Monday, 5 March 2018

25 MIN - प्रकरण क्रमांक


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प्रकरण क्रमांक सीओजीए/39/2014 आईसीआर पक्षकार हरनाम सिह और विरूद्ध वन मण्‍डल अधिकारी, उत्‍तर वन मण्‍डल सागर एवं अन्‍य में माननीय न्‍यायालय द्वारा अवार्ड दिनांक 29/01/2016 अवार्ड खुले न्‍यायालय में घोषित दिनांक 29/02/2016 घोषित किया गया था।
         यह कि, प्रकरण क्रमांक 39/14 आईडीआर अवार्ड घोषणा दिनांक 29/02/2016 न्‍यायालय श्रीमान श्रम न्‍यायालय सