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पक्ष
द्वारा एक बात दर्शित कर देने के बाद कि लोक दस्तावेज अर्थात जर्नल डायरी के
मामले के अभिलेख के बारे में और कुछ प्राधिकारियों को विशेष रिपोर्ट भेजने के और
उस व्यक्ति के लौटने के बारे में, जो पुलिस से विशेष रिपोर्ट कुछ प्राधिकारियों
के पास ले गया है, नियमित प्रविष्टिया की जाती है तो यह कानूनी उपधारणा होगी कि
शासकीय कर्तव्यों का सम्यक रूप से पालन किया गया है। उचित यह होता यदि अभियोजन
यह साबित करता कि मजिस्ट्रेट अथवा पुलिस अधीयक्ष को प्रथम सूचना कब प्राप्त हुई
थी, किंतु यदि ऐसा नहीं किया गया है तो यह तथ्य अभियोजन के मामले को असफल बनाने
के लिए पर्याप्त नहीं है।
यदि कत्ल के एक घंटे बाद विस्तृत व साफ
लिखी एफआईआर में यह इंद्रराज नहीं है कि मजिस्ट्रेट को कब भेजी गई है तो यह तथ्य
महत्वपूर्ण हो जाता है और सफाई पक्ष के इस तथ्य की पुष्टि करता है कि यह रिपोर्ट
उस समय के बाद लिखी गई है। जिस समय इसका लिखा जाना बताया जाता है। धारा 157 के
अधीन रिपोर्ट को थाने से भेजने का समय रिपोर्ट में भरने को कोई विधान नहीं है।
धारा 157 के अधीन जिला मजिस्ट्रेट को भेजी जाने वाली स्पेशल रिपोर्ट में प्रत्येक
देरी से आवश्यक रूप से यह उपधारित नहीं किया जा सकता कि प्रथम सूचना उस समय नहीं
दी गई जब इसका लेखबद्ध होना कथित है। अत: इस पर बाद में समय व तारीख अंकित की गई
अत: अन्वेषण निष्पक्ष नहीं है। जब एफआईआर में पहले का समय डाला जाना सिद्ध हो तब
ठोस मुक्ति के निष्कर्ष में हस्तक्षेप अनुचित है।
एफआईआर के लेखबद्ध कराए जाने के तुरंत
बाद अन्वेषण प्रारंभ कर दिया गया था। तब ऐसी स्थिति में यदि थाने में से मजिस्ट्रेट
को विशेष रिपोर्ट के भेजे जाने में यदि कोई देरही भी हुई है तब भी अभियोजन के
प्रति कोई प्रतिकूल निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता। जब अपराध मात्र धारा 325,
भारतीय दण्ड विधान का है, तब मजिस््ट्रेट के यहा प्रथम सूचना के भेजने में देरी
कभी भी अभियुक्त की द्वेष मुक्ति का आधार नहीं हो सकती है।
ऐसी एफआईआर संभव है जिसमें विवरण का अभाव
हो। परंतु जब एक अपराध की सूचना पुलिस को दे दी जाती है तब सूचित किए गए अपराध को
अन्वेषित करना पुलिस विभाग का बाध्यकारी कर्तव्य है। यद्धपि एफआईआर में बहुत सा
विवरण नहीं है। अन्वेषण के बाद संभव है कि बहुत सी कडि़या जुड़ जाये। इस
दृष्टिकोण से उच्च न्यायालय संविधान के अनुच्छेद 226 के अधीन अपनी शक्त्ि का
प्रयोग करता है तब उसे अपनी इस शक्ति का प्रयोग बहुत सावधानी व सचेतता से विनयतम
मामले में ही प्रयुक्त किया जाना चाहिए। वह भी उन मामलों में जहां एफआईआर के
अभिकथनों को ज्यों का त्यों मान लेने पर भी कोई अपराध नहीं बनता है। एफआईआर के
आधार पर उच्च न्यायालय का अन्वेषण को रोक देना तब तब उचित क्रमांक
सीओजीए/39/2014 आईसीआर पक्षकार हरनाम सिह और विरूद्ध वन मण्डल अधिकारी, उत्तर वन
मण्डल सागर एवं अन्य में माननीय न्यायालय द्वारा अवार्ड दिनांक 29/01/2016
अवार्ड खुले न्यायालय में घोषित दिनांक 29/02/2016 घोषित किया गया था।
यह कि, प्रकरण क्रमांक 39/14 आईडीआर अवार्ड
घोषणा दिनांक 29/02/2016 न्यायालय श्रीमान श्रम न्यायालय सागर द्वारा घोषित किया
गया था। विपक्षी जबाव द्वारा अवार्ड से दुखित होकर माननीय मध्यप्रदेश जबलपुर के
समक्ष याचिका प्रस्तुत की गई। याचिका क्रमांक 1433/16 पंजीबद्ध है। माननीय उच्च
न्यायालय जबलपुर द्वारा अंतरिम आदेश दिनांक 24/08/2016 पारित किया गया है।
