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Hindi Dictation for High Court, SSC, CRPF, Railways, LDC Exam Post 271
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भाजपा ने 1998
में भी सरकार बनाने के लिए सुखराम की पार्टी से गठबंधन किया था पर तब कही यह बोध
हाबी था कि तात्कालिक फायदे के लिए अपने मूल विश्वासों के साथ समझौता नहीं किया
जायेगा। आडवाणी वे नेता थे, जिन्होंने जेल हवाला डायरी में नाम आने के बाद लोकसभा
से स्तीफा दे दिया था जबकि बाजपेयी एक मत से लोकसभा में विश्वास मत हार गये थे।
इसके विपरीत नरेन्द्र मोदी जी और अमित शाह के नेतृत्व में नई भाजपा ने नई
राजनीतिक गठबंधनों को लेकन अधिक व्यहारिक रवैया अपनाया है। बेलगांव सत्ता की भूख
के तहत सत्ता विस्तार की कामना में हर नैतिक बाधा त्यागने की तैयारी है फिर
चाहे पूर्वोत्तर में सरकारें बनाने के लिए दलों को तोड़ने की इच्छा हो या गोवा
में चुनाव में दसरे स्थान पर रहकर भी रातोरात गठबंधन करके सरकार बनाने की बात हो
अथवा तमिलनाडु ही क्यों ना हो जहां पार्टी ने सारे विकल्प खुले रखे है। संदेश स्पष्ट
है भाजपा सत्ता हासिल करने के लिए भय और प्रलोभन के मिश्रण से राष्ट्रीय राजनीति
में अपनी प्रभुत्व का स्तेमाल करने में नहीं हिचकेगी।
इसके पहले भारतीय राजनीति में यदि कोई
पार्टी राज्य शक्ति के सफल स्तेमाल से लगभग एकाधिकार बादी स्थिति में पहुंची थी
तो वह इंद्रा गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस थी। तब विपक्ष शासित सरकारों को
बर्खास्त करना हो या महत्वपूर्णराज्यों में कठपुतली मुख्यमंत्री की नियुक्ति
करना हो इंद्रा के शासन वाली कांग्रेस ने लगभग सारे राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों को
शीर्ष पर मौजूद व्यक्तित्व् के अधीन लाकर अपना प्रमुत्व स्थापित कर लिया था।
लगता है इदिरा के इसी खेल का मोदी-शाह की
जोड़ी अनुसरण करना चाहती है। 2014 के बाद
खण्डित और नेतृत्वहीन विपक्ष के होते यह काम आसान है लेकिन बढ़ते ‘कांग्रेसीकरण के
कारण’ भाजपा के सामने तात्कालिक राजनीतिक तुष्टि के लिए वैचारिक आधार की बलि
चढ़ाने का जोखिम पैदा हो गया है। कांग्रेस के विपरीत भाजपा के पास आरएसएस की टिकाऊ
सांगठनिक मशीन है जो निरपेक्ष सत्ता की इसकी तलाश के दौरान किसी नैतिक समझौते के
नुकसान की भरपाई कर सकती है लेकिन भाजपा नेतृत्व को भी यह समझना चाहिए कि
राजनीतिक विश्वसनीयता कोई फिक्स डिपाजिट नहीं है बल्कि ऐसी चीज है जिसका लगातार
नवीनीकरण करते रहना पढ़ता है। ध्यान रहे कि यूपीए 2 के तहत कांग्रेस के बढ़ते
घोटाले के खिलाफ भाजपा ने जो कड़ा रूख अपनाया उसने उसे सत्ता में लाने की प्रमुख
भूमिका निभाई थी। ‘बहुत हुआ भ्रष्टाचार अबकी बार मोदी सरकार’ ऐसा नारा था, जो
बहुत ताकत के साथ 2014 के चुनाव अभियान मे गूंजा था।
सत्त में साढे तीन साल बाद भी उच्च पदों
के घोटालों की जांच में कोई प्रगति नहीं हुई है। प्रधानमंत्री मोदी दावा कर सकते
है कि उनकी सरकार पर यूपीए वर्षो के आकार के एक भी घोटालें का दाग नहीं लगा है
लेकिन इसकी बजह तो यह भी हो सकती है कि जांच एंजेसी को सत्तारूढ़ दल पर कार्यवाही
की स्वायत्यता दिखाई नहीं देती। भाजपा यदि दागी नेताओं के साथ समझौता करना नहीं
बंद करती तो देर सवेर जनता सवाल पूछेगी जैसा कि उनके पूर्व पार्टीजन अरूण शौरी ने
कहा था, क्या भाजपा गाय वाली कांग्रेस बन रही है?
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