उभय
पक्ष द्वारा एक राजीनामा आवेदन पत्र अंतर्गत धारा 320 दण्ड प्रक्रिया संहिता
प्रस्तुत किया गया। अपने आवेदन पत्र में उभयपक्ष द्वारानिवेदन किया गया है कि
उनका न्यायालय के बाहर के राजीनाम हो गया है तथा वे प्रकरण में अब कोई कार्यवाही
नहीं चाहते। फरियादी के राजीनामा कथन अंकित किए गए। प्रकरण का अवलोकन किया गया।
प्रकरण के अवलोकन से विदित होता है कि प्रकरण में आरोपी के विरूद्ध भारतीय दण्ड
विधान की धारा 341, 306 के अंतर्गत आरोप है जिसमें से भारतीय दण्डड विधान की धारा
341 में से स्वंत: राजीनामा करने में सक्षम हो। अत: उक्त राजीनामा विधि सम्मत
एवं स्वेचछापूर्वक किया जाना प्रकट हो
रहा है। उभय पक्ष के मध्य आपस में मधुर संबंध स्थापित हो गए है। और भविष्य
में भी उनके मध्य मधुर संबंध बने रहे इसे दृष्टिगत रखते हुए समाजवादी पक्षों को
राजीनामा करने की अनुमति प्रदान की जाती है।
राजीनामा स्वीकार किया जाता है। राजीनामा
स्वीकार किए जाने के फलस्वरूप आरोपी को भारतीय दण्ड विधान की धारा 341 के आरोप
से दोषमुक्त किया जाता है। शेष भारतीय दण्ड विधान की धारा 324 शमनीय ना
होने से उक्त धारा के अंतर्गत आरोपी के
विरूद्ध विचारण जारी रखा जाता है। फरियादी को बाद में परीक्षण से उक्त धारा के अंतर्गत आरोपी के विरूद्ध विचारण
जारी रखा जाता है। फरियादी को वाद में परीक्षण, प्रतिपरीक्षण से उन्मुक्त किया
गया।
लोक अभियोजक द्वारा निवेदन किया गया कि
प्रकरण के सभी महत्वपूर्ण साक्षियों के कथन हो चुके है तथा प्रकरण से यह प्रतीत
होता है और अवलोकन उपरांत वाद विचार लोक अभियोजक को पेश किया जाता है। प्रकरण में
आई साक्ष्य की प्रकृति को देखते हुए
आरोपीगण का धारा 313 दण्ड प्रक्रिया संहिता के अंतर्गत परीक्षण किया जाना आवश्यक
नहीं है। प्रकरण में आज ही अंतिम तर्क लिखित किए गए।
प्रकरण में निर्णय प्रथक से लिखित करवाया
जाकर खुले न्यायालय में उद्धोषित कर हस्ताक्षरित एवं दिनांकित किया गया। निर्णय
अनुसार आरोपी को भारतीय दण्ड विधान की धारा 324 के आरोप से
दोषमुक्त किया गया। आरोपी के जमानत मुचलके भारमुक्त किए जाती है। आरोपी
अनुसंधान एवं विचारण के दौरान न्यायिक अभिरक्षा संबंधी धारा 428 दण्ड प्रक्रिया
संहिता का प्रमाण पत्र बनाया जावे। प्रकरण का परिणाम आपराधिक पंजी में दर्ज कर
प्रकरण को व्यवस्थित समयावधि में जमा किया
जावे।
परिवादी द्वारा प्रस्तुत किए गए परिवाद
पत्र दस्तावेज एवं परिवादी के कथनों से उनके अवलोकन के आधार पर आरोपी के विरूद्ध
प्रथम द्ष्टया धारा138 के अपराध के लिए पर्यापत आधार प्रकट होते है। अत: धारा 190
दण्ड प्रक्रिया संहिता के तहत उक्त अपराध में संज्ञान लिया जाता है। और आरोपी के
विरूद्ध परिवाद पत्र धारा 138 के अपराध में पंजीबद्ध करने का आदेश दिया जाता है।
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