अनावेदक जबाव द्वारा आदेश के परिपालन में धारा 17 भी औद्योगिक जबाव अधिनियम
अंतर्गत भुगतान संबंधी प्रक्रिया सम्पन्न की गई है। आवेदक के लिए विपक्षी जबाव
द्वारा नियमानुसार भुगतान किया गया है। विपक्षी जबाव की ओर से प्रस्तुत याचिका
माननीय उच्च न्यायालय जबलपुर के समक्ष विचाराधीन रहने के दौरान आवेदक हरनाम सिंह
गौढ द्वारा आवेदन पत्र अंतर्गत धारा 33 (सी -100) प्रस्तुत किया गया है। जिसका
प्रकरण क्रमांक 25/17 आईडीएफ है। विपक्षी विवाद द्वारा इस प्रकरण में जबाव प्रस्तुत
किया गया। जबाव प्रस्तुत करने के पश्चात माननीय न्यायालय द्वारा प्रकरण क्रमांक
एमसीसीके-2/2017 आईडीआर पंजीबद्ध कर आदेश दिनांक 13/04/2017 आदेश पत्रिका पर आदेश
पारित किया गया था। आदेश पारित किए जाने के पश्चात मूल प्रकरण क्रमांक 29/2014
आईडीआर अवार्ड घोषणा दिनांक 29/02/2016 के पेज क्रमांक 5 एवं कंडिका क्रंमाक 13 की
दूसरी लाईन में सेवा निवृत्त्ि का 30/11/2015 को काटा जाकर 20/11/2013 किया गया।
जिस पर न्यायालय श्रीमान श्रम न्यायालय सागर द्वारा सील मुद्रा एवं हस्ताक्षर
अंकित किए गए है। जिस पर दिनांक 13/04/17 हस्ताक्षर के नीचे अंकित है जिसकी
प्रमाणित सत्य प्रतिलिपी विभाग द्वारा प्राप्त की गई। प्रमाणित प्रतिलिपी,
प्रतिलिपी शाखा से प्राप्त होने के पश्चात माननीय उच्च न्यायालय जबलपुर के
समक्ष विचाराधीन याचिका में प्रस्तुत किए जाने बावत् प्रेषित की गई। माननीय श्रम
न्यायालय सागर द्वारा मूल प्रकरण 39/2014 आईडीआर एवं प्रकरण क्रमांक एमसीसीए
2/2017 आईडीआर आदेश पत्रिका दिनांक 13/04/2014 की प्रमाणित प्रतिलिपी माननीय उच्च
न्यायालय जबलपुर के समक्ष विचारधीन
याचिका में प्रस्तुत बावत् जबाव द्वारा प्रेषित की जा चुकी है।
यह कि प्रकरण क्रमांक 2/2017 आईडीआर आदेश
पत्रिका दिनांक 13/04/2017 अनुसार प्रकरण का निराकरण उसी दिनांक को किया गया है।
इस आदेश पत्रिका में इस प्रकरण के अलावा प्रकरण क्रमांक सीओसीएफ 24/2017 आईटी एक्ट
पक्षकार हरगोविंद गौढ विरूद्ध वन मण्डल सागर एवं 26/2017 आईटी एक्ट पक्षकार
रामकुमार गौढ विरूद्ध वन मण्डल अधिकारी एवं अन्य आदेश पत्रिका के पेज 3 की दसवी
लाईन में स्पष्ट रूप से लेखबद्ध किया गया है कि – इस प्रकार पत्रिकाओं को
कार्यवाही के पश्चात समाप्त किया जाता है। यह प्रकरण पत्रिका मूल अभिलेख के साथ
संलग्न रखी जावे। इस प्रकरण के पंजीबद्ध किए जाने के पूर्व उभयपक्ष द्वारा माननीय
न्यायालय के समक्ष कोई भी आवेदन पत्र प्रस्तुत नहीं किया गया। उभय पक्ष द्वारा
कोई सहायता माननीय न्यायालय से नहीं चाही गई, उभय पक्ष के लिए कोई विधिवत सूचना
पत्र नहीं दिया गया और सम्मानीय श्रम न्यायालय द्वारा स्वमेव लगभग एक वर्ष की
अवधि के पश्चात पंजीबद्ध किया जाकर प्रकरण का निराकरण दिनांक 13/04/2017 को किया
गया है। विपक्षी जबाव द्वारा प्रतिलिपी शाखा से इस प्रकरण में नियमानुसार प्रमाणित
सत्य प्रतिलिपी प्राप्त की गई। प्रमाणित सत्य प्रतिलिपी प्राप्त होने के पश्चात
विभाग द्वारा माननीय उच्च न्यायालय जबलपुर के समक्ष विचाराधीन याचिका में प्रस्तुति
बावत् प्रेषित की गई। यह कि एमसीए 2/2017 आदेश पत्रिका दिनांक 13/04/2017 का
निराकरण होने के पश्चात एवं प्रमाणित सत्य प्रतिलिपी नियमानुसार प्रापत होने के
पश्चात माननीय श्रम न्यायालय सागर द्वारा जाबक पत्र क्रमांक 331/2017 सागर
दिनांक 12/05/2017 श्री प्रशांत कुमार सेन,
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