिति साबित ना की जाये, आवेदक द्वारा यह हमेशा उपदर्शित किया जाता है कि अभिलेख पर तत्‍समय ऐसी कोई भी साम्राग्री पेश नहीं की गई थी जिससे किसी के हस्‍ताक्षर का मिलान किया जा सके।

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विचारण न्‍यायालय के अभिलेख में संलग्‍न आरोप पत्र के अवलोकन से यह स्‍पष्‍ट है कि लिपिकीय त्रुटि के कारण आरोप पत्र में अभियुक्‍त पर धारा 25 वी आयुध अधिनियम का आरोप विरचित किया गया है जबकि अभियुक्‍त के आधिपत्‍य से जैसा कि अभियोजन पक्ष कथन से स्‍पष्‍ट है, देशी कट्टा और दो जिंदा कारतूस बरामद किए गए थे, जो अग्‍नायुध आयुध है। अभिप्राय यह है कि अभ्यिुक्‍त पर धारा 25 ए आयुध अधिनियम के अंतर्गत आरोप पत्र विरचित किया जाना चाहिए था। इस बिंदु पर अपील ज्ञापन में कोई आपत्ति नहीं की गई है और साथ ही साथ अभियोजन साक्षीगण का कूट परीक्षण करते हुए बचाव पक्ष को इस बात का पूर्णत: भान रहा है कि उस पर अग्‍नायुध जप्‍ती का आरोप रहा है और उसने इसी आरोप के संदर्भ में अपना बचाव किया है। अत: उक्‍त तकनीकि या लिपीकीय त्रुटि की    उपेक्षा किया जाना ही उचित होगा।
      प्रकरण में प्रस्‍तुत की गई संपूर्ण साक्ष्‍य को दृष्टिगत रख्‍ते हुए अभियोजन अभियुक्‍त युक्तियुक्‍त संदेश से परे धारा 25ए आयुध अधिनियम के अंतर्गत दण्‍डनीय अपराध का आरोप स्‍थापित करने में     पूर्णत: सफल रहा है। विचारण न्‍यायालय के  निष्‍कर्ष उचित  और वैधानिक है और उनमें हस्‍तक्षेप किए जाने की  कोई औचित्‍यता या आवश्‍यकता प्रकट नहीं होती है। अपील ज्ञापन में ली गई आपत्तियां स्‍वीकार किए जाने     योग्‍य नहीं है। बचाव पक्ष को उनके द्वारा प्रस्‍तुत किए गए न्‍याय द्ष्‍टांतो से कोई लाभ नहीं मिलता।फ इस अपराध के आरोप में अभियुक्‍त को दोषसिद्ध कर विचारण मजिस्‍ट्रेट ने कोई त्रुटि नहीं की है। विचारण मजिस्‍ट्रेट द्वारा किया गया दण्‍ड भी समानुपातिक है और अत्‍याधिक नहीं है। अभियुक्‍त को न्‍यूनतम दण्‍ड से  दण्डित किया गया है। दण्‍डाज्ञा भ्‍ज्ञी हस्‍तक्षेप अयोग्‍य है। यह दाण्डिक अपील सारहीन और निरर्थक होने से खारिज किए जाने योग्‍य है। नि:संदेह यह सत्‍य है कि संहिता के अध्‍याय 7 के अंतर्गत आने वाली किसी भी धारा में आतंकवादी क्रियाकलाप या अंतर्राष्‍ट्रीय अपराध या ऐसा अपराध, जिसके अंतर्गत मुद्रा अंतरण के अपराध अतरवर्लित है। शब्‍दों का उपयोग नहीं किया गया है किंतु केवल इतना ही पर्याप्‍त नहीं है कि यह अभिनिर्धारित किया जाए कि भारत के राज्‍य क्षेत्र के भीतर यदि किसी अपराधी द्वारा कोई अन्‍य संज्ञेय अपराध कारित किया गया है तब भी इन उपबंधों का अवलंब लिया जा सकता है। संहिता के अध्‍याय 7 के अंतर्गत आने वाले उपबंधों का ठीक और उचित निर्वचन यह है कि इन उपबंधों का अवलंब केवल तब लिया जा सकता है जब इनका संबंध दो संविदाकारी राज्‍यों से हो।

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उपरोक्‍त संदर्भ में यह स्‍पष्‍ट है कि विक्रय अनुबंध पत्र के पालन हेतु न्‍यायालय में वाद प्रस्‍तुत  नहीं किया गया है, बल्कि एक अवार्ड आदेश के तहत कार्यवाही किए जाने का उल्‍लेख कर यह बताया गया है कि चैक और नकद राशि का भुगतान कर दिया गया, लेकिन चैक नम्‍बर का उललेख नहीं है। कब्‍जानामा व अनुबंध पर्याप्‍त रूप से स्‍टांपित भी नहीं है। इसके अतिरिक्‍त आवेदक की भूमि के संबंध में कोई खसरा पंचशाला आदि नहीं है। यह भी निर्ववादित है कि अन्‍य द्वारा निष्‍पादित विक्रय पत्र के संबंध में सिविल सूट निराकृत हो गया, जिसकी अपील क्रमांक 214/2015 अभी लंबित है। अन्‍य ऐसा कोई दस्‍तावेज प्रस्‍तुत नहीं किया गया है कि उनका बंटवारा होकर अलग-अलग, अमुख-अमुख भाग पर काबिज थे। उल्‍लेखनीय यह भी है कि वर्तमान प्रकरण 77/2009 में धारा 34 के तहत आज ही आवेदन पत्र स्‍वीकार किया गया है। इन परिस्थितियों में आवेदक आरोपी द्वारा प्रस्‍तुत आवेदन पत्र स्‍वीकार किए जाने योग्‍य नहीं है। फलस्‍वरूप आवेदन पत्र धारा 9 मध्‍यस्‍थता एवं सुलह अधिनियम निरस्‍त किया जाता है।
       दिनांक 27.01.2016 को अभियोगी श्रीमति ऋतु साहु ने अपनी सास ज्‍येष्‍ठ,जेठानी, देवर, देवरानी एवं पति उक्‍त अभियुक्‍तगण के विरूद्ध महिला थाना, भोपाल में लिखित शिकायत प्रस्‍तुत की थी। लिखित शिकायत के अनुसार दिनांक 18.06.2012 को अभियुक्‍त विजय कुमार के साथ अभियोगी का विवाह हुआ था और लगभग पांच लाख रूपए अभियोगी के माता पिता ने खर्च किए थे और दहेज आदि अभियुक्‍तगण को दिया था। विवाह के 10-15 दिन बाद ही सभी अभियुक्‍तगण अभियोगी को अपमानित करने लगे और उस पर दबाव बनाने लगे कि वह अपने पिता से 5 लाख रूपए लेकर आए। अभियोगी के साथ दुर्वव्‍यहवार किया जाता था और उसे खाने व कपड़े के लिए तंग किया जाता था। और मारपीट की जाती थी। अभियोगी जब गर्भावस्‍था में आई तब उसकी इच्‍छा के विरूद्ध गर्भपात कराया गया । महिला थाने में लिखित शिकायत मिलने के बाद अभियुक्‍तगण के विरूद्ध अन्‍य अपराध के साथ-साथ धारा 498ए एवं 506 भाग-2 भारतीय दण्‍ड विधान में अपराध पंजीबद्ध किया गया और पुलिस ने विवेचना पूर्ण होनेके बाद न्‍यायालय में अभियोग पत्र प्रस्‍तुत किया। दण्‍ड प्रक्रिया संहिता, 1973 के अध्‍याय 7 के अंतर्गत आने वाली धारा 105 पूरी तरह से यह स्‍पष्‍ट करती है कि यह धारा रिष्‍टि को रोकने या आतंकबादी क्रिया कलापों और अर्न्‍राष्‍ट्रीय अपराधों का पूर्ण रूप से सफाया करने के आशय से अंत: स्‍थापित की गई है, अन्‍यथ: संहिता में अध्‍याय 7 अधिनियमित करने का कोई कारण नहीं था। इस अध्‍याय में के उपबंधों का धारा 166 में दिए गए उपबंधों पर अनुपूरक प्रभाव है और सामान्‍य अपराधों कें अन्‍वेषण से इन उपबंधों का कोई लेना देना नहीं है।

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प्रकरण में अभियुक्‍त के विरूद्ध धारा 106 भारतीय दण्‍ड संहिता के अधीन यह आरोप है कि उसने दिनांक 16 फरवरी 2016 को शाम 8 बजे के पूर्व से मेघा को शारीरिक व मानसिक रूप से प्रताडि़त किया तथा उसके साथ मारपीट कर उसे आत्‍महत्‍या करने के लिए दुष्‍प्रेरित किया जिसके परिणाम स्‍वरूप मेघा ने उक्‍त दिनांक को 7 से  8 बजे के लगभग काम के बीच रास्‍ते में रेल के सामने आकर आत्‍महत्‍या कर ली।
      प्रकरण में आरोपी के विरूद्ध भारतीय दण्‍ड विधान की धारा 498, 506 एवं दहेज प्रतिषेध अधिनियम 1961 के अंतर्गत अपराध विरचित कर विचारण प्रारंभ किया गया।  प्रकरण में  अभियोजन द्वारा           साक्ष्‍य समाप्‍त घोषित की गई तथा प्रकरण में अभिलेख पर आई हुई साक्ष्‍य के आधार पर आरोपी के विरूद्ध दण्‍ड प्रक्रिया संहिता की धारा 313 के अंतर्गत कथन में उसने बताया कि                 वह वेकसूर है तथा उसे झूठा फंसाया गया है। आरोपी की ओर से बचाव साक्ष्‍य भी अभिलेख पर प्रस्‍तत की गई है। प्रकरण में अभिलेख पर आई साक्ष्‍य आपस में सशख्‍त एवं विचारणीय है तथा ऐसी स्थिति में साक्ष्‍य की पुनरावृत्ति के दोष निवारणार्थ उक्‍त विचारणीय प्रश्‍नों का निराकरण किया जा रहा है।
      उक्‍त प्रकरण में इस प्रकार अभिेलख पर जो साक्ष्‍य आई है उसके अवलोकन से यह स्‍पष्‍ट है कि मामले की फरियादियान ने अपने कथन में स्‍पष्‍ट रूप से बताया है कि आरोपी द्वारा विवाह की दो वर्ष पश्‍चात से दहेज की मांग की जाने लगी। उक्‍त साक्षी की साक्ष्‍स से यह स्‍प्‍ष्‍ट है कि दिनांक 28 जून 2013 को आरोपी द्वारा न केवल दहेज की मांग  की गई, बल्कि फरियादिया के साथ मारपीट भी की गई और जान से मारने की धमकी दी गई। उक्‍त साक्षी के कथनों का अनुसमर्थन अभियोजन साक्षी 02, अभियोजन साक्षी 03 की साक्ष्‍य से भी हो रहा है। भारतीय दण्‍ड सहिता की धारा 292, 293, और साथ में दण्‍ड प्रक्रिया संहिता की धारा 501 या 502 की उपधारा 3 के अधीन दोषसिद्ध पर न्‍यायालय उन सब प्रतियों कें जिसके बारे में दोषसिद्धी हुई है और जो न्‍यायालय की अभिरक्षा में है, सिद्धदोष व्‍यक्ति के कब्‍जे में या सख्‍ती में है। नष्‍ट किए जाने के लिए आदेश दे सकता है। ऐसी स्थिति में कोई भी अभियुक्‍त माननीय न्‍यायालय की आदेश को मान्‍य करेगा और यदि वह ऐसा नहीं करता है तो वह कठोर दण्‍ड के कारावास से दण्‍डनीय होगा।
      उक्‍त प्रकरण में धारा 113 के अधीन जारी किए गए प्रत्‍येक समन या वारंट क साथ धारा 111 के अधीन किए गए आदेश की प्रति होगी और उस समन या वारंट की तामील या निष्‍पादन करने वाला अधिकारी वह प्रति उस व्‍यक्ति को परिदस्‍त करेगा जिस पर उसकी तामील की गई है या जो उसके अधिन पकड़ा गया है।
      अपीलार्थीगण की ओर से यह तर्क किया गया है कि उक्‍त मामले में सभी साक्षी हितबद्ध साक्षी है।

