जब किसी
थाने के भारसाधक अधिकारी ने किसी अपराध के घटित रिपोर्ट के बारे में लिखने से
इंकार किया है, तथा बताई गई रिपोर्ट के पूर्णत: विपरीत तथा झूटी रिपोर्ट लिखी है,
तब उसे भारतीय दण्ड संहिता की धारा 177 के अधीन दोष सिद्ध पाया जा सकता है। प्रथम
सूचना धारा 154, दण्ड प्रक्रिया संहिता के अधीन ऐसा ब्यान है जिस पर पुलिस
अधिकारी को शब्द का पता लगाने तथा सामाज्ञ्री एकत्रित करने के लिए अन्वेषण को
शुरू करना होता है। यह अनुश्रुत साक्ष्य पर भी हो सकती है। यह धारा 193, भारतीय
दण्ड विधान की अपेक्षाओं की पूर्ति नहीं करती चाहे यह मिथ्या सिद्ध भी हो जाये।
धारा 154, दण्ड प्रक्रिया संहिता के अधीन ब्यान देते समय सूचना देने वाला व्यक्ति
सपथ द्वारा अथवा कानून के किसी स्पष्ट उपबंध से तथ्य बताने के लिए विधिक रूप से
आवद्ध नहीं है किसी प्रयोजन के लिए की गई एफआई का ब्यान से विद्धेष पूर्ण
अभ्यिोजन की कार्यवाही की जा सकती है किंतु यह धारा 193, भारतीय दण्ड विधान के
अधीन दण्डनीय अपराध का आधार नहीं हो सकता । इसलिए धारा 154 का ब्यान धारा 340,
दण्ड प्रक्रिया संहिता के अधीन अभियोजन का भी आधार नहीं हो सकता।
जब एफआईआर लेखबद्ध कराने वाले व्यक्ति
की जब एफआईआर लिखाने के बाद मृत्यु हेा गई है तब एफआईआर के बृतांत को अनदेखा नहीं
किया जा सकता क्योकि यह घटना का सबसे पहला बृतांत है जो कि दाण्डिक विचारण के लिए
महत्वपूर्ण होता है। अब यह सुस्थापित विधी है कि जब कोई मजिस्ट्रेट किसी अपराध के फायनल रिपोर्ट
प्राप्त करता है और यह तय करता है कि अपराध का संज्ञान ना लिया जाये और कार्यवाही
समाप्त की जाये अथवा वह इस विचार का है कि एफआईआर में उल्लिख्ति कुछ व्यक्तियों
कें विरूद्ध कार्यवाही करने के लिए पर्याप्त आधार नहीं है, तब मजिस्ट्रेट का यह
कर्तव्य है कि एफआईआर की सूचना देने वाले व्यक्ति को नोटिस दे तथा उसे रिपोर्ट
पर विचार करते समय सुनवाई का अवसर दे।
जब एफआईआर की सूचना देने वाला न्यायालय में उपस्थित होता है और फायनल रिपोर्ट के स्वीकार
किए जाने वाले विरोध प्रकट करता है तब मजिस्ट्रेट उसे प्रोटेस्ट पिटीशन अथवा कुछ
अन्य सामाज्ञ्री अथवा सपथ पत्र यह दर्शित करने के लिए दाखिल करने की अनुमति दे
सकता है कि उक्त फायनल रिपोर्ट क्यों ना स्वीकार की जाये।
इसके अतिरिक्त किसी घटना में चोटग्रस्त
व्यक्ति अथवा मृत्क का कोई संबंधी मजिस्ट्रेट से किसी नोटिस की प्राप्ति का
हकदार नहीं है किंतु यदि उसे किसी भी स्त्रोत से यह सूचना मिलती है कि फायनल
रिपोर्ट पर मजिस्ट्रेट द्वारा विचार किया जाना है तो वह मजिस्ट्रेट से निवेदन कर
सकता है। मजिस्ट्रेट ऐसा निवेदन सुनने के लिए आबद्ध है। यदि मजिस्ट्रेट पुलिस
द्वारा प्रस्तुत फायनल रिपोर्ट में से कुछ अभियुक्तों के विरूद्ध तेा अपराध का
संज्ञान लेता है और कुछ के विरूद्ध फायनल रिपोर्ट स्वीकार कर लेता है। तब भी
मजिस्ट्रेट से अपेक्षा है कि
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