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देश की 125 करोड़ की आबादी में लगभग आधे लोगों को कभी ना कभी किसी कानूनी प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है तथा कई बार लोवर कोर्ट से माननीय सर्वोच्य न्यायालय तक न्याय की आशा में जाना पड़ता है। न्यायिक प्रक्रिया में एक छोटी से विसंगति यह है कि माननीय न्यायालय के निर्णय अधिकांशत: अंग्रेजी भाषा मे आते है।
यदि कोई व्यक्ति किसी न्यायालय में न्याय के आशा में उपस्थित है और उसे प्रकरण का निर्णण उसी के समक्ष मान्नीय न्यायालय के द्वारा किया गया है, तो अंग्रेजी भाषा में होने के कारण उसको यह आभास नहीं हो पाता है कि उक्त प्रकरण में उसे न्याय मिला या नहीं। जब वह निर्णय की प्रति माननीय न्यायालय के प्रतिलिपिकार से प्राप्त करता है तो कश्मीर से कन्याकुमारी तक तथा महराष्ट्र से मिजोरम तक उक्त निर्णय की प्रति उसे अंग्रेजी भाषा में प्राप्त होती है। व दुर्भाग्य से उसे अंग्रेजी भाषा का ज्ञान नहीं है तो वह जब तक किसी द्वुभाषीय के पास ना जाये तो उसे यह पता ही नहीं चल पाता कि उसके प्रकरण में क्या निर्णय हुआ है।
सिविल प्रकरण में कई बार निर्णय से पक्षकार को अवगत होने में काफी समय लग जाता है। मैं अनुरोध करना चाहूंगा कि किसी न्यायालय निर्णय की नकल पक्षकार लेने हेतु आवेदन करे तो उक्त आवेदन में यह विकल्प होना चाहिए कि किस भाषा में लेना चाहता है, उसी भाषा में उसे निर्णय की प्रति उपलब्ध कराई जाये। तकनीकि रूप से क्षेत्रीय भाषाओं में शब्दांश का अर्थ कुछ अलग होता है लेकिन ऐसी स्थिति में यह सुझाव भी प्रेषित किया जा सकता है कि माननीय न्यायालय के निर्णय के कापी अंग्रेजी के साथ साथ पक्षकार को उसके द्वारा मांगी गई क्षेत्रीय भाषा में भी उपलब्ध कराई जाये।
बिट्रिश संसद द्वारा सन 1861 में पारित भारतीय अधिनियम द्वारा न केवल कलकत्ता और बंबई के सर्वोच्य न्यायालयों के स्थान पर उच्च न्यायालयों की स्थापना का प्रावधान किया गया बल्कि लेटर्स पेंटेंट के द्वारा बिट्रेन की महरानी के राज्य क्षेत्र में किसी ऐसे स्थल पर उच्च न्यायालय की स्थापना का प्रावधान भी किया गया। जहां किसी अन्य उच्च न्यायालय की अधिकारिता नहीं थी। सन् 1866 में पुरानी सदर दीवानी अदालत को हटाकर उसके स्थान पर 17 मार्च 1866 के लेटर्स पेंटेंट द्वारा उत्तरी पश्चिमी प्रदेशों के लिए उच्च न्यायालय आगरा अस्तित्व में आया।
बैरिस्टर एंड लॉ सर बाल्टर मार्गन और सिम्सन उत्तरी पश्चिमी प्रदेशेां के उच्च न्यायालय की क्रमश: प्रथम मुख्य न्यायाधीश और प्रथम रजिस्ट्रार नियुक्त किए।
देश की 125 करोड़ की आबादी में लगभग आधे लोगों को कभी ना कभी किसी कानूनी प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है तथा कई बार लोवर कोर्ट से माननीय सर्वोच्य न्यायालय तक न्याय की आशा में जाना पड़ता है। न्यायिक प्रक्रिया में एक छोटी से विसंगति यह है कि माननीय न्यायालय के निर्णय अधिकांशत: अंग्रेजी भाषा मे आते है।
यदि कोई व्यक्ति किसी न्यायालय में न्याय के आशा में उपस्थित है और उसे प्रकरण का निर्णण उसी के समक्ष मान्नीय न्यायालय के द्वारा किया गया है, तो अंग्रेजी भाषा में होने के कारण उसको यह आभास नहीं हो पाता है कि उक्त प्रकरण में उसे न्याय मिला या नहीं। जब वह निर्णय की प्रति माननीय न्यायालय के प्रतिलिपिकार से प्राप्त करता है तो कश्मीर से कन्याकुमारी तक तथा महराष्ट्र से मिजोरम तक उक्त निर्णय की प्रति उसे अंग्रेजी भाषा में प्राप्त होती है। व दुर्भाग्य से उसे अंग्रेजी भाषा का ज्ञान नहीं है तो वह जब तक किसी द्वुभाषीय के पास ना जाये तो उसे यह पता ही नहीं चल पाता कि उसके प्रकरण में क्या निर्णय हुआ है।
सिविल प्रकरण में कई बार निर्णय से पक्षकार को अवगत होने में काफी समय लग जाता है। मैं अनुरोध करना चाहूंगा कि किसी न्यायालय निर्णय की नकल पक्षकार लेने हेतु आवेदन करे तो उक्त आवेदन में यह विकल्प होना चाहिए कि किस भाषा में लेना चाहता है, उसी भाषा में उसे निर्णय की प्रति उपलब्ध कराई जाये। तकनीकि रूप से क्षेत्रीय भाषाओं में शब्दांश का अर्थ कुछ अलग होता है लेकिन ऐसी स्थिति में यह सुझाव भी प्रेषित किया जा सकता है कि माननीय न्यायालय के निर्णय के कापी अंग्रेजी के साथ साथ पक्षकार को उसके द्वारा मांगी गई क्षेत्रीय भाषा में भी उपलब्ध कराई जाये।
बिट्रिश संसद द्वारा सन 1861 में पारित भारतीय अधिनियम द्वारा न केवल कलकत्ता और बंबई के सर्वोच्य न्यायालयों के स्थान पर उच्च न्यायालयों की स्थापना का प्रावधान किया गया बल्कि लेटर्स पेंटेंट के द्वारा बिट्रेन की महरानी के राज्य क्षेत्र में किसी ऐसे स्थल पर उच्च न्यायालय की स्थापना का प्रावधान भी किया गया। जहां किसी अन्य उच्च न्यायालय की अधिकारिता नहीं थी। सन् 1866 में पुरानी सदर दीवानी अदालत को हटाकर उसके स्थान पर 17 मार्च 1866 के लेटर्स पेंटेंट द्वारा उत्तरी पश्चिमी प्रदेशों के लिए उच्च न्यायालय आगरा अस्तित्व में आया।
बैरिस्टर एंड लॉ सर बाल्टर मार्गन और सिम्सन उत्तरी पश्चिमी प्रदेशेां के उच्च न्यायालय की क्रमश: प्रथम मुख्य न्यायाधीश और प्रथम रजिस्ट्रार नियुक्त किए।
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