Tuesday, 30 January 2018

55 WPM Hindi Dictation For High Court, SSC, CRPF, Railways, LDC Exam Part 37 With Matter Link


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सृष्टि के अदिकाल से ही नारी की महत्‍वता अछन्‍न है। नारी सृजन की पूर्णत: है उसके अभाव में मानवता के विकास की कल्‍पना असंभव है। समाज के रचना विधान में नारी के मां प्रियसी पुत्री एंव पत्नि जेसे अनेक रूप है। वह समपरिस्थितियों में देवी है तो विषम परिस्थितियों में दुर्गा भवानी। 


वह समाज रूपी गाड़ी का एक पहिया है। जिससे बिना सम्रग जीवन ही पंगु है। सृष्‍टि चक्र में सत्री एक दूसरे के पूरक है। मानव जाति के इतिहास पर दृष्टिपात करे तो ज्ञात होगा कि जीवन में कौ‍टुम्‍बिक राजनीतिक साहित्‍यक धार्मिक सभी क्षेत्रों में प्रारंभ से ही नारी की अपेक्षा पुरूष का आधिपत्‍य रहा है। पुरूष ने अपनी इस श्रेष्‍टता और शक्ति सम्‍पन्‍नता का लाभ उठाकर स्‍त्री जाति पर मनमाने अत्‍याचार किए है। 


उसने नारी की स्‍वतंत्रता का अपहरण कर उसे पराधीन बना दिया। सहयोगनी या सहचरी के स्‍थान पर उसे अनुच्‍छी बना दिया और स्‍वयं  उसका पति, स्‍वामी नाथ प‍थ प्रदर्शक और साक्षात ईश्‍वर बन गया। इसप्रकार मानव जाति के इतिहास में नारी की स्थति दयनीय बनकर रह गई है। उसकी जीवन धारा रेगिस्‍तान एवं हरे भरे बगीचे के मध्‍य प्रतिफल प्रवाह मात्र है प्राचीन भारतीय समाज में नारी जीवन के स्‍वरूप की व्‍याख्‍या करे तो हमे ज्ञात होगा कि बौद्धिक काल में नारी को महत्‍वपूर्ण स्‍थान दिया जाता था। 


वह सामाजिक धार्मिक और आध्‍यात्‍मिक सभी क्षेत्रों में पुरूष के साथ मिलकर कार्य करती थी। रोमासा और लोपामुद्रा आदि अनेक नारियों ने ऋगवेद के सूत्रो की रचना की थी। रानी केकई ने राजा दशरथ के साथ युद्ध भूमि मे जाकर  उनकी सहायता के रामायण काल त्रेतास युग में भी नारी की महत्‍वता अछन्‍न थी। इस युग में सीता अनुसुईया एवं सिलोचना आदि आदर्श नारी हुई। महाभारत काल यानी द्वापर युग में नारी पारिवारिक सामजिक एवं राजनीतिक गतिविधियों में पुरूष के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलने लगी। संचालन की केन्‍द्रीय बिंदु थी द्रोपदी, गांधारी और कुंती इस युग की शक्ति थी। 


आधुनिक नारी आधुनिक युग के आते आते नारी चेतना का भाव उत्‍कृष्‍ट रूप से जागृत हुआ । युग युग की दास्‍तां से पीडित नारी के प्रति एक व्‍यापका सुहानुभूमि एक व्‍यापक दृष्टिकोण अपनाएं जाने लगा। बंगाल मे राजा राम मोहन राय और उत्‍तर भारत मे महार्षि दयानंद सरस्‍वती ने नारी को पुरूषों के अनाचार की छाया से मुक्‍त करने के लिए क्रांति का विगुल बजाया। अनेक कवियों की वाणी भी इन दुखी नारियों की सहानुभूति के लिए अवलोकनीय है। 


कविवर सुमित्रानंदन पंत ने तीन स्‍वर में नारी स्‍वतंत्रता की मांग की। मुक्‍त करों नारी को मानव चिरनंदनी नारी को युग युग की निर्मल कारा से जन्‍मी सबकी प्‍यारी को। अकसर जनता के समक्ष खड़े होकर बोलने का मौका सबको नहीं मिल पाता किंतु हम सब अपने परिवार मित्र सहकर्मी सहपाठी आदि के बीच अथवा समूह में बातचीत करते है। 


बातचीत किस प्रकार की जाये यह भी एक कला है। भाषण देने की भांति आपसी बातचीत करना एक ऐसी आनंद दायक कला है जिसके द्वारा हम तनाव मुक्‍त हो सकते है इसके लिए पैसा खर्च करने की जरूरत नहीं है। इसके फायदे भी बहुत है। इससे हमें शिक्षा मिलती है और वैमनस्‍ता दूर होकर और आपसी संबंधों में बनाती है और हमारा ज्ञान बढ़ाती है।

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