Wednesday, 31 January 2018

55 WPM Shorthand Hindi Dictation For High Court, SSC, CRPF, Railways, LDC Exam Part 227

55 WPM Shorthand Hindi Dictation For High Court, SSC, CRPF, Railways, LDC Exam Part 227

पार्ट 227
कुल शब्‍द 537 समय 9 मिनिट 30 सेंकेंड

ध्‍वनि के माध्‍यम से निकलने वाले शब्‍दों को लिखने के लिए जिन शब्‍दों एवं चिन्‍हों का उपयोग किया जाता है उसे लिपी कहा जाता है। जितने जल्‍दी आप सुन सकते है उसे लिख नहीं सकते। इसके लिए कुछ ऐसी संकेत लिपीओं का विकास किया गया जिनके संकेत व चिन्‍हों के माध्‍यम से हम उतनी ही गति से लिख सकते है जितनी गति से हम शब्‍दों को सुन व समझ सकते है ऐसे सूक्ष्‍मतम संकेतो व चिन्‍हों को आशुलिपी कहा जाता है। आशुलिपी विभिन्‍य भाषाओं के लिए विभिन्‍य प्रणालियों में सीखने के विकल्‍प आज हमारे सामने है। किसी भी प्रणाली में आशुलिपी को सीखा जा सकता है। लेकिन एक अच्‍छे आशुलिपिक के लिए जरूरी है कि उसके शब्‍दों व चिन्‍हों के नियमों का पालन कर लिया जाये तो गति में तेजी से बृद्धि होगी। आशुलिपी सीखने के पश्‍चात गति बढ़ाने के लिए जरूरी होता है। डिक्‍टेशन लिखकर अभयास करना। इसके लिए एक नियत गति से डिक्‍टेशन बोलने वाला होना चाहिए जो कि अधिकांश आशुलिपिकों की समस्‍या रहती है। इसी समस्‍या के समाधान के रूप में हमने यहां बेबसाईट शुरू की है जिसमें पचास शब्‍द प्रतिमिनिट की गति से ले‍कर 100 शब्‍द प्रति मिनिट गति के आडियों डिक्‍टेशन दिये गये है हमारा प्रयास रहेगा कि समय समय पर नये डिक्‍टेशन की नई शब्‍दाबलियों के साथ आप तक पहुंचाते रहेगे। डिक्‍टेशन लिखते समय संकेतों की मोटाई और लंबाई का विशेष ध्‍यान रखना चाहिए।  क्‍योंकि संकेत के छोटे या बडे होने पर दूसरा अर्थ हो जाता है।

         अपनी सुविधानुसार संकेतो को छोटा बड़ा किया जा सकता है लेकिन संकेतों के रूपो बनावट मे समानता होनी आवश्‍यक है।आज जब हम स्‍वतंत्रता दिवस का जश्‍न मना रहे है, तो स्‍वाभाविक है कि एक लोकतांत्रिक देश के सजग नागरिक होने के नाते हम यह पड़ताल करे कि देश की आजादी के महानायकों ने हमारे लिए जो सपने देखे थे वे कितने पूरे हुए। और यदि पूरे नहीं हुए हैं तो आखिर हमसे गलतियां कहा हुई है? ऐसे में हमें सहज ही राष्‍टपिता महात्‍मा गांधी का ध्‍यान आता है जिन्‍होंने आजादी के पहले ही इस पर सम्‍यक दृष्टि सेविचार किया था कि आजाद भारत की आर्थिव व राजनीतिक व्‍यवस्‍ािा  कैसी हो। वह मानते थे कि विट्रिश साम्राज्‍य ेस आजादी तो हमारे देश के लोग हासिल कर ही लेगे लेकिन उसके बाद हमारे स्‍वराज का स्‍वरूप कैसा होगा।, क्‍या हम अंग्रेजों के ढाचे को ढोयेगे या अपना कोई नया ढ़ाचा विकसित करेगे अगर वही  व्‍यवस्‍था लागू रहीं तो देश फिर से गुलाम हो जायेगा। उनका मानना था कि आजादी के बाद जो नये शासक सत्‍ता में आएगे वे भी अंग्रेजों से कम क्रूर नहीं होगे बल्कि देश के रगरेस से वाकिफ होने के कारण वे ज्‍यादा ही क्रूरता से पेश आयेगे इसलिए उन्‍होंने देश की सामाजिक आर्थिक एवं सांस्‍कृतिक स्थितियों का विश्‍लेषण करने के बाद हिंद स्‍वराज की अवधारणा प्रस्‍तुत की थी। औद्योगिक क्रांति और साम्राज्‍यों  का विसतार  साथ साथ हुआ औद्योगिक क्रांति के दौरान क्रेन्द्रित औद्योगों के लिए कच्‍चा माल जुटाना और वहां उत्‍पादित वस्‍तुओं के बाजार की खोज करनाही साम्राज्‍यवादियों का मुख्‍य लक्ष्‍य था। सभी जानते है कि अंग्रेज यहां शासन करने नहीं बल्कि व्‍यापार करने आए थे। गुलामी की बुनियादी आर्थिक स्‍तर पर शुरू हुई, जो सामाजिक राजनीतिक और सांस्‍कृतिक गुलामी तक

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