Wednesday, 31 January 2018

Hindi Dictation For MP High Court part 226 60 WPM

Hindi Dictation For MP High Court part 226 60 WPM

कुल शब्‍द 475 समय 8 मिनिट

यह एक सुखद संयोग ही है कि पिछले दिनो ज्‍योतिबा फुले की पुन्‍य तिथी और बाबा साहेब भीम राव अंबेडकर की जन्‍म तिथि के 125 वर्ष पूरे हुए है। दोनो महापरूषों ने गरीबों और स्‍त्रीयों की शिक्षा पर बल दिया पर इनेक आदर्शो को मानने वालों और ना मामने वालों ने शिक्षा व्‍यवस्‍था को नुकसान पहुंचाया है। अब सरकारी और सस्‍ती शिक्षा शायद ही कहीं मिलती है। पिछले दिनों संविधान दिवस के अवसर पर संसद में राष्‍ट्रीय महत्‍व की बहसे हुई। सविंधान 26 नवम्‍बर 1949 को पेश किया गया था पर उसकी उद्देश्यिका मे जो कहा गया वह सपना क्‍या था? अब असहिष्‍णुता बढ़ रही है दलित मंदिरों ने नहीं जा सकते । आरक्षण को आज भी प्रतिनिधित्‍व और हिस्‍सेदारी के रूप में नहीं अपनाया जा रहा। कांग्रेस ने शिक्षा और रोजगार के ऐसे क्षेत्र विकसित किए जिनसे आरक्षण का अघोषित अंत हो गया और वही कांग्रेस के पतन का कारण भी बना। सविधान स‍मीक्षा के नाम पर राष्‍ट्रीय स्‍वयं सेवक संघ से प्रेरित मनसा लेकर भाजपा चली थी उसका भी हश्र कांग्रेस  जैसा होगा। बिहार चुनाव का एक संदेश यह भी है कि संविधान की कल्‍याणकारी योजनाओं को कुचलने का हक अब किसी को नहीं दिया जायेगा। पर अंबेडकर और लोहिया के नाम पर राजनीति करने वाली मायावती और मुला‍यम सिंह की सरकारों ने उत्‍तर प्रदेश में प्राथमिक शिक्षा का जिस तरह सत्‍यानाश किया, वह तो कांग्रेस और भाजपा की दलित विरोधी नीतिओं को भी पीछे छोड़ता है। बहुत दिनों से राष्‍ट्रीय दलित महिला आयोग के गठन की मांग उठ रही है।
         पर किसी सरकार ने इस दिशा में नहीं सोचा। ऐसे में संविधान और अंबेडकर पर चर्चा करने का मतलब नहीं है। जो लोग कहते है कि संविधान में अंबेडकर का योगदान खास नहीं है उनहें राज्‍य और अल्‍पसंख्‍यक शीर्षक से प्रस्‍तुत उस ज्ञापन को अवश्‍य देखना चाहिए जो उन्‍होंने अखिल भारतीय अनुसूचित जाति परिसंघ की ओर से भारतीय संविधान सभा के लिए तैयार किया था। यह ज्ञापन संविधान का संक्षिप्‍त रूप था। जो उन्‍होंने संविधान से पहले तैयार किया  था।

         यह कल्‍पना की बैचेन करती  है आज अगर लोकतांत्रिक, धर्म निरपेक्ष संविधान ना होता तो दलितों और आदिवासियों और अति पिछडे समाजों का क्‍या होता। जबकि संविधान के होते हुए भी देश में कल्‍याणकारी राज्‍य की परिकल्‍पना पूरी तरह साकार नहीं हो सकी। ना अस्‍पृश्‍यता खतम हुई, ना निरक्षरता। लेकिन इसके लिए ना संविधान को दोष दिया जा सकता है ना उसके निर्माता बाबा साहेब को। अंबेडकर ने कहा था संविधान कितना भी अच्‍छा क्‍यों ना हो वह अंतत: बुरा साबित होगा यदि उसका इस्‍तेमाल करने वाले बुरे लोग होगे इसके उलट उनहोंने यह भी कहा कि संविधान कितना भी बुरा क्‍या हो ना वह अंतत: अचछा साबित होगा अगर उसे इस्‍तेमाल में लाने वाले लोग अच्‍छे होगे इसलिए जनता और उसकी राजनीतिक दलों की भूमिका को संदर्भ में लाये बगैर संविधान पर कोई  निर्णय देना या टिप्‍पणी करना।

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