Tuesday, 30 January 2018

60 WPM Hindi Dictation For High Court, SSC, CRPF, Railways, LDC, Steno Exam part 36 With Mater Link

हिंदी साहित्‍य में प्रचलित क्षितिज शब्‍द से प्राय: सभी परिचित है। साहित्‍य जगत में शायद ही कोई साहित्‍यकार है जिसकी लेखनी इसके स्‍पर्श से वंचित रह गई हो। क्षितिज शब्‍द  में अंतर की गहन वेदना और अंतहीन प्रतीक्षा की अभिव्‍यंजना समाई है। इस शब्‍द का सम्‍बन्‍ध  उस युगल प्रेमी से है जिन्‍हें धरती और आकाश के नाम से जाना जाता है उदार ह्रदय धरती और उस पर फैले विस्‍तृत आकाश की चिरप्रतीक्षा इसी बिंदु पर समाप्‍त होती है। क्षितिज वो मंजिल है जिसे पाने के लिए दो मूक प्रेमी धरती और आकाश युगों का सफर करते आ रहे है यह वह स्‍थान है जहां आसमान धरती से अपने चिर मिलन की आंकाक्षा को पूर्ण करना चाहता है किंतु  क्षितिज मृग तृष्‍णा की भांति जल पी रहा। अत: मिलन कैसा? फिर उनहोंने उसे अपनी मंजिल क्‍यो बनाया। उत्‍तर शायद यही होगा कि कभी कभी जीवन में स्‍वसुख से परसुध अधिक महत्‍वपूर्ण हेा जाता है जो बराबर त्‍याग करने को विवश कर देता है बस इतनी ही तो कथा है। धरती और आकाश की बरसो पूर्व जब आकाश ने यौवन की दरहीज पर कदम रखा तब रंग बिरंगे फूलों से सजी सवरी धरती ने उसे अपनी और आकर्षित किया। आकाशा धरती की खिचा चला गया। जीवन का यह प्रथम आकर्षण प्रेम मेंबदल गया। आकाश धरती से मिलने झुका तो परिणाम प्रलय में परिणित हो गया। मनुष्‍य पक्षी सभी त्रृस्‍त हो गये। और अपने मिलन में संसार की ऐसी बर्बादी ना धरती सह सकी ना आकाश फलस्‍वरूपा मिलन की घडि़या चिरप्रतीक्षा मे परिणित हो गयी और यही से प्रारंभ हुआ  उनका अनदेखा सफर विश्‍व ने जिसे  छितिद की संज्ञा दी आज भी दोनों एक दूसरे की प्रतिक्षा करते है और मन में मिलन के प्रज्वलित द्वीप संजोए रखते है शरद ऋतु से नव वर्ष प्रारंभ होता है। धरती रंग बिरंगे फूलो से सजने लगती है। सरसो की पीली साड़ी में लिपटी गुलाब के गुलाबी फूलो से सजी सबरी धरती आसमान की कभी ना पूरी होने वाली प्रतिक्षा करती है। बसंत के सज धज सारे संसार कोखुशहाल बनाती है। बंसती हवाओं के मंद मंद झोके मिलने के गीतों का अहसास दिलाते है ।दूर स्थित शरद का नीला आकाश धरती की सज धज देख हर्षित होता है। इधर प्रतीक्षा में लीन धरती प्रतीक्षा करते करते ठक जाती है फिर  भी प्रतीक्षा की घडि़या समाप्‍त नहीं होती। वो आकाश नहीं आता वो आता भी कैसे उसके कैसे और धरती के बीच संसार की खुशियों की दीवार जो है धरती की खुशिया गम मे बदलने लगती है उसकी आत्‍मा चीतकार उठती है गीत आंहों में बदल जाते है। विरह अग्नि में जलती धरती अपने साथ विश्‍व को झुलसा देती है लू के गर्म झोके धरती की जलन का पता देते है। ऐसे मे दूर से ताकता आकाश भी दुखी होता है किंतु विवशताबस कुछ कर नहीं पाता आकाश धरती के गम को महसूस करता है उसके गम से परिचित है लेकिन असंभव को संभव कैसे बनाए।

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