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विद्यवान विचारण न्‍यायालय द्वारा माननीय सर्वोच्‍य न्‍यायालय की न्‍यायदृष्‍टांत में अपीलार्थी के विरूद्ध न्‍यायदृष्‍टांत का उचित रूप से संदर्भ लेते हुए उभय पक्ष के मध्‍य व्‍यवहार प्रकृति का विवाद होना पाया है। उक्‍त आदेश विधिसम्‍मत्, औचित्‍यपूर्ण तथ्‍यों के अनुरूप पारित किया गया है। जिसमें हस्‍तक्षेप किए जाने का कोई आधार दर्शित नहीं होता है। अत: विद्यवान विचारण न्‍यायालय का आदेश दिनांक 21 अपैल 2015 की पुष्ठि की जाती है तथा पुनरीक्षणकर्ता की ओर से प्रस्‍तुत पुनरीक्षण याचिका प्रमाण के अभाव में निरस्‍त की जाती है।
       अभियुक्‍त के विरूद्ध धारा 7 एवं 13 सहपठित धारा 13 भ्रष्‍टाचार निवारण अधिनियम 1988 की अंतर्गत आरोप है कि उसने दिनांक 30 दिसम्‍बर 2013 के पूर्व से नायब तहसीलदार न्‍यायालय में सहायक ग्रेड-3 जो कि लोकसेवक का पद है, पर पदस्‍थ रहते हुए प्रथी वह अन्‍य के नाम से खरीदी गई रसीद भूमि के नामांतरण कराने के एवज में अपने पद्वीय कर्तव्‍य के दौरान वैध पारिश्रमिक भिन्‍न अवैध पारितोषण के रूप में 3000 रूपए की मांग की एवं दिनांक 30 जनवरी 2013 को प्रार्थी एवं अभियोगी से वैध पारिश्रमिक से भिन्‍न अवैध पारितोषण की राशि रूपए 2000 प्राप्‍त ली तथा लोकसेवक के पद पर पदस्‍थ रहते हुए भ्रष्‍ट या अवैध साधनों से अपने पद का दुर्पयोग करते हुए दिनांक 20 जनवरी 2013 को अभियोगी से 2000 रूपए स्‍वयं के लिए वैध पारिश्रमिक से भिन्‍न राशि प्राप्‍त कर आपराधिक अवचार का अपराध कारित किया।
       आवेदन की ओर से यह तर्क किया गया है कि यह उसका प्रथम नियमित जमानत आवेदन पत्र है, इसके अतिरिक्‍त्‍ अन्‍य कोई आवेदन माननीय उच्‍च न्‍यायालय खण्‍डपीठ ग्‍वालियर के समक्ष ना तो लंबित है और ना ही निराकृत किया गया है। वह दिनांक 04 जनवरी 2017 से न्‍यायिक निरोध में है, वह निर्दोष है उसे प्रकरण में मिथ्‍या आलिप्‍त किया गया है। प्रकरण के निराकरण में समय लगने की संभावना है। अभियुक्‍त शिवपुरी जिले का स्‍थाई निवासी है। उसके भागने  एवं फरार होने  की कोइ संभावना नहीं है। अभियुक्‍त अन्‍वेषण में पूण सहायोग करेगा। तथा अभियोजन साक्षियों को प्रभावित भी नहीं करेगा। वह जमानत की शर्तो का पूरी तरह से   पालन करेगा। अभियुक्‍त ने अपने आवेदन के समर्थन में अपने भाई सुनील का शपथपत्र प्रस्‍तुत किया है।     
       किसी प्रकरण में यदि कोई साक्ष्‍य अपीलार्थी की ओर से पेश किया गया है और उस साक्ष्‍य पर  किसी भी       अभियोजन साक्षी के द्वारा कोई निरोध नहीं करता है तो ऐसी   स्थिति में न्‍यायाधीश उस मामले में                                           गंभीरता से विचार विमर्श करेगा और तब अपने अंतिम निर्णय को अभिलिखित करेगा।

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अपीलार्थी की ओर से अपील ज्ञापन में  बताए आधारों पर विचारण न्‍यायालय द्वारा पारित आलोच्‍य निर्णय व आज्ञाप्ति को प्रश्‍नगत किया गया है। अपीलार्थी की ओर से तर्क के दौरान व्‍यक्‍त किया है कि वादी की ओर से लगायत 3 के दस्‍तावेज व मौखिक साक्ष्‍य कब्‍जे के संबंध में पेश की गई थी। जिस पर विचारण न्‍यायालय ने गंभीरता से विचार नहीं किया ना ही  विश्‍वास किया। आलोच्‍य निर्णय का उक्‍त आदेश के आधार पर लिखा गया है, जबकि वादी ने अपनी साक्ष्‍य से अपना वाद पूर्णत: प्रमाणित किया है। अत: विचारण न्‍यायालय द्वारा पारित आलोच्‍य निर्णय तथ्‍य विधि विरूद्ध होने से निरस्‍त किए जाकर अपीलार्थी की अपील स्‍वीकार कर वाद विचार किए जाने का निवेदन किया है।
       आवेदक साक्षी ने अनावेदक की ओर से किए गए प्रतिपरीक्षण मे स्‍वीकार किया है कि उसका पुत्र जन्‍मजात से विकलांग होकर चलने में अस्‍मर्थ है। उसके तथा अनावेदक के खेत पर जाने का एक ही रास्‍ता है। इस बात को भी अस्‍वीकार किया है कि रास्‍ते को लेकर उनके बीच विवाद है। इस साक्षी ने घटना की रिपोर्ट दिनांक 07 मार्च 2012 को की जाना बताया है किंतु अपने पुत्र व अपनी  जन्‍म दिनांक के संबंध में कोई तिथि नहीं बता पाया है। साक्षी का कथन है कि उसने डॉक्‍टर को घटना के बारे में बता दिया था। डॉक्‍टर शरद जैन में घटना की कोई सूचना थाने में नही दी थी। इसके विपरीत अनावेदक ने अपने कथन में बताया है कि प्रश्‍नगत् वाहन से कोई दुर्घटना नहीं हुई थी। आवेदक द्वारा उसके विरूद्ध असत्‍य प्रकरण पेश किया गया है। आवेदक की ओर से किए गए प्रतिपरीक्षण में साक्षी ने स्‍वीकार किया है कि उसके विरूद्ध पुलिस द्वारा प्रकरण पंजीबद्ध किया गया है, किंतु स्‍वत: साक्षी का कहना है कि प्रकरण का फैसला हो गया है और वह दोषमुक्‍त हो गया है।
       तर्क के दौरान अपीलार्थी के विद्यवान अधिभाषक द्वारा माननीय सर्वोच्‍य न्‍यायालय द्वारा अपील में  पारित निर्णय दिनांक 05 जून 2015 की प्रतिलिपी प्रस्‍तुत करते हुए तर्क किया गया है कि अपीलार्थी ने चेक राशि एवं न्‍यायालय द्वारा निर्णय में उल्लिखित ब्‍याज राशि जमा कर दी है। अत: माननीय सर्वोच्‍य न्‍यायालय द्वारा उक्‍त निर्णय अनुसार वह उन्‍मुक्ति या दोषमुक्ति का पात्र है। इस तर्क पर विचार किया जावें तो विचारण न्‍यायालय के अभिलेख अनुसार दिनांक 31 जून 2016 को प्रकरण के लंबित रहते दौरान अभियुक्‍त कथन के प्रकम पर चैक राशि लाख रूपए न्‍यायालय में जमा की है। उस समय न्‍यायालय द्वारा ना जाक ब्‍याज या प्रतिकर की कोई गणना की गई थी और ना ही अभियुक्‍त की ओर से ऐसा कोई आवेदन प्रस्‍तुत किया गया था।

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वर्तमान मामले में याचिकाकारी 10 नवम्‍बर, 20005 को फाईल की गई थी किंतु यह याचिका आदेश सुनवाई के लिए तारीख 14 नवम्‍बर 2005 को न्‍यायालय के समक्ष प्रस्‍तुत की गई थी। याची संख्‍या 2 को तारीख 9 नवम्‍बर 2005 को गिरफ्तार किया गया था। अत: जब न्‍यायालय द्वारा याचिका पर विचार किया गया तब तक निरूद्ध व्‍यक्ति पहले ही सिविल कारागार से छूट चुका था। याचिका में कोई वाद हेतुक नहीं रह गया था। अत: अवैध निरोध के लिए प्रतिकर का दावा करने के लिए फाईल संशोधन आवेदन इस आधार पर ही खारिज किए जाने योग्‍य है कि जब तारीख 14 नवम्‍बर, 2005 को याचिका आदेश के लिए प्रस्‍तुत की गई तब तक निरूद्ध व्‍यक्ति को पहले ही छोड़ा जा चुका था। और संशोधन पर इस कारण विचार नहीं किया जा सकता क्‍योंकि वाद हेतुक पहले ही समर्थ हो गया था। यदि बहस के लिए यह मान भी लिया जाये कि याचिका उस समय ग्राह्रय थी जब आदेश के लिए उसे प्रस्‍तुत किया गया था तब भी प्रतिकर का दावा करने के लिए संशोधन आवेदन इस आधार पर अनुज्ञात नहीं किया जा सकता कि निरूद्ध व्‍यक्ति के पास न्‍यायालय फीस का संदाय करने के पश्‍चात प्रतिकर के लिए वाद फाईल करने का समान उपचार उपलब्‍ध था। और इसलिए वर्तमान मामले के तथ्‍यों और परिस्थितियों को दृष्टिगत रखते हुए इस रिट अधिकारिता का अवलंब लेना उचित नहीं है। याचिओं कें विद्यवान अधिवक्‍ता द्वारा अवलंब लिए गए मामले अवैध अभिरक्षा में यातना से संबंधित थे। किंतु वर्तमान मामले में ऐसा कोई परिस्थितिजन्‍य कारण नहीं आया। याची को  मात्र वसूली मांगों के अनुसरण में सिविल कारागार में निरूद्ध किया गया था और उसे उसकी गिरफ्तारी से अगले दिन ही छोड़ दिया गया था। जब प्रत्‍यर्थीयों को यह पता चला कि मांग सूचनाओं कें प्रवर्तन को रोक लगाने वाला आदेश पारित कर दिया गया है।
   संपूर्ण साक्ष्‍य तथा तथ्‍यों पर विचार करने के पश्‍चात और कानूनी स्थिति की समीक्षा करने के उपरांत हम इस मत पर आये है कि अभियुक्‍तगण को चौहान की मृत्‍यु कारित करने के अपराध के लिए धारा 304 भाग-2 भारतीय दण्‍ड संहिता सहपठित धारा 149 भारतीय दण्‍ड संहिता के अंतर्गत 5-5 वर्ष के कठोर कारावास का दण्‍डादेश एवं 10-10 हजार रूपए के अर्थदण्‍ड से दण्डित करना उचित होगा।


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अभियुक्‍त चेक राशि एवं न्‍यायालय द्वारा संगणित ब्‍याज और प्रतिकर राशि न्‍यायालय में जमा जमा करने हेतु तत्‍पर था, तब माननीय सर्वोच्‍य न्‍यायालय ने व्‍यक्‍त किया है कि यदि अभियुक्‍त न्‍यायालय द्वारा संगणित प्रतिकर ब्‍याज राशि विचारण के दौरान जमा कर देता है तो न्‍यायालय वह राशि जमा हो जाने पर धारा 258 दण्‍ड प्रक्रिया संहिता के अंतर्गत कार्यवाही रोक सकता है जिसका परिणाम उन्‍मुक्ति होगा। इस प्रकरण में ऐसी स्थिति प्रकट नहीं होती है। ब्‍याज राशि भी अभियुक्‍त ने न्‍यायालय द्वारा निर्णय पारित किए जाने के पश्‍चात निर्णय में दिए गए निर्देशानुसार जमा की है। विचारण न्‍यायालय के समक्ष कार्यवाही पूर्ण हो चुकी थी और निर्णय पारित हो चुका था। ऐसी स्थिति में धारा 258 दण्‍ड प्रक्रिया संहिता के अनुसार कार्यवाही संभव नहीं है। अत: तथ्‍य भिन्‍न होने से यह न्‍यायदृष्‍टांत अभियुक्‍त को सहायक नहीं है।
       इस न्‍यायालय में पुनरीक्षण के आधार यह दिए गए है कि अभियुक्‍त वाहन का पंजीकृत स्‍वामी है और आवेदक वादी साक्षी उक्‍त वाहन का मुक्‍तारनामा होने के नाते संचालन कर रहा था। आवेदक अनाज का व्‍यापारी है और वह अनाज को बाजार से क्रय कर विक्रय करने के लिए ले जा रहा था। विचारण न्‍यायालय के समक्ष आवेदक ने अनाज की क्रय रशीदे प्रस्‍तुत की थी। इन तथ्‍यों पर विचारण न्‍यायाल ने ध्‍यान ना देकर त्रुटि की है विचारण न्‍यायालय ने अपराध की पुनरावृत्ति के आधार पर आवेदन निरस्‍त करने में त्रुटि की है। जिला दण्‍डाधिकारी द्वारा वाहन को राजसात करने की कार्यवाही प्रारंभ कर देने के आधार पर विचारण न्‍यायालय ने आवेदन निरस्‍त किया है, जबकि खाद्रय एवं अनाज प्रतिशेध अधिनियम एवं जप्‍ती निवारण अधिनियम में राजसात किए जाने की कार्यवाही की सूचना मिलने पर न्‍यायिक दण्‍डाधिकारी के सुपुर्दगी संबंधी अधिकार प्रभावित नहीं होते है।
       वाहन थाने में खुले में पढ़ा है, जिसके क्षतिग्रस्‍त होने की संभावना है। अत: पुनरीक्षण स्‍वीकार कर विचारण न्‍यायालय का आदेश निरस्‍त करने एवं उक्‍त वाहन पुनरीक्षकर्ता को सुपुर्दगी में दिए जाने की मांग की गई है।
       निरीक्षणकर्ता के विद्यवान अभिभाषक द्वारा प्रस्‍तुत माननीय मध्‍यप्रदेश उच्‍च न्‍यायालय द्वारा पारित आदेश की प्रतिलिपी के अनुसार यह स्थिति स्‍पष्‍ट है कि खादय एवं अनाज प्रतिशेश अधिनियम के अंतर्गत आवकारी अधिनियम के अनुरूप ऐसा प्रावधान नहीं है कि जिला मजिस्‍ट्रेट द्वारा वाहन के राजसात की कार्यवाही प्रारंभ कर देने की सूचना मिलने पर न्‍यायिक दण्‍डाधिकारी को अंतरिम सुपुर्दगीनामा पर वाहन देने का अधिकार नहीं रहता है परंतु इस प्रकरण में विद्यवान न्‍यायिक दण्‍डाधिकारी द्वारा आवेदक का सुपुर्दगीनामा आवेदन इस आधार पर निरस्‍त नहीं किया है कि जिला मजिस्‍ट्रेट द्वारा वाहन के राजसात की कार्यवाही प्रारंभ कर दी गई थी।

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आवेदक के द्वारा यह क्‍लेम याचिका मोटर दुर्घटना के परिणाम स्‍वरूप स्‍थाई निर्योग्‍यता उत्‍पन्‍न होने के आधार पर कुल दो लाख रूपए प्रतिकर दिलाए जाने हेतु प्रस्‍तुत की गई है। आरोपी पर भारतीय दण्‍ड विधान की धारा 363 एवं 366 एवं पास्‍कों एक्‍ट की धारा 5 के अंतर्गत दण्‍डनीय अपराध के आरोप है कि उसने दिनांक 26 फरवरी 2015 को शाम 4 बजे ग्राम इंदौर से अभियोत्री को उसकी विधिपूर्ण व्‍यपहरण अथवा विवाह के लिए विवश किया। एवं उसके साथ बार-बार बलात्‍संग किया एवं अभियोत्री को भगाकर ले जाकर लैंगिंक हमला कारित किया।
       न्‍यायदृष्‍टांत विरूद्ध मध्‍यप्रदेश राज्‍य 2007 एवं में माननीय उच्‍च न्‍यायालय ने यह अभिनिर्धारित किया है कि जहां जप्‍तीकर्ता अधिकारी ने इस तथ्‍य को साबित नहीं किया कि कैसे जुआं खेला गया, जुएं के खेलने की प्रक्रिया स्‍पष्‍ट नहीं की गई, केवल कुछ पर्ची एवं करेंसी नोट अभियुक्‍त के कब्‍जे से            जप्‍त किए गए। स्‍वतंत्र साक्षी पक्ष विरोधी हुए उनसे जप्‍ती साबित नहीं हुई। शेष पुलिस साक्षी जप्‍तीकर्ता पुलिस अधिकारी के सहायक थे ऐसे में धारा    4 के मामले में प्रमाणित नहीं माना गया।
       सार्वजनिक द्रूत अधिनियम की धारा 4 के अनुसार खेल के अन्‍य रूप से संबंधित अंको और तस्‍वीरों को मुद्रित करने अथवा प्रकाशित करने के लिए दण्‍ड जो कोई खेल के किसी अन्‍य रूप को किसी शीर्ष के चाहे जो कुछ भी हो अधीन अथवा किसी रूप की युक्ति को स्‍वीकार करके किसी अंकों, प्रतीकों अथवा तस्‍वीरों अथवा ऐसी किसी भी दो अथवा ऐसे अंकों, प्रतीकों अथवा तस्‍वीरों अथवा उनमें से किन्‍हीं दो अथवा दो अथवा उससे अधिक के संयोजन से संबंधित सूचना को आत्‍मसात करेगा। अथवा आत्‍मसात करने का प्रयत्‍न करेगा। आत्‍मसात करने का दुष्‍प्रेरण करेगा ऐसे कारावास से जो छह मास तक का हो सकेगा। और ऐसे जुर्माने से जो एक हजार रूपए कि सीमा तक हो सकेगा, दण्‍डनीय होगा।
       केस डायरी का अवलोकन किया गया। आरोपीगण से उनकी गिरफ्तारी के संबंध में पूछा गया। आरक्षीकेन्‍द्र कोतवाली द्वारा  आरोपीगण को गिरफ्तार किए जाने की  सूचना दिए जाने का उल्‍लेख किया गया तथा आरोपीगण द्वारा भी उनकी गिरफ्तारी की सूचना उनके       परिजनों को होना बताया।
       संबंधित अपराध में विहित अवधि के दौरान चालानी कार्यवाही पूर्ण नहीं होने से आरोपी का न्‍यायिक रिमाण्‍ड दिनांक 29 जनवरी 2016 तक स्‍वीकार किया जाता है। उक्‍त दोनों आरोपीगण को न्‍यायिक अभिरक्षा में लिया जाकर जेल वारंट द्वारा केन्‍द्रीय जेल भेजा जावे। आरक्षी केन्‍द्र को निर्देशित किया जाता है कि वे आगामी अभियोग पत्र प्रस्‍तुति की कार्यवाही संबंधित न्‍यायालय के समक्ष प्रस्‍तुत करे।
       केस डायरी के अवलोकन से विदित होता है कि एक अन्‍य अपराध पंजीबद्ध अंतर्गत आरक्षीकेन्‍द्र कोतवाली में चोरी गया सामान बरामद करना है एवं पूछताछ करनी है जिसके लिए पुलिस रिमाण्‍ड चाहा गया है।

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अभियोजन पक्ष कथन के अनुसार, हमलावरों का मुखिया अपीलार्थी रघुवीर सिंह मोतीसिंह की हत्‍या की घटना कारित करने के लिए घटन स्‍थल पर निहत्‍था गया था। उसने वहां पड़ी हुई एक ताडी उठाई और इससे मोतीसींग पर बार किया।  यह बात उचित नहीं लगती है कि हमलावरों का मुखिया, रघुवीर सिंह हत्‍या कारित करने के लिए निहत्‍था गया था। इससे घटना स्‍थल पर उसकी मौजुदगी संदेहास्‍पद हो जाती है। अभियुक्‍त द्वारा लिया गया चाकू और अभियुक्‍त द्वारा ली हुई छड़ी घटना स्‍थल से रक्‍त रंजित अवस्‍था में बरामद किए गए थे। कोई भी अपराधी घटना स्‍थल पर अपने आयुध को छोड़ने की भूल नहीं करेगा। अभियुक्‍त व्‍यक्तियों की संख्‍या 13 थी। यहां अजीब बात है कि उनके पास मोतीसिंह को अनावश्‍यक रूप से गांव ले जाने के लिए तो पर्याप्‍त समय था किंतु अपने ही आयुधों को उठाने का उनके पास समय नहीं था। अपीलाथियों पर ऐसा कोई दबाव नहीं था जिसकी वजह से उन्‍हें घटना स्‍थल पर अपने आयुधों चाकु और छड़ी को घटना स्‍थल पर छोड़ दिया था, ना तो प्रथम इत्तिला रिपोर्ट में उल्‍लेख किया गया है और ना ही इसका स्‍पष्‍टीकरण दिया गया है।
       इससे भी अभियोजन के वृत्‍तांत पर संदेह पैदा होता है। कुल्‍हाड़ी अभियुक्‍तों की नहीं थी और यह घटना स्‍थल से बरामद भी नहीं हुई थी। प्रथम इत्तिला रिपोर्ट में ऐसा कोई उल्‍लेख नहीं है कि इसे अभियुक्‍तों में से किसी अभियुक्‍त द्वारा ले जाया गया था।  किसी भी साक्षी ने यह स्‍पष्‍टीकरण नहीं दिया है कि यह कुल्‍हाड़ी कहा चली गई। कुल्‍हाड़ी के गुम हो जाने की बावत् कोई स्‍पष्‍टीकरण नहीं दिया जाना अभियोजन के विरूद्ध जाता है।
       हमारे मत में अभियोजन अपीलार्थीगण के विरूद्ध अपना केस अर्थात पक्ष कथन युक्तियुक्‍त संदेह से परे सिद्ध करने में सफल हुआ है। प्रत्‍यक्षदर्शी विश्‍वसनीय साक्षी है। उनके द्वारा अभियुक्‍तगण को झूठे एवं मिथ्‍या रूप से फसाने का कोई कारण नहीं है। प्रत्‍यक्षदर्शी साक्षियों कें साक्ष्‍य में सामजस्‍य है। मात्र साक्षी संख्‍या 1 गुलाब चौहान ने भाले वाले तीसरे अभियुक्‍त का नाम सतीश के स्‍थान पर अंबिका बता दिया। ऐसा प्रतीत होता है कि जुबान की त्रुटि से वह        ऐसा कह गया। साक्षी क्षतिग्रस्‍त था। अन्‍य सभी साक्षियों ने तीसरे भाले वाले अभियुक्‍त का नाम सतीश ही बताया है। साक्षी गुलाब चौहान की उपरोक्‍त त्रुटि नजरअंदाज किए जाने योग्‍य है।  उनके साक्ष्‍य व चिकित्‍सकीय साक्ष्‍य में भी सामजस्‍य है।

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निसहाय स्‍त्रीया सदैव ही सांतवापूर्ण शब्दों  और सद्भावनापूर्ण प्रदर्शन के लिए अपने पतियों की ओर देती है। अभियुक्‍त ने उसे सांतना देने और उसकी मानसिक परेशानी और तनाव को दूर करने के बजाह वह वैवाहिक बंधन तोड़ने का प्रयास किया जो उस समय तक उन्‍हें उनके वैवाहिक जीवन से बांधे हुए था। पवित्र मंगल सूत्र ऐसी किसी हिंदु पत्नि के लिए संरक्षकता का एक मजबूत साक्ष्‍य होता है जिसे कि वह अपने वैवाहित बंधन के अत्‍यंत पवित्र सूत्र के रूप में समझती है। अभियुक्‍त द्वारा उसकी इस पवित्र चैन को अभ्रदापूर्वक और बर्बरता पूर्वक खीचा गया था और इस प्रकार अभियुक्‍त ने उसको अनियंत्रित मानसिक आघात और तीव्र व्‍यथा कि स्थिति में छोड़ दिया था किसी विश्‍वसनीय हिंदु पत्नि के लिए उसके पति द्वारा मंगल सूत्र को खीचने का यह अर्थ है कि वह विधवा हो गई थी। और उसके पास अपने जीवन को समाप्‍त करने के सिवाय और कुछ चारा नहीं रह गया था। अत: अभियुक्‍त का यह कार्य स्‍पष्‍टत: इस प्रकार के स्‍वैच्‍छिक आचरण या उसके परिधी के अंतर्गत आता है जो उसको अपनी जीवन लीला समाप्‍त करने के लिए प्रेरित करे।
     भारतीय दण्‍ड संहित की धारा 498-क के स्‍पष्‍टीकरण के अंतर्गत स्‍वैच्छिक आचरण के समान सभी कार्यों का जिनसे क्रूरता गठित होती हो, उल्‍लेख करना यदि असंभव नहीं है तो कठिन अवश्‍य है। यह भी  संभव नहीं है कि ऐसे कार्यों को किसी कठोर सूत्र की परिभाषा के भीतर रखा जाए। सभी स्त्रियां एक जेसी नहीं होती कुछ स्‍ित्रियां साहसी और कुछ शाही होती है और इतनी दृण निश्‍चयी होती है कि अंत तक अमानवीयता और शारीरिक तथा मानसिक कष्‍ट को सह सके। तथापि कुछ स्त्रिया ऐसी होती है जो अत्‍यंत कमजोर, कमजोर दिमाग, डरपोक और अत्‍यंत भावुक होती है कि वे मामूली तकलीफ, उपहास या सांकेतिक भाषा से उग्र प्रतिक्रिया करती है ऐसे तीसरे प्रवर्ग की स्त्रिया भी होती है जो कष्‍ट पूर्वक आघात को सह लेती है उंचे दर्जे की सहनशीलता उपदर्शित करते हुए और खामोशी से अमानवीयता को तब तक सहन करती रहती है जब तक कि स्थिति विस्‍फोटक ना हो जाये। अंतिम प्रवर्ग की स्त्रिया अपने वैवाहिक जीवन से संबंधित विशाद पूर्ण अध्‍याय को दूसरों पर प्रकट करना पसंद नहीं रखती है सिवास उन व्‍यक्तियों कें जिनमें वे पूरा विश्‍वास और भरोसा रखती है। न्‍यायालयों द्वारा दामपत्‍य दबाव में विशिष्‍ट स्‍त्री की सहनशीलता के बारे में विचार ऐसे अपराधो का विचारण करते समय किया जायेगा। ऐसा ही आचरण जो वर्तमान मामले में धारा द्वारा उपबंधित क्रूरता के बराबर हो सकता है दूसरे मामले में क्रूरता के समान नहीं हो सकता जो समाज के किसी वर्ग के लिए पूर्णत: उचित हो।

