पार्ट 257
कुल शब्द
455
Dictation For High
Court, Also for SSC, Court LDC Exam Post 257 With Matter
20/02/1996
की घटना होकर 29 तारीख को न्यायालय के समक्ष पहुंचा हो यह अभियोजन से यह अपेक्षा
नहीं की जाती कि मजिस्ट्रेट को प्रथम सूचना रिपोर्ट के घंटे विलय का वह स्पष्ट
करे परंतु तत्समय विद्यमान परिस्थिति के अंतर्गत उसे यथा संभव युक्तियुक्त समय के भीतर अवश्य भेंज
देना चाहिए। अत: जहां कोई रिपोर्ट दिन में बारह बजे दाखिल की गई है और प्रकरण के
तथ्यों और परिस्थितियों कें संदर्भ में तथा पुलिस थाने पर पुलिस बल की पर्याप्त
संख्या के अभाव को ध्यान में रखकर यदि उसे शाम छह बजे भेज दिया जाता, वहां यह
नहीं कहा जायेगा कि विलंब किया गया।
इस संहिता की धारा 157-1 में प्रयुक्त
तत्काल शब्द का तात्पर्य निसंदेह केवल यह है कि एक युक्तियुक्त संदेह के भीतर
और बिना किसी अयुक्तियुक्त विलबं उसे मजिसट्रेट को अग्रसारित कर देना चाहिए। फिर
भी उसकी प्रति को तत्काल नहीं भेजा जाता तो केवल इसी कारण अभियोजन का संपूर्ण
प्रकरण संदेहपूर्ण नहीं बन जाता अपितु इस बजह से न्यायालय को सतर्क हो जाना पड़ता
है और विलंक का स्पष्टीकरण जानने का प्रयास करना होगा यदि नहीं किया जाता तो यह
सावधानी रखनी चाहिए। निर्दोष व्यक्तियों को मिथ्यापूर्ण ढंग से नही फसाया गया
है।
जहां घटना प्रात: दस बजे के लगभग घटित
हुई हो और क्षतिव्यक्ति को अस्पताल में
भरती करया दिया गया हो जो अपना कथन करने में अस्मर्थ और साक्षी द्वारा कथन के
अधार पर सायम काल सात बजे प्रथम सूचना रिपोर्ट दाखिल की गई हो प्रतिरक्षा पक्ष
द्वारा यह दलील दी गयी हो कि अभियोजन साक्षी के अनुसार स्टेशन गई थी जहां अपराध
के शिकार व्यक्ति द्वारा रिपोर्ट की गई ततपश्चात विचारण न्यायालय द्वारा साक्षी
काउक्त कथन जो कि एक विभ्रम की ओर किया गया प्रतीत होता है। उक्त धारा 439-1 के
अधीन जमानत पर विस्तार के विषय में विनिश्चित करते समय न्यायालय को सुसंगत
हेतुकों पर विचार करना अपेक्षित है। उच्च न्यायालय के आदेश से यह प्रकट होना
चाहिए कि जब वह जमानत की प्रार्थना पर राय का निर्माण कर रहा था तब वह उन कारणों के
प्रति सजग और सतर्क था जो सृजनशीलता द्वारा जमानत की प्रार्थना को खारिज करने के
लिए व्यक्त किए गए थे। वर्तमान प्रकरण एक ऐसा ही मामला था जिसमें ऐसी
परिस्थितियां अतरविलित थी जिनमें जमानत मंजूर करने के लिए विशेष कारणों की अपेक्षा
का पुर्नविलोकन करने की अपेक्षा अंतरग्रस्त थी। प्रकरण के तथ्यों और अभियुक्त
के पूर्व इतिहास तथा इतिवृत्तों पर विचार करते हुए जमानत को अस्वीकृत कर दिया
था। उच्च न्यायालय द्वारा ऐसी किसी बात को उल्लिखित किए बिना ही क्यों वह आदेश
के विरूद्ध राय का निर्माण कर रहा है? जमानत को मंजूर करना एक गलत विनिश्चय था।
धारा 439 के अधीन जमानत रद्ध करने का प्रश्न विनिश्चित रूप से जमानत की संस्वीकृति
के प्रश्न से भिनन है।
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