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प्रतिदावा को
मात्र धन के बाद में स्वीकार किया जा सकता है, कब्जा एवं स्वामित्व के बाद में
नहीं। इसी सिद्धांत को जसबंत सिह बनाम दर्शन कुमार एआईआर 1983 पटना के वाद में
विरोधी दृष्टिकोण को अपनाया और अभिधारित किया कि प्रतिदावा धन-संबंधी वाद तक ही
सीमित नहीं है। मुजरा और प्रतिदावा में भिन्यता है। मुजरा वादी के विरूद्ध
प्रतिदावा है। किंतु प्रतिवादी जब प्रतिदावा पेश करता है तो वह प्रतिवाद होता है।
यही दृष्टिकोण पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय ने सुमन कुमार बनाम सेंट थॉमस स्कूल
एआईआर 1988 पंजाब एवं हरियाणा 39, के बाद में अपनाया। अभिनिर्णीत किया कि
प्रतिवादी किसी भी प्रकार के वाद में प्रतिदावा प्रस्तुत कर सकता है। आवश्यक
नहीं कि ऐसा वाद धन संबंधी हो।
किंतु, उड़ीसा उच्च न्यायालय ने इस मत
का समर्थन किया। मेसर्स रामसेवक बनाम सरफुद्दीन एआईआर 1991 उड़ीसा 51, के वाद में
अभिधारित किया कि प्रतिवादी उन वादों में भी संभंव है जो धन-संबंधी नहीं है।
बंबई उच्च न्यायालय ने एमएफ कटारिया
बनाम एचएफ कटारिया एआईआर 1994 बाम्बे 198, के वाद में इस मत को स्वीकार किया कि
प्रतिदावा आदेश 8, नियम 6-क, के अंतर्गत् धन संबंधी बाद तक ही सीमित नहीं है।
प्रतिवाद पत्र में यह अभिवाक् नहीं किया
गया था कि प्रतिवादी बीमार यूनिट था और वादी कोई धनराशि बसूल नहीं कर सकता था। संशोधना प्रार्थना पत्र द्वारा यह
अभिवाक् किया जाना था कि प्रतिवादी बीमार यूनिट था और बीमारी के दौरान के समय का
ब्याज नहीं लगाया जा सकता।
यह ऐसा अभिवाक् नहीं है जिससे बादी के
बाद पर कोई प्रभाव डाले। ना तो साक्ष्य ही पेश किए गऐ थे ना ही निश्चित किये गए
थे। प्रतिवादी बीमार यूनिट था अथवा नहीं
यह तभी अनिश्चित किया जा सकता है जब ऐसा
अभिवाक् करने की अनुमति प्रदान कर दी जाती है। इस स्तर पर यदि अभिवाक्
करने की अनुमति प्रदान कर दी जाती है तो
वादी के वाद पर कुप्रभाव नहीं पड़ेगा। (मेसर्स जे एस टिन्स फेब्रीकेशन
बनाम यूको बैंक)
आदेश 8 नियम 1 का उपनियम 1, न्यायालय को
शक्ति प्रदान करता है कि वह प्रतिवादी को जबाव दावा दाखिल करने के लिए न्यायोचित
समय प्रदान करे। प्रत्येक मामले के तथ्यों एवं परिस्थियिातें के आधार पर न्यायालय
जबाव दावा दायर करने का समय प्रदान करता है, किंतु प्रतिवादी अधिकार के रूप में
जबाव दावा दाखिल करने के कर्इ अवसर की मांग
नहीं कर सकता।
अस्थाई निषेधाज्ञा आदेश पारित करने के
पूर्व किसी भी समय प्रतिवादी से जबावदावा दाखिल करने हेतु कह सकता है। ऐसे मामले में वादी को अधिकार प्राप्त हो जाता है कि अस्थाई निषेधाज्ञा
प्राप्त करने हेतु प्रति जबाव दावा दाखिल करे। यह अधिकार उसे आदेश 8 नियम 9 के तहत प्राप्त होता
है यद्धपि आदेश 8 नियम 10 कें अंतर्गत् प्रार्थना नहीं की जा सकती। किंतु धारा
151 के अंतर्गत प्राप्त शक्ति का प्रयोग
करते हुए प्रार्थना पत्र न्यायालय द्वारा स्वीकार किया जा सकता ।
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