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मुझे खेद है कि मैं उपर्युक्‍त दलीलों से सहमत नहीं हो सकता। अभियोजन साक्षी 3 ने जो उसकी माता है, दृणतापूर्वक न्‍यायालय के समक्ष यह अभिसाक्ष्‍य दिया है‍ कि यद्धपि वह जीवन से उदासीन थी क्‍योंकि उसके कोई बच्‍चा उत्‍पन्‍न नहीं हो सका था। तथापि इस बात ने उसे आत्‍महत्‍या करने के लिए प्रेरित नहीं किया। इसके अतिरिक्‍त उसकी गर्भधारण की अक्षता ऐसी जल्‍दबाजी में आत्‍महत्‍या करने के लिए तुरंत प्रकोपन गठित नहीं कर सकती।
      इसके प्रति‍कूल उसकी चाची के मकान में घटित घटना से जैसा कि अभियोजन साक्षी चार और पांच ने बताया है स्‍पष्‍टत: यह उपदर्शित होता है कि अभियुक्‍त उसकी तलाश में अभियोजन साक्षी 5 के मकान तक आया था और उसने उससे वहां मिलने के पश्‍चात मकान के पिछले भाग में झगड़ा किया था। वह उस मकान में अपनी चाची की जो अभियोजन साक्षी 5 की माता थी, मृत्‍यु पर चालीसवीं के समारोह में आई थी। अभियुक्‍त अपनी पत्नि से जो उस मकान में खाना तक नहीं खा सकी। झगड़ा करने के पश्‍चात उसे उस मकान से घसीटते हुए ले गया था।  यह घटना अभियोजन साक्षी 4 और अभियोजन साक्षी 5 ने देखी थी। अभियोजन साक्षी 5 ने उसको अपने मकान में  वापस आने और तत्‍पश्‍चात खाना खाकर जाने के लिए कहा था उसने रास्‍ते में यह देखा कि अभियुक्‍त और उसके बीच झगड़ा हो रहा है और अभियुक्‍त बल पूर्वक उसकी खाली चैन छीन रहा था यह घटना एएलपी स्‍कूल के निकट हुई थी घटना उसके मकान के रास्‍ते में हुई थी और उसने स्‍कूल अहाते में स्थि‍त कुएं में कूंदकर अपनी जीवनलीला समाप्‍त कर ली थी अभियुक्‍त ने अपनी पत्नि के आत्‍म हत्‍या करने के आचरण के बारे में जानकारी होने पर साक्ष्‍य बनाने के लिए मकान की खिड़की से जिस पर किवाड़ नहीं था। मेज पर खाली चेन अर्थात मंगल सूत्र फेंक दी। अभियुक्‍त द्वारा ऐसा स्‍वयं को बचाने के लिए और निदोष साबित करने के लिए किया गया था। यदि किसी दण्‍ड न्‍यायालय के समक्ष हाजिर होने के लिए समन किए जाने पर कोई साक्षी शमन के पालन में किसी निश्चित स्‍थान और समय पर हाजिर होने के लिए वैध रूप से आबद्ध है और न्‍यायसंगत कारण के बिना उस स्‍थान पर या समय पर हाजिर होने में उपेक्षा या हाजिर होने से इंकार करता है। अथवा उस स्‍थान से, जहां उसे हाजिर होना है, उस समय से पहले चला जाता है जिस समय चला जाना उसके लिए विधिपूर्ण है और जिस न्‍यायालय के समक्ष उस   साक्षी को हाजिर होना है उसका समाधान हो जाता है कि न्‍याय के हित में यह समीचीन है कि ऐसे साक्षी का संक्षेपत: विचारण किया जाये तो वह न्‍यायालय उस अपराध का संज्ञान कर सकता है। और अपराधी को इस बात का कारण दर्शित करने का कि क्‍यों ना उसे इस धारा के अधीन दण्‍डित किया जाये। अवसर देने के पश्‍चात उसे 100 रूपए से अनधिक जुर्माने का दण्‍डादेश दे सकता है।

Friday 27 April 2018

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माननीय अध्‍यक्ष जी मैं इस बजट का समर्थन करता हूँ लेकिन समर्थन करते हुए एक दो बाते कहना उचित समझता हूं इस संशोधन के जरिए चाय के बागानों में   काम करने वाले मजदूरों कें हित संबंधी विषयों पर चर्चा की गई है। उनको हर प्रकार की सुविधाएं दिए जाने की बात का तो कोई भी व्‍यक्ति विरोध नहीं कर सकता है। सब लोग समर्थन ही करेंगे। यह अच्‍छा होता कि जितने बागान है यदि सरकार उन्‍हे अपने कब्‍जे में कर ले तो इससे मजदूरों का ज्‍यादा भला हो सकता था लेकिन अभी तक इतने साल बीत जाने के बाद भी ऐसा कुछ होता हुआ नहीं दिख रहा है। इस विषय पर चर्चा करते हुए मैं दो बाते और कहना चाहता हूं जो मुझे अकसर चिंतित करती है। एवं मैने उनपर एक्राग मन से विचार भ्‍ज्ञी किया है। मैंने स्‍वयं देखा है कि अभी अगस्‍त माह में रेल्‍वे कर्मचारी संगठन की बैठक हुई थी उसकी रेली में बहुत बड़ी संख्‍या में बागानों के मजदूर भी आए थे वे झंडे लेकर आए थे उनमें महिलांए नौजवान एवं बच्‍चे सभी शामिल थे उनकी शिकायत थी कि हम लोगों में से बहुत से लोग हिदीं भाषी क्षेत्रों कें है लेकिन हमारे क्षेत्र के इस फूलों में हिंदी पढ़ने की  कोई व्‍यवस्‍था नहीं है। चाय बागानों कें मालिकों ने इसकी कतई व्‍यवस्‍था नहीं की है जिसके कारण बहुत कठिनाई होती है। सरकार का नियम है कि यदि काफी संख्‍या में  ऐसे लोग हो और जिस भाषा को वे लोग जानते है उसी भाषा में उनहें शिक्षा मिलनी चाहिए। यदि यह बात सही है तो उनक बच्‍चों को अनपढ़ रखने से  क्‍या लाभ होगा जो भाषा वे नहीं जानते उसमें पढ़ना उनके लिए संभंव नहीं होगा। इसलिए आप देखें कि इस तरह का काम करने वाले मजदूरों की शिक्षा उस भाषा में  होनी चाहिए जिसे वह अच्‍छी तरह से जानते हो। चाहे वह हिंदी हो तमिल हो या कोई और भाषा मजदूरो के कल्‍याण के इस बजट का संबंध है और यदि मजूदर शिक्षित नहीं होगा तो कल्‍याण की बात भी नहीं समझेगा इसलिए उनकी इस शिकायत को दूर करे ताकि उनमें व्‍यापक संतोष दूर हो सके। अब दूसरी बात दुर्घटना के विषय ही है। दुर्घटनाए चाय के बागानों में बड़ी मात्रा में होती रहती है जिससे मजदरों कें जीवन मरण पर बात बन आती है लेकिन उनके लिए जो मुआबजा आदि उनको मिलना चाहिए वह उचित तरीके से उनको नहीं मिलता है मैं निवेदन करना चाहता हूं कि आप से शीघ्र ही इस ओर ध्‍यान दे क्‍योंकि जहां पर इस तरह की बात है जहां आप के कानून को नहीं माना जाता है वहां इस पर रोक लगाए। आप ऐसा नहीं कह सकते क हमारे देश में बढ़े बढ़े लोग नियम कानून नहीं तोड़ते है जब सरकार खुद अपने कानूनों को तोड़ती है तो मिल मालिकों कें बारे में कहना तो गलत ही है आप जो कानून बना रहे है उनका पालन हो इस बात   को देखना राज्‍य एवं केन्‍द्र सरकार दोनों का काम है। उपाध्‍यक्ष महोदय मैं आपके सामने एक बात और रखना चाहता हूं और वह यह है कि देश में बेकारी बढ़ती जा रही है और इसे रोकने का कोई उपाय सरकार अभी तक नहीं कर पाई है। सरकार अपने दूसरे कार्यो में ऐसी उलझी रहती है कि उसे इस ओर ध्‍यान देने का समय ही नहीं है। यदि वे कार्य की समस्‍या की तरफ सरकार ने ध्‍यान नहीं दिया तो देश का जो बेरोजगार वर्ग है वह क्रांति कर सकता है और अगर ऐसा हुआ तो सरकार को बड़ी परेशानी का सामना करना पढ़ेगा अत: मेरा सुझाव है कि सरकार को जल्‍दी से जल्‍दी इस समस्‍या की ओर ध्‍यान देना चाहिए यह बेकारी ऐसी नहीं है फूंक मारते ही दूर हो जायेगी इसके लिए सरकार को योजनाबद्ध तरीके से काम करना पढ़ेगा। नये नये रोजगार के अवसर ढूढ़ने होगे। पढ़ाई के ढ़ाचे में परिवर्तन करना पढ़ेगा तथा कुटीर उद्योगों के साथ साथ लघु उद्दयोंगों की ओर भी बढ़ावा देना होगा। महोदय अब में इस देश में फैली अराजकता आवश्‍यक वस्‍तुओं कें मूल्‍यों को बृद्धि के बारे में भी चाहता हूं मैं उन बातों को नहीं दोहराना चाहता हूं जो मेरे दोस्‍तों ने इस सदन कही है एक बात मैं जरूर कहूंगा इस बात हिंदुस्‍तान की चारो तरफ की परिस्थिति बढ़ी खराब है और इसमें किसी एक बात कि किसी जिम्‍मेदारी नहीं है लोगों के पास सामान खरीदने के लिए पैसा नहीं है लोग भूखें मर रहे है ऐसी हालात में आसामाजिक तथ्‍य उनके साथ मिल जाते है और दुकानों को लूटने की कोशिश करते है इसी प्रकार दंगे फसाद हमारे देश में बढ़ रहे है इन सब का कारण मूल्‍यों में बृद्धि से लगाया जा सकता है। लोगों में बेरोजगारी पहले से ही काफी है और उस पर भी अगर उनहें आवश्‍यक वस्‍तुए सस्‍ते दामों पर ना मिल सके तो उनकी हालात और भी खराब हो जाती है । एक बात बिलकुल साफ और सही है कि अगर सामान बाजार में होगा चाहे वह चीनी हो गेहूं हो चावल हो या कुछ भी हो और लोगों के पास उसे खरीदने के लिए पैसा नहीं है तो वे केवल लूटपाट ही करेगे। इसके अलावा चीजों के दाम इतने बढ़ चुके है कि गरीबों कें लिए उन्‍हें खरीदना भी मुश्किल हो गया है। इस सब की जिम्‍मेदारी किस की है। क्‍या उस गरीब की है या देश के बढ़े बढ़े राजनीतिज्ञ दलों की है। मेरे विचार में इस सब की जिम्‍मेदारी केन्‍द्र सरकार की है। और इसके लिए मैं केन्‍द्र सरकार को बता देना चाहता हूं कि जल्‍दी से जल्‍दी इसका कोई ना कोई इंतजाम किया जाये। सभापित महोदय आज हमारे देश में जमाखोरों तथा सरकारी अफसरों में एक समझौता हो चुका है। सरकार ठोक व्‍यापार को अपने हाथ में लेना चाहती है। परंतु जमाखोरों को इससे बहुत नुकसान होगा और इसलिए वे सरकारी अफसरों से मिल गए है और इसलिए वे इस नीति को विफल करना चाहते है। इन शब्‍दों के साथ मंत्री महोदय से निवेदन करना चाहता हूं कि देश में जो गरीबी तथा भुखमरी का दौर चल रहा है इसको रोकने के लिए सरकार द्वारा कुछ ना कुछ इंतजाम किया जाए।

