Thursday, 1 February 2018

45 WPM Hindi Dictation for High Court, SSC, CRPF, Railways, LDC Exam Post 255 With Legal Matter

45 WPM Hindi Dictation for High Court, SSC, CRPF, Railways, LDC Exam Post 255 With Legal Matter


पार्ट 255

कुल शब्‍द 435 समय 9 मिनिट 45 सेंकेंड


45 WPM Hindi Dictation for High Court, SSC, CRPF, Railways, LDC Exam Post 255 With Legal Matter


इस धारा का उद्देश्‍य दोषी व्‍यक्ति द्वारा अपराध के शिकार व्‍यक्ति को प्रतिकर देने तथा अभियोजन में उपगत व्‍ययों को चुकाने तथा उनकी  भ्रर्त्‍सना करने के लिए समुचित व्‍यवस्‍था करना है। दण्‍ड न्‍यायालय का कार्य अपराधी को दंडदेना और व्‍यवहार विषयक सिविल न्‍यायालय का कार्य, दोषकर्ता द्वारा विक्षुब्‍ध पक्षकार को कारित की गई क्षति अथवा हानि के लिए प्रतिकर दिलवाना है। तथापि यदि इन दोनों प्रक्रियाओं को सम्मिलित किया जा सकता है और उसके फलस्‍वरूप दाण्डिक और व्‍यवहार संबंधी आदेशिकाएं प्रभावित भी नहीं होती,  तो ऐसा करना उचित और इष्‍टकर होगा कयोंकि इससे दो भिन्‍य न्‍यायालयों में उपचार प्राप्‍त करने में समय और धन दोनों की बचत होगी। धारा 357 इसी लक्ष्‍य को लेकर आगे बढ़ती है।
         इसे धारा के अधीन प्रतिकर का आदेश दिया जा सकता है चाहे भले ही अपराध जुर्माने से दंडनीय हो और जुर्माना दिनांक 23/03/2007 से वास्‍तविक रूप से लगाया गया हो। परंतु ऐसे प्रतिकर का आदेश तभी दिया जा सकता है जब अभियुक्‍त को दोषसिद्धी प्रदान की गई हो। उसके विरूद्ध दंडादेश पारित किया गया हो। प्रतिकर किसी भी हानि या क्षति के लिए देया हो सकता है, चाहे वह शारीरिक हो या अर्थ संबंधी प्रतिकर हो। न्‍यायालय को इस निमि‍त्‍य क्षति की प्रकृति, क्षति की प्रणिति की रीति को अभियुक्‍त भुगतान क्षमता और अन्‍य प्रासंगिक हेतुको पर ध्‍यान देना चाहिए। गिरधारी लाल विरूद्ध महाराष्‍ट्र राज्‍य के मुकदमें में अभिमत व्‍ययक्‍त किया गया था कि धारा 357 के अधीन प्रतिकर देने के आदेश के लिए जुर्माने के मूल दंडादेश की प्रणीति एक अपरिहार्य शर्त है। जुर्माने के दंड की प्रणीति के बिना यदि न्‍यायालय राज्‍य के पक्ष में अभियुक्‍त यानी अभियोजन के उपगत व्‍ययों को चुकाने के लिए 3000 रूपए के भुगतान का निर्देश देती है और विशेषकर तब जब अभियुक्‍त्‍ को परीवीक्षा पर किया गया हो तो उसे औचित्‍य पूर्ण नहीं माना जा सकता है।

         इसी प्रकार धारा 357(1) के अधीन प्रतिकर के भुगतान का निर्देश  जब अभियता को जुर्माने से दण्डित किया हो, अथवा इस प्रकार जिसका एक भाग भी दण्डित हो प्रतिकर की धनराशि को किसी वसूली गई जुर्माने की राशि से देने का निर्देश दिया जाना चाहिए। इस प्रकार प्रतिकर की राशि को कभी भी जुर्माने धन राशि से अधिक नहीं होना चाहिए। जुर्माने की राशि का परिणाम पुन: उस पुर्नसीमा पर निर्भर करती है जो कि अपराध विशेष के लिए दंडादिष्‍ट की जा सकती है और उस पर विस्‍तार तक निर्भर करती है। जिस तक अत्‍यंत उदारता के साथ और उपर्युक्‍त निर्धनों के अधीन न रहते हुए भी की जा सकती है। परंतु यह केवल तभी लागू होता है जब जुर्माने के दंडादेश की प्रणीति नहीं की गई हो।

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