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वन परिक्षेत्राधिकारी की ओर से अपरलोक अभियोजक द्वारा आरोपीगण को जमानत ना दिए जाने के संबंध में आपत्ति आवेदन में दस्‍तावेज पेश किया, जिसकी प्रति आवेदकगण एवं आरोपीगण के अधिवक्‍ता को दी गई, उनके द्वारा कोई जबाव ना दिया जाना व्‍यक्‍त किया गया तथा आरोपीगण की ओर से भी सूची मुताबिक दस्‍तावेज पेश किया गया। जिसकी प्रति अपरलोक अभियोजक को दी गई।
     अपीलार्थी की ओर से यह भी तर्क किया गया है कि उसका आरोपी के घर में आना जाना था और ऐसी स्थिति में गृह अतिचार नहीं माना जा सकता। अपने पक्ष समर्थन में एक न्‍याय दृष्‍टांत प्रस्‍तुत किया है जिसके अनुसार भारतीय दण्‍ड संहिता की धारा 363, 452 के अपराध में अपीलार्थी का अभियोत्री के घर आना जाना होने से व्‍यपहरण के संबंध में गृह अतिचार नहीं माना जा सकता। वर्तमान प्रकरण में घटना मध्‍य रात्रि के लगभग की है। फरियादी अपने मकान में खाना खा रहा था तब अपीलार्थी लाठी लेकर उसके घर के अंदर प्रवेश करता है। भारतीय दण्‍ड संहिता की धारा 452 के अनुसार, उपहति हमला किया या सदोष अवरोध की तैयारी के पश्‍चात गृह अतिचार के संबंध में गृह अतिचार का भारतीय दण्‍ड संहिता की धारा 442 में परिभाषित किया गया है। जिसके अनुसार जो कोई किसी निर्माण जो मानव निवास के रूप में उपयोग में आता है या किसी निर्माण में जो उपासना स्‍थल के रूप में या किसी संपत्ति की अभिरक्षा के स्‍थान के रूप में उपयोग में आता है प्रवेश करके या उसमें बना रहकर आपराधिक अतिचार करता है, वह गृह अतिचार करता है, यह कहा जाता है।
     परिसीमा अधिनियम की धारा 5 के अंतर्गत प्रस्‍तुत आवेदन में यह तथ्‍य उल्लिखित किया है कि पुनरीक्षकर्ता दिनांक तक की अवधि में किसी घातक बीमारी से ग्रहस्‍था था इस कारण आदेश दिनांक से विहत 90 दिवस के भीतर अर्थात प्रकरण दिनांक को पुनरीक्षण प्रस्‍तुत नहीं की जा सकी। आवेदन के समर्थन में स्‍वयं का श्‍पथपत्र प्रस्‍तुत किया है। साथ ही डॉक्‍टर का इस आशय का प्रमाण पत्र प्रस्‍तुत किया है कि पुनरीक्षकर्ता दिनांक की अवधि में किसी घातक बीमारी से पीडि़त था । आवेदन में उल्लिखित कारण समाधानप्रद होने से धारा 05 परिसीमा अधिनियम का आवेदन स्‍वीकार किया जाता है और विलंब को  उल्लिखित किया जाता है।
     आवेदक के विरूद्ध आरक्षी केन्‍द्र द्वारा धारा 302 भारतीय दण्‍ड संहिता की अंतर्गत अपराध पंजीबद्ध कर पूर्ण अन्‍वेषण उपरांत अभियोग पत्र प्रस्‍तुत किया गया, जो विवेचना उपरांत इस न्‍यायालय को प्राप्‍त हुआ  तथा प्रकरण के  रूप में दर्ज होकर इस न्‍यायालय में विचाराधीन है। आवेदक मृतिका का पति है। मृतिका के पति के द्वारा उसे  जान से मारने की नियत से मृतिका पर मिट्टी का तेल डालकर  माचिस से आग लगाकर गंभीर रूप से घायल किया।

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निर्वचन का यह सिद्धांत जिसमें यह अपेक्षा की गई है कि किसी संवैधानिक उपबंध के बारे में नि‍श्चित रूप से अर्थान्‍वयन संकुचित और निर्वबंधित अर्थो में नहीं किया जायेगा बलिक व्यापक और उदार पूर्वक रीति से किया जायेगा जिससे कि परिवर्तवतशील अवस्‍थाओं और प्रयोजनों की प्रत्‍याशा की जा सके। और उसे विचारगत किया जा सके। जिससे की संवैधानिक उपबंध क्षीण ना हो जाये और ना ही आस्‍वभूत हो जाये। बल्कि वह पर्याप्‍त रूप से लचीला बना रहे ताकि वह उद्भूत होने वाली समस्‍याओं और चुनौतियों पर खरा उतर सके। संविधान द्वारा अधिनियमित आधारभूत अधिकार के संबंध में अधिक बल पूवर्क लागू होता है इसलिए जीवन संबंधी आधारभूत अधिकार जो कि सर्वोच्‍य मूल्‍यवान मानवीय अधिकार है और जो सभी अन्‍य अधिकारों का शिखर स्‍वरूप है उसके बारे में यह आवश्‍यक है कि उसका निर्वचन व्‍यापक और विस्‍तीर्ण भावना से किया जाये जिससे कि इसे महत्‍वपूर्ण और मार्मिक बनाया जा सके। जिससे की वह आने वाले अनेक वर्षो के लिए  अनश्‍वर बना रहे। और व्‍यक्ति की गरिमा और मानवमात्र के महत्‍व को वर्धित कर सके। सर्वोच्‍य न्‍यायालय द्वारा उपर्युक्‍त उद्दत विनिर्णयों के माध्‍यम से प्रतिपादित संविधान के निर्वचन का सिद्धांत और संविधानिक दर्शन का किसी विवाद में खण्‍डन नहीं किया गया है। किंतु मामले का बिंदु वर्तमान मामले के तथ्‍यों और परिस्थितियों से संबंधित यह है कि प्रश्‍नगत प्रथम इत्तिला रिपोर्ट संगेय अपराधो का करना प्रकट करती है और इस प्रक्रम पर उक्‍त प्रथम इत्तिला रिपोर्ट दर्ज करने में असद्भावना की अंतग्रस्‍तता अब निर्धारित नहीं की जा सकती है। हमें पूर्ववर्ती पैराग्राफों में की गई विस्‍तृत चर्चा में इस रिट याचिका में कोई गुणागुण नहीं दिखाई देता है पैरा राजनीति से नैतिक मूल्‍यों का एवं सिंद्धांतो का निरंतर ह्रास होता जा रहा है सत्‍ता पाने के लिए राजनेता झूठ और फरेब का सहारा लेने लगे है तथा प्रलोभनों से जनता को  गुमराह करने जा रहे है। चूकि हमारा शासन राजनीतिक दलों में खातों में है इसलिए हमारी सुरक्षा और विकास इन पर ही निर्भर है। वर्ष 1951 से भारत में उदारीकरण और आर्थिक सुधार नीति लागू की गई जिसके कारण देश आर्थिक तरक्‍की करने लगा परंतु सत्‍ता की भूंख ने देश को विभाजित करने वाले मुद्दों को हवा दी। धर्म व राजनीति दोनो अपनी अपनी जगह स्‍वतंत्र है आज भी इन स्‍वार्थ प्रेरित भावनाओं से हमें एकता अखण्‍डता धर्मनिरपेक्षता आर्थिक व सामाजिक असमानता रोजगार शिक्षा व उन्‍नति और विकास की समस्‍याओं कें हल के रास्‍ते से भटकाने के प्रयास किए जा रहे है। शास्‍वत सत्‍य यह है कि यह विभिन्‍य धर्म भाषा और वेषभूषा ही हमारी संस्‍कृति की अंतर्राष्‍ट्रीय पहचान है।

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विचारण न्‍यायालय में पुनरीक्षणकर्ता आरोपी की ओर से आवेदन पत्र अंतर्गत धारा 243 दण्‍ड प्रक्रिया संहिता प्रस्‍तुत कर लोक सूचना अधिकारी सहायक पुलिस महानिरीक्षक को प्रदर्श डी-10 व 11 से संबंधित असल रिकॉर्ड के साथ तलब किए जाने की प्रार्थना की गई है। विचारण न्‍यायालय द्वारा दोनों पक्षों को उक्‍त आवेदन पर सुनने के पश्‍चात आलोच्‍य आदेश पारित किया, जिसमें यह उल्‍लिखत किया गया कि साक्षी एसके दास ने प्रतिपरीक्षण में पद्रर्श डी-10 व 11 के पत्र विभाग द्वारा जारी किया जाना स्‍वीकार किया है। और यह दस्‍तावेज पूर्व में प्रदर्शित हो चुका है। और आरोपी साक्ष्‍य प्रस्‍तुत कर लेख तथ्‍यों को प्रमाणित कर सकता है। साक्षी को आहुत किया जाना न्‍यायोचित नहीं पाते हुए आवेदन निरस्‍त कर  दिया गया।
     जहां तक आवेदन पत्र में चाहे गये मूल रिकॉर्ड का संबंध है इस संबंध में यद्धपि आदेश में स्‍पष्‍ट रूप से उल्‍लेख नहीं है,
परंतु विधि का यह सर्वमान्‍य नियम है कि किसी अनुतोष को यदि आदेश या निर्णय के द्वार स्‍पष्‍ट रूप से नहीं दिया गया तो चाहा गया अनुतोष अमान्‍य कर दिया गया है। ऐसा मान लिया जायेगा। प्रदर्श डी-10 व 11 के दस्‍तावेजों के अवलोकन से यह पाया जाता है कि दोनों दसतावेज अभियोजन की साक्ष्‍य को प्रतिपरीक्षण के दौरान बचाव पक्ष की ओर से प्रदर्शित कर दिए गए है और उसके संदर्भ में प्रतिपरीक्षण में प्रश्‍न भी किए गए है।
     भारतीय साक्ष्‍य अधिनियम की धारा 64 के अनुसार दसतावेजो के संबंध में प्राथमिक साक्ष्‍य के द्वारा साबित किया जाना चाहिए, परंतु द्वितीय साक्ष्‍य के रूप में कब दस्‍तावेज के अस्तित्‍व की दशा और अंतवस्‍तु की साक्ष्‍य दी जा सकती है। इसके बारे में भारतीय साक्ष्‍य अधिनियम की धारा 65 में प्रावधान किया गया है, जिसमें यदि दस्‍तावेज लोक दस्‍तावेज है या किसी ऐसे दस्‍तावेज जिसकी प्रमाणित प्रति साक्ष्‍य अधिनियम या भारत की किसी अन्‍य विधि के अनुसार अनुज्ञात किया गया है वहां मूल दस्‍तावेज को पेश करना आवश्‍यक नहीं है।
     इसके अतिरिक्‍त दस्‍तावेज पेश करने या साक्षी को आहुत करने के संबंध में किया गया आदेश अंतवर्ती आदेश होता है, जिसके विरूद्ध पुनरीक्षण धारा 397 दण्‍ड प्रक्रिया के अंतर्गत ग्राह्रय नहीं है इस प्रकार पुनरीक्ष्‍ण अंतवर्ती आदेश के विरूद्ध किया गया है जो विधि अनुसार पोषणीय नहीं है इस सबंध में माननीय उच्‍च न्‍यायालय द्वारा मार्गदर्शी सिद्धांत प्रतिपादित किया गया है, जिसके आलोक में इस आधार पर निरस्‍त किया गया है कि उन अभियुक्‍त द्वारा इस अवसर पर जिन साक्षीगण को आहुत किए जाने का निवेदन किया है, उन साक्षीगण का प्रतिपरीक्षण पूर्व अधिवक्‍ता द्वारा पूर्व में ही किया जा चुका है और बचाव पक्ष ने अपने आवेदन में ऐसा कोई विधिक बिंदु स्‍पष्‍ट नहीं किया है, जिससे उक्‍त साक्षीगण को आहुत किया जाना आवश्‍यक प्रतीत होता हो।

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 धारा 437 दण्‍ड प्रकिया संहिता में प्रावधान है कि यदि मजिस्‍ट्रेट द्वारा विचारण न्‍यायालय अजमानतीय अपराध के मामले साक्ष्‍य देने के लिए नियत प्रथम तारीख से सात दिन की अवधि के अंदर विचारण पूरा नहीं हो पाता है तथा यदि ऐसा व्‍यक्तिउक्‍त संपूर्ण अवधि के दौरान अभिरक्षा में रहा है, जब तक ऐसे कारणों से जो लेखबद्ध किए जायेगे, मजिस्‍ट्रेट अन्‍यथा निर्देश ना दे, मजिसट्रेट के समाधानप्रद जमानत पर छोड़ दिया जायेगा। उक्‍त धारा के अंतर्गत प्रसतुत आवेदप प्रत्र के विरूद्ध पुनरीक्षण याचिका प्रचलन योग्‍य है। अभिलेख के परिशीलन से स्‍पष्‍ट है कि हस्‍तगत प्रकरण में अभियुक्‍त पर दिनांक 05.08.2017 को धारा 34 मध्‍यप्रदेश आबकारी अधिनियम 1915 के अंतर्गत आरोप लगाया जाकर अभियोजन साक्ष्‍य हेतु नियत किया, लेकिन उक्‍त्‍ दिनांक 05.08.2017 से 2 माह अर्थात 60 दिन दिनांक 05.10.2017 तक अभियोजन साक्ष्‍य पूरी नहीं हो पाई। अभिलेख के परिशीलन से यह भी स्‍पष्‍ट है‍ कि अभ्यिुक्‍त अन्‍नू उर्फ अन्‍ना ने दिनांक 25.05.2017 को 8 पेटियों में भरी हुई अवैध रूप से रखी देशी मशाला मदिरा कुल 72 वल्‍क लीटर जप्‍त हुई थी। ऐसे मामले में अभियुक्‍त को तब तक जमानत पर नहीं छोड़ा जा सकता। जब तक कि न्‍यायालय को यह समाधान ना हो जाये कि अभियुक्‍त ने अपराध नहीं किया है अथवा आगे भी वह ऐसा नहीं करेगा। यह भी अविवादित है कि माननीय उच्‍च न्‍यायालय द्वारा दिए गए उक्‍त आदेश के प्राप्‍त होने पर अपर सत्र न्‍यायालय ने तदनुसार कार्यवाही करते हुए पुनरीक्षकर्ता अभियुक्‍त राहुल तथा अन्‍य अभियुक्‍त धारासिंग पर धारा 147, 452, 325 विकल्‍प में धारा 325 तथा 506 भाग-2 भारतीय दण्‍ड संहिता के अंतर्गत आरोप विरचित कर यह प्रकरण अन्‍यन्‍यत: सत्र न्‍यायालय द्वारा विचारण योग्‍य ना पाते हुए इसे संबंधित की ओर प्रतिप्रेषित कर विधि अनुसार कार्यवाही करने का आदेश दिया था। जिस पर से न्‍यायिक मजिस्‍ट्रेट प्रथम श्रेणी ने उक्‍त अभ्यिुक्‍तगण के विरूद्ध अपर सत्र न्‍यायाधीश के आदेश अनुसार आरोप लगाते हुए विचारण शुरू किया था।
      उभय पक्ष के तर्को पर विचार किया गया। पुनरीक्षण का वैधानिक अधिकार नहीं है जिसमें विधि या तथ्‍यो कें प्रश्‍न पर निराकरण की मांग  की जा सके। आपराधिक स्थिति में आदेश में हस्‍तक्षेप किया जा सकता है। इस संबंध में माननीय मध्‍यप्रदेश उच्‍च न्‍यायालय द्वारा गोपाल बनाम कन्‍हैया लाल 1984 एंव श्री अंशदास हिंदी विद्यापीठ बनाम नारायण दास 1986 में मार्गदर्शी सिद्धांत प्रतिपादित किए गए है जब जिस आलोचय आदेश के संबंध में तर्क किया गया है वह आदेश पुनरीक्षण योग्‍य है या नहीं। इस पर सर्वप्रथम विचार किया जाना आवश्‍यक होगा।
      अंतवर्ती आदेश के विरूद्ध पुनरीक्षण प्रचलन योग्‍य नहीं होता। जमानत के संदर्भ में जमानत देना है या नहीं देना या जमानत आदेश में कोई शर्त लगाना आदि के संबंध में आदेश अंतवर्ती होता है । इस संबंध में न्‍यायदृष्‍टांत पवन विरूद्ध हरभजन सिंह 2012 में मार्गदर्शी सिद्धांत प्रतिपादित किए गए है।

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अभियोजन की कहानी संक्षेप में इस प्रकार है कि घटना दिनांक को शाम के करीब छह बजे अभियोगी बकरी का दूध निकालने जा रही थी तो अभियुक्‍तगण ने अभियोगी को रोका और बोला कि तुम बकरी का दूध नहीं निकालना। तब अभियोगी ने कहा कि वह उसकी बकरी है और अभियोगी दूध निकालने जायेगी। इस बात पर तीनों आरोपीगण ने अभियोगी को नंगी-नंगी गालिया दी और जब अभियोगी ने गालिया देने से मना किया तो अभियुक्‍तगण ने अभियोगी को डंडे व पत्‍थर से मारा जिससे अभियोगी को दाहने हाथ के उपर पीठ में व दाहने पैर में चोट लगी। तीनों आरोपीगण जाते जाते बोले कि अब दोबारा उनके बीच में आई तो जान से खत्‍म कर देंगे। घटना अभियोगी के पति व आसपास के लोगों ने देखी व सुनी है। रात्रि अधिक होने से अगले दिन अभियोगी ने उसके पति के साथ जाकर घटना की रिपोर्ट थाना गौतमपुरा पर की जिस पर अपराध क्रमांक 162/12 अंतर्गत धारा 294 एवं 506 भारतीय दण्‍ड संहिता का मामला पंजीबद्ध किया गया।
       उक्‍त प्रकरण में विवेचना के दौरान घटना स्‍थल का मौका नक्‍शा बनाया गया अभियुक्‍तगण को पकड़कर पंचनामा बनाया गया, आहत का चिकित्‍सकीय परीक्षख कराकर चिकित्‍सकीय दस्‍तावेज अभिसाक्ष्‍य किए गए। जप्‍ती अनुसार जप्‍ती पत्रक बनाया गया। साक्षीगण के कथन लेखबद्ध किए गए। तद्परान्‍त अभियोग पत्र न्‍यायालय में पेश  किया गया। अभियुक्‍तगण ने उस पर आरोपित अपराध कारित करना अस्‍वीकार किया है। अभियुक्‍तगण ने घटना दिनांक को छह बजे अभियोगी के घर के सामने गौतमपुरा में लोकस्‍थल पर अभियोगी को मां-बहन की अश्‍लील गांलिया उच्‍चारित कर उसे एवं सुनने वालों को क्षोभ कारित किया। अभियोगी और अभियोजन साक्षी 01 का अभिकथन है कि वह आरोपीगण को पहचानती है क्‍योंकि आरोपीगण उस की रिश्‍तेदार है।
       मामले का परिक्षण दिनांक से लगभग 2-3 वर्ष की पूर्व की होकर शाम के छह बजे की रामपुर की घटना है। इस साक्षी ने अपने मुख्‍य परीक्षण में उसे मां’बहन की अश्‍लील गालिया दिए जाने और जान से मारने की धमकी दी जानी तथा रास्‍ता रोके जाने के संबंध में कोई कथन नहीं किया है। परंतु अभियोजन द्वारा पक्ष विरोधी घोषित कर किए गए प्रतिपरीक्षण के दौरान अभियुक्‍तगण ने उसे मां-बहन की अश्‍लील गालियां दी थी बचाव पक्ष के प्रतिपरीक्षण के दौरान यह भी स्‍वीकार किया है कि अभियोगी के मकान से अलग है पर दीवार एक ही है। जबकि अभियुक्‍त उसके साथ ही रहती है। चरण क्रमांक 06 में यह भी स्‍वीकार किया है कि यहां विगत् 2-3 वर्षो से उसका आना जाना नहीं है। बचाव पक्ष को अभियुक्‍तण द्वारा गाली-गलौच विगत् दो वर्षो से अलग करना एक एक नहीं है इसलिए आवश्‍यकता केवल इस बात की है कि इस संबंध में क्‍या उचित कार्यवाही होना चाहिए।

Thursday 26 April 2018

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 अभियोगी रविन्‍द्र को उपहति कारित करने का सामान्‍य आशय निर्मित किया जिसके अग्रशरण में अभियोगी को डंडे से मारपीट कर उपहति कारित की, आपस में मिलकर अभियोगी को घातक हथियार से उपहति कारित करने का सामान्‍य आशय निर्मित किया जिसके अग्रसरण में अभियोगी को घातक आयुध चाकु से मारकर उपहति कारित की। तथा अभियोगी को माता बहन की अश्‍लील गालियां सार्वजनिक स्‍थल या उसके समीप देकर अभियोगी को तथा सुनने वालों को क्षोभ कारित किया। प्रकरण में अभियुक्‍तण की गिरफ्तारी निर्विवादित है। अभियोगी तथा अभियुक्‍तगण का पर्वू से परिचित होना भी निर्ववादित है। अभियोजन की कहानी संक्षेप में इस प्रकार है कि घटना दिनांक 21 अप्रैल 2008 को अभियोगी और अभियुक्‍तण आए और अभियोगी को देखकर उसके साथ गाली देने लगे फिर अभियोगी ने कहा कि गाली क्‍यों देते हो तभी अभियुक्‍त हाथ में डंडा लेकर आया और अभियोगी को मारा फिर अभियोगी ने डंडा छीन लिया, उसी समय अभियुक्‍त ने पीछे से आकर अभियोगी की पीठ में व कमर में जाकू से मारा, जिससे उसके सिर से खून निकला फिर अभियोजन साक्षी ने छुड़ाया फिर अभियोगी का भाई अभियोगी को इलाज हेतु कार से सरकारी अस्‍पताल उज्‍जैन ले गया जहां अभियोगी का इलाज हुआ। उक्‍त्‍ घटना की सूचना जिला चिकित्‍सालय उज्‍जैन से थाना उज्‍जैन केा दी गई जिसे थाना उज्‍जैन में 283/31पर पंजीबद्ध किया गया तथा घटना का क्षेत्राधिकार गौतमपुरा होने से थाना उज्‍जैन भेजा गया तथा उक्‍त संदेह के आधार पर थाना गौतमपुरा का अपराध क्रमांक 90/2008 पंजीबद्ध किया गया। विवेचना के दौरान घटना स्‍थल का मौका नक्‍शा बनाया गया, आहत का चिकित्‍सीय परीक्षण कराकर चिकित्‍सीय दस्‍तावेज प्राप्‍त किए गए, साक्षीगण के कथन लेखबद्ध किए गए। अभियुक्‍त को पकड़कर पंचनामा बनाया गया, जप्‍ती अनुसार जप्‍ती पंचनामे बनाए गए। तद्परान्‍त अभियोग पत्र न्‍यायालय में पेश किया गया।
       उक्‍त मामले में अभियोगी को अश्‍लील गालिया देकर उसे एवं सुनने वालों को  क्षोभ कारित किया एवं अभियोगी को  घटना कारित करने के आशय से  अभियोगी को  जान से मारने की धमकी  देकर आपराधिक अभित्रास कारित किया। यह भी प्रमाणित नहीं हुआ है कि अभियुक्‍तगण ने प्रतिबंधित आकार-प्रकार का हथियार अपने आधिपत्‍य में रखा। फलस्‍वरूप अभ्यिुक्‍तगण को  धारा 294 एवं  506 भाग-2 भारतीय दण्‍ड संहिता तथा धारा 25 की उपधारा 2 आयुध अधिनियम के आरोप से दोषमुक्‍त कर प्रकरण से स्‍वतंत्र किया जाता है। अभियोजन द्वारा युक्तियुक्‍त संदेह के परे प्रमाणित किया गया है कि घटना दिनांक समय एवं स्‍थान पर अभियुक्‍तगण ने अभियोगी को उपहति कारित करने के सामान्‍य आशय के अग्ररण में उपहतियां कारित की जिनमें अभियुक्‍त ने धारदार हथियार से मारपीट कर स्‍वेच्‍छा उपह‍ति कारित की।

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उभय पक्ष द्वारा एक राजीनामा आवेदन पत्र अंतर्गत धारा 320 दण्‍ड प्रक्रिया संहिता प्रस्‍तुत किया गया। अपने आवेदन पत्र में उभयपक्ष द्वारानिवेदन किया गया है कि उनका न्‍यायालय के बाहर के राजीनाम हो गया है तथा वे प्रकरण में अब कोई कार्यवाही नहीं चाहते। फरियादी के राजीनामा कथन अंकित किए गए। प्रकरण का अवलोकन किया गया। प्रकरण के अवलोकन से विदित होता है कि प्रकरण में आरोपी के विरूद्ध भारतीय दण्‍ड विधान की धारा 341, 306 के अंतर्गत आरोप है जिसमें से भारतीय दण्‍डड विधान की धारा 341 में से स्‍वंत: राजीनामा करने में सक्षम हो। अत: उक्‍त राजीनामा विधि सम्‍मत एवं स्‍वेचछापूर्वक किया जाना प्रकट हो  रहा है। उभय पक्ष के मध्‍य आपस में मधुर संबंध स्‍थापित हो गए है। और भविष्‍य में भी उनके मध्‍य मधुर संबंध बने रहे इसे दृष्टिगत रखते हुए समाजवादी पक्षों को राजीनामा करने की अनुमति प्रदान की जाती है।
       राजीनामा स्‍वीकार किया जाता है। राजीनामा स्‍वीकार किए जाने के फलस्‍वरूप आरोपी को भारतीय दण्‍ड विधान की धारा 341 के आरोप से दोषमुक्‍त किया जाता है। शेष भारतीय दण्‍ड विधान की धारा 324 शमनीय ना होने  से उक्‍त धारा के अंतर्गत आरोपी के विरूद्ध विचारण जारी रखा जाता है। फरियादी को बाद में परीक्षण से  उक्‍त धारा के अंतर्गत आरोपी के विरूद्ध विचारण जारी रखा जाता है। फरियादी को वाद में परीक्षण, प्रतिपरीक्षण से उन्‍मुक्‍त किया गया।
       लोक अभियोजक द्वारा निवेदन किया गया कि प्रकरण के सभी महत्‍वपूर्ण साक्षियों के कथन हो चुके है तथा प्रकरण से यह प्रतीत होता है और अवलोकन उपरांत वाद विचार लोक अभियोजक को पेश किया जाता है। प्रकरण में आई साक्ष्‍य की प्रकृति  को देखते हुए आरोपीगण का धारा 313 दण्‍ड प्रक्रिया संहिता के अंतर्गत परीक्षण किया जाना आवश्‍यक नहीं है। प्रकरण में आज ही अंतिम तर्क लिखित किए गए।
       प्रकरण में निर्णय प्रथक से लिखित करवाया जाकर खुले न्‍यायालय में उद्धोषित कर हस्‍ताक्षरित एवं दिनांकित किया गया। निर्णय अनुसार आरोपी को भारतीय दण्‍ड विधान की धारा 324 के  आरोप से  दोषमुक्‍त किया गया। आरोपी के जमानत मुचलके भारमुक्‍त किए जाती है। आरोपी अनुसंधान एवं विचारण के दौरान न्‍यायिक अभिरक्षा संबंधी धारा 428 दण्‍ड प्रक्रिया संहिता का प्रमाण पत्र बनाया जावे। प्रकरण का परिणाम आपराधिक पंजी में दर्ज कर प्रकरण  को व्‍यवस्थित समयावधि में जमा किया जावे।
       परिवादी द्वारा प्रस्‍तुत किए गए परिवाद पत्र दस्‍तावेज एवं परिवादी के कथनों से उनके अवलोकन के आधार पर आरोपी के विरूद्ध प्रथम द्ष्‍टया धारा138 के अपराध के लिए पर्यापत आधार प्रकट होते है। अत: धारा 190 दण्‍ड प्रक्रिया संहिता के तहत उक्‍त अपराध में संज्ञान लिया जाता है। और आरोपी के विरूद्ध परिवाद पत्र धारा 138 के अपराध में पंजीबद्ध करने का आदेश दिया जाता है।

Wednesday 25 April 2018

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इस संबंध में कोई विवाद नहीं है कि प्रत्‍यर्थी उक्‍त अवधि के दौरान अस्‍वस्‍थ था य‍द्धपि जारी किए गए प्रमाण पत्र की तारीख में कुछ त्रुटिया हो सकती है तथापि अपीलार्थी द्वारा इस बात का खण्‍डन नहीं किया गया है कि प्रत्‍यर्थी अवसादक मनोविकृति और किसी गंभीर रोग से पीडि़त था। इस संबंध में ही विवाद नहीं किया गया है कि प्रत्‍यर्थी को उसकी नियुक्ति की तारीख से अब तक अपीलार्थी बोर्ड से सेवा के दौरान इससे पूर्व कोई दण्‍ड नहीं दिया गया था। अत: इन परिस्थितियों में अपराधीकृत अनुपस्थिति के आरोप के लिए सेवा से हटाने का दण्‍ड अधिरोपित करना अत्‍यंत कठोर और दण्‍डनीय होगा। उक्‍त मामले में ऐसे दण्‍ड निरंतर अवचार के संचयी प्रभाव के रूप में या ऐसे अन्‍य कारणो से दिया जाता है, जहां आरोप अत्‍यंत गंभीर होते है और जहां यदि भ्रष्‍टचार का आरोप साबित हो जाता है मामले में प्रत्‍यर्थी के विरोध ऐसे कोई अभिकथन नहीं है। इसके अलावा विद्यवान एकल न्‍यायाधीश ने पदुच्‍यति के आदेश को अपास्‍थ करते समय प्रत्‍यर्थी को पिछली मजदूरी देने से इंकार करके सही किया है। क्‍योंकि प्रत्‍यर्थी सुसंगत अवधि के दौरान कर्तव्‍य का निर्वहन करने में असफल रहा है।
       यह उल्‍लेखनीय है कि विलंब न्‍यायालय के मार्ग में अड़चन है। कतिपय परिस्थितियों में विलंब और उल्‍लेख घातक नहीं हो सकता है। किंतु अधिकांश परिस्थितियों में असाधरण विलंब से उस मुकदमेंवाज के लिए जो उस न्‍यायालय में समावेदन करता है घोर संकट पैदा होगा। विलंब से मुकदमेंवाजी की ओर निष्क्रियता और अकर्मण्‍रूता प्रतिबंधित होती है। ऐसा मुकदमेंवाद जो आधारभूत मानको को भूल गया अर्थात तालमटोल करने वाला समय का सबसे बड़ा लुटेरा है। विधि किसी व्‍यक्ति को अमर पक्षी की तरह सोने और जागने की अनुज्ञा नहीं देती। विलंब से खतरा पैदा होता है और मुकदमेवाजी को क्षति कारित होती है। वर्तमान मामले में यद्धपि न्‍यायालय को समावेदन करने में चार वर्ष का विलंब हुआ है तथापि रिट न्‍यायालय ने इस ओर ध्‍यान नहीं दिया। न्‍यायालय का यह कर्तव्‍य है कि वह इस बात की समवीक्षा करे कि क्‍या इतने बड़े विलंब की किसी न्‍यायोचित के बिना अनदेखी की जानी चाहिए। इसके अलावा प्रस्‍तुत मामले में ऐसी विलंबित परिस्थिति और अधिक महत्‍वपूर्ण हो जाती है।
       यह निगरानी इस आधार पर प्रस्‍तुत की गई है कि विद्यवान विचारण न्‍यायालय का आदेश कानूनन व विधिविरूद्ध व त्रुटिपूर्ण है विचारण न्‍यायालय ने इस महत्‍वपूर्ण तथ्‍य पर विचार नहीं किया कि आवेदिका, आनावेदक की वैध पत्नि है, जिसके भरण-पोषण का विधिक व नैतिक उत्‍रदायित्‍व अनावेदक का ही है। विचारण न्‍यायालय ने बात पर भी विचार नहीं किया।

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प्रकरण में यह भी निर्ववादित है कि सड़क निर्माण हेतु चार लाख रूपए स्‍वीकृत हुए थे जिनकी स्‍वीकृत सरपंच के ही अधीन थी कार्य के प्रारंभ में उपयंत्री ही लेआऊट बनाता है और मार्गदर्शन देता है। इसकेपश्‍चात कार्य पूर्णत प्रमाणपत्र पर कार्य हो जाने के उपरांत सचिव एमआईएस के आधार पर केश बुक पर जानकारी भरता है। हस्‍ताक्षर करता है, पश्‍चात सरपंच कार्यपूर्णत: प्रमाण पत्र पर हस्‍ताक्षर करता है और उसे उपयंत्री के पास भेजा जाता है। उपयंत्री भौतिक सत्‍यापन करते हुए प्राकलन करके कार्यपूर्णता प्रमाणपत्र पर हस्‍ताक्षर करता है। इसके पश्‍चात कार्यपूर्णत: प्रमाणपत्र एस्‍डीओं के पास हस्‍ताक्षर के लिए भेजा जाता है। कार्य पूर्णत: प्रमाणपत्र प्रदर्श डी-8 पर तत्‍कालीन कस्‍तूरी सचिव ने हस्‍ताक्षर कर दिए थे।
आवेदक का आवेदन संक्षेप में इस प्रकार है कि आवेदक को प्रकरण में पुलिस द्वारा झूठा फंसाया जा रहा है, वह इंदौर का मूल निवासी होकर इंदौर में ही मोबाईल रीचार्ज की दुकान लगाकर अपना व्‍यवसाय कर रहा है जहां अभियोत्री का आना-जाना जारी था, इसी आधार पर आरोपी को झूठा फंसाया गया है। आवेदक का घटना से प्रत्‍यक्ष या अप्रत्‍यक्ष रूप से कुछ भी संबंध नहीं है। ना ही उसने कोई संड़यंत्र कर घटना की है, अभियोत्री वालिग होकर अपना भला-बुरा समझती है। आवेदन प्रतिभूति प्रस्‍तुत करने को तत्‍पर है। प्रकरण में अभियोत्री के बरामदगी सहआरोपी असलम से की जा चुकी है। आवेदक से कोई बरामदगी नहीं होना है। आवेदक द्वारा साक्ष्‍य विगाड़ने की कोई संभावना नहीं है, अग्रिम प्रतिभूति देने पर वह अनुसंधान में पूर्ण सहयोग करेगा।
            अभियोजन साक्षी 5 जोकि मेडिकल विशेषज्ञ है, की साक्ष्‍य से स्‍पष्‍ट हो रहा है कि घटना दिनांक को मामले की फरियादिया को चोटे आई थी इस प्रकार मामले की फरियादिया की साक्ष्‍य की संपुष्टि मेडिकल साक्ष्‍य से हो रही है। प्रकरण में आरोपी की ओर से जो बचाव साक्ष्‍य प्रस्‍तुत की गई है, उसके अवलोकन से प्रकट हो रहा है कि आरोपी ने यह बचाव दिया है कि पैसे के लेन-देन के विवाद के कारण रिपोर्ट की गई है। यह पर यह भी उल्‍लेखनीय है कि दोनों बचाव साक्षी आरोपी के सगे-संबंधी है और निश्चित रूप से हितबद्ध साक्षी है। यहां पर यह भी उल्‍लेखनीय है कि कोई भी महिला ना तो पैसे के लेन-देन पर विवाद के कारण दहेज संबंधी रिपोर्ट कर  अपना पारिवारिक जीवन नष्‍ट नहीं करेगी। इस प्रकार आरोपी की ओर से ली गई बचाव पर विश्‍वास करने का पर्याप्‍त आधार प्रकरण में विद्यमान नहीं है।
            प्रकरण में आई हुई साक्ष्‍य से यह स्‍पष्‍ट हो रहा है कि अरोपी का दिमाग का इलाज चल रहा है। उक्‍त तथ्‍य के बारे में ना केवल फरियादिया बल्कि अन्‍य सभी साक्षी गण ने अपनी साक्ष्‍य में कथन किया है।

Monday 23 April 2018

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प्रकरण में यह भी विर्वविवादित है कि सड़कनिर्माण हेतु 4 लाख रूपए स्‍वीकृत हुएथे जिसकी स्‍वीकृत सरपंच के ही अधीन थी कार्य के प्रारंभ में उपयंत्री ही ले आऊट बनाता है और मार्गदर्शन देता है इसके पश्‍चात कार्य पूणत: प्रमाणपत्र पर कार्य हो जाने के उपरांत सचिव एमआईएस के आधार पर केशबुक में जानकारी भरता है हस्‍ताक्षर करता है, पश्‍चात सरपंच कार्यपूर्णता: प्रमाणपत्र पर हस्‍ताक्षर करता है और  उसे उपयंत्री के पास भेजा जाता है उपयंत्री भौतिक सत्‍यापन करते हुए प्राकलन करके कार्य पूर्णत: प्रमाणपत्र पर हस्‍ताक्षर करता है। इसके पश्‍चात कार्यपूर्णत: प्रमाणपत्र एसडीओ के पास हस्‍ताक्षर के लिए भेजा जाता है। कार्य पूर्णत: प्रमाणपत्र प्रदर्श डी-8 पर तत्‍कालीन सरंपच कस्‍तूरी तथा सचिव ने हस्‍ताक्षर कर दिए थे। आवेदक का आवेदन संक्षेप में इस प्रकार है कि आवेदक को प्रकरण में पुलिस द्वारा झूठा फंसाया जा रहा है, वह इंदौर का मूल निवासी होकर इंदौर में ही मोबाईल रिचार्ज की दुकान लगाकर अपना व्‍यवसाय कर रहा है जहां अभियोत्री का आना-जाना जारी था, इसी आधार पर आरोपी को झूठा फंसाया गया है। आवेदक का घटना से प्रत्‍यक्ष या अप्रत्‍यक्ष रूप से कुछ भी संबंध नहीं है ना ही उसने कोई सड़यंत्र कर घटना की है, अभियोत्री बालिक होकर अपना भला-बुरा समझती है। आवेदक प्रतिभूमि प्रस्‍तुत करने को तत्‍पर है। प्रकरण में अभियोत्री की बरामदगी सह-आरोपी असलम से की जा चुकी है। आवेदक से कोई बरामदगी नहीं होना है। आवेदक द्वारा साक्ष्‍य विगाड़ने की कोई संभावना नहीं है, अग्रिम प्रतिभूति देने पर अनुसंधान में पूर्ण सहयोग करेगा।
            अभियोजन साक्षी 5 जो कि मेडिकल विशेषज्ञ है कि साक्ष्‍य से स्‍पष्‍ट हो रहा है कि घटना दिनांक को मामले की फरियादिया को चोटे आई थी। इस प्रकार मामले की फरियादिया की साक्ष्‍य की सपुष्टि मेडिकल साक्ष्‍य से हो रही है। प्रकरण में आरोपी की ओर से जो बचाव साक्ष्‍य प्रस्‍तुत की गई है, उसके अवलोकन से प्रकट हो रहा है आरोपी ने बचाव लिया है कि वैंसे लेन देन के विवाद के कारण रिपोर्ट की गई है।  यहां पर यह भी उल्‍लेखनीय है कि दोनों बचाव साक्षी आरोपी के सगे-संबंधी है और निश्चित रूप से हितबद्ध साक्षी है। यहां पर यह भी उल्‍लेखनीय है कि कोई भी महिला मात्र पैसे के लेन-देन पर विवाद के कारण दहेत संबंधी रिपोर्ट पर अपना पारिवारिक नष्‍ट नहीं करेगी। इस प्रकार आरोपी की ओर से ली गई बचाव पर विश्‍वास करने का पर्याप्‍त आधार प्रकरण में विद्यमान नहीं है।
            प्रकरण में आई हुई साक्ष्‍य से यह स्‍ष्‍ट हो रहा है कि आरोपी का दिमाग का इलाज चल रहा है। उक्‍त तथ्‍य से बारे में ना केवल फरियादिया बल्कि अन्‍य सभी साक्षीगण ने अपनी साक्ष्‍य में कथन किया है।

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वादी का वाद संक्षेप में इस प्रकार है कि वादी के अनुसार उक्‍त विवादित भूमि प्रतिवादी के स्‍वामित्‍व की भूमि है। वादी के अनुसार प्रतिवादी को अपनी आवश्‍यकताओं की पूर्ति के लिए पैसों की जरूरत थी तथा उसने उक्‍त विवादित भूमि को विक्रय करने का अनुबंध वादी से किया था। तथा उसी दिनांक को वादी से रूपए प्राप्‍त करके वादी के हित में एक विक्रय अनुबंध पत्र उपपंजीयक के कार्यलय में पंजीबद्ध करा दिया था एवं यह तय हुआ था कि जिस दिन वादी कहेगा एक वर्ष के भीतर उक्‍त भूमि का विक्रय पत्र का पंजीयन वादी के हित में प्रतिवादी करा देगा तथा शेष बची हुई रकम को  वह वादी अदा कर देगा। वादी के अनुसार प्रतिवादी के मन में वदनियति आ गई तथा वह 200 रूपए प्राप्‍त नहीं कर रही है और ना ही वह विक्रय पत्र का पंजीयन  वादी के पक्ष में कर रही है। वादी के अनुसार  उसने जो प्रतिवादी को यह बोला कि शेष राशि प्राप्‍त कर लो एवं विक्रय पत्र निष्‍पादित करा लो तथा विवादित भूमि का कब्‍जा सौंप दो, तब प्रतिवादी ने यह कहते हुए मना कर दिया कि उसने कोई अनुबंध पत्र वादी के हित में नहीं लिखा। इस प्रकार प्रतिवादी विक्रय अनुबंध पत्र का पालन नहीं कर सका। जबकि वह करने के लिए तैयार है। अत: उपरोक्‍त आधारों पर वादी ने इस आशय की डिक्री चाही है कि उक्‍त विवादित भूमि से संबंधित विक्रय अनुबंध पत्र का पालन कराते हुए प्रतिवादी को 2000 रूपए दिलाकर विक्रय पत्र का पंजीयन वादी के हित में सम्‍पादित कराया जावे। और साथ ही विवादित भूमि का कब्‍जा वादी को दिलाया जावे।
            उक्‍त वादपत्र के जबाव में प्रतिवादी द्वारा वादी के वादपत्र में किए गए अभिवचनों को पूर्णत: अस्‍वीकार किया गया है। प्रतिवादी के अनुसार वादी द्वारा गलत आधारों पर वाद पत्र प्रस्‍तुत किया गया है। प्रतिवादी द्वारा अपने जबाव में अभिवचित किया गया है कि उसने कोई अनुबंध पत्र की  लिखापढ़ी नहीं की और ना ही प्रतिफल पाया। प्रतिवादी के अनुसार उक्‍त अनुबंधपत्र फर्जी व शूल्‍य है प्रतिवादी के अनुसार उसने कोई राशि प्राप्‍त नहीं की और ना ही उसे प्राप्‍त करना शेष है। अत: उपरोक्‍त आधारों पर प्रतिवादी द्वार वादी के वाद पत्र को अस्‍वीकार कर निरस्‍त करने का अभिवचन किया गया है।
            वादी साक्षी ने अपने कथन में बताया है कि वह प्रतिवादी को जानता है। उक्‍त साक्षी के अनुसार प्रतिवादी को पैसों की आवश्‍यकता थी और उसने उक्‍त विवादित भूमि विक्रय करने का अनुबंध दिनांक को उससे किया था और उसी दिनांक को 2 लाख रूपए उससे  प्रापत किए। उक्‍त साक्षी के अनुसार उक्‍त विक्रय अनुबंध पत्र उपपंजीयक के कार्यलय में गवाहों कें समक्ष निष्‍पादित हुआ था तथा यह  तय हुआ था कि शेष 20 हजार रूपए प्रतिवादी उससे प्रापत कर एक वर्ष के भीतर विक्रय पत्र का पंजीयन करवा देगी।

HINDI DICTATION


इस आदेश द्वारा वादीगण द्वारा प्रस्‍तुत आवेदन अंतर्गत आदेश 23 नियम 1 का निराकरण किया जा रहा है। वादीगण द्वारा प्रस्‍तुत आवेदन संक्षेप में इस प्रकार है कि प्रस्‍तुत वाद की विषय वस्‍तु के संबंध में वादीगण का प्रतिवादी से राजीनामा हो गया है तथा प्रतिवादी ने न्‍यायालय के बाहर अस्‍वस्‍थ कर दिया है कि वह विवादित संपत्ति के विक्रय करने की दशा में हम वादीगण की सहमति प्राप्‍त करेगा। इस आपसी सहमति के आधार पर वादीगण उक्‍त प्रकरण को अब आगे नहीं चलाना चाहते है तथा विवाद होने पर पुन: वादपत्र पेश करने की स्‍वतंत्रता रखते हुए इसी प्रक्रम पर वाद समाप्‍त किए जाने का निवेदन किया है।
            प्रतिवादी द्वारा मौखिक रूप से प्रकट किया गया है कि उसका वादीगण से इस प्रकरण में विवादित सम्‍पत्ति   के संबंध में न्‍यायालय के बाहर राजीनामा हो गया है। एवं उसे वादीगण द्वारा प्रस्‍तुत उक्‍त आवेदन से कोई आपत्ति नहीं है। प्रकरण का अवलोकन किया गया। प्रकरण के अवलोकन से विविध है कि वादीगण द्वारा उक्‍त दिनांक को प्रस्‍तुत वाद प्रतिवादी के विरूद्ध आदेशात्‍मक स्‍थाई निषेधाज्ञा हेतु संस्‍थित किया गया था। वादीगण एवं प्रतिवादी द्वारा संयुक्‍त रूप से पूर्व में एक आवेदन राजीनामा हेतु अंतर्गत आदेश 30 नियम 3 प्रस्‍तुत किया गया था जो न्‍यायालय द्वारा इस आधार पर निरस्‍त किया गया था कि उक्‍त राजीनामा विधि विरूद्ध उद्देश्‍य पर आधारित है।
            वादीगण द्वारा प्रस्‍तुत आवेदन वाद के परित्‍याग हेतु प्रस्‍तुत किया गया है जिसमें यह प्रकट किया गया है कि वादीगण एवं प्रतिवादी के मध्‍य राजीनामा हो गया है। इसलिए वे प्रस्‍तुत प्रकरण को आगे नहीं चलाना चाहते है। सिविल प्रक्रिया संहिता के आदेश 23 नियम 1 उपनियम 1 के अनुसार वाद संस्थित किए जाने के पश्‍चात वादी प्रतिवादी या उनमें से किसी के भी विरू अपने वाद का परित्‍याग या अपने दावे के भाग का परित्‍याग कर सकेगा। वादीगण द्वारा उक्‍त आवेदन में प्रस्‍तुत प्रकरण को परित्‍याग किए जाने हेतु न्‍यायालय की अनुमति चाही गई है। वादीगण द्वारा अपने आवेदन में यह भी व्‍यक्‍त किया है कि पुन: विवाद होने की स्थिति में वादपत्र पेश करने की स्‍वतंत्रता रखते हुए वाद पत्र बापस प्राप्‍त करना चाहता है। और वादी द्वारा नया वाद कारण उत्‍पन्‍न होने की दशा में नया वाद प्रस्‍तुत करने की अनुमति प्राप्‍त करने का  निवेदन किया है परंतु आदेश 23 नियम 1 के अनुसार वादी उक्‍त आदेश के अंतर्गत केवल प्रकरण में उत्‍पन्‍न वाद कारण के संबंध में नया वाद संस्थित किए जाने की अनुमति प्राप्‍त कर सकता है। नये वाद कारण के लिए नये वाद को संस्थित किए जाने के लिए न्‍यायालय की अनुमति की आवश्‍यकता नहीं होती। जब वादी प्रकरण को आगे नहीं चलाना चाहता, वहां न्‍यायालय वादी को प्रकरण चलाने के लिए वाध्‍य नहीं कर सकता।

70 WPM

चेयरमेन साहब मैं आपसे कहना चाहता हूँ कि हम लोग देख रहे है कि गरीबी सबके लिए नहीं है कुछ लोग तो देश में इस तरह से पनप रहे है‍ कि उनकी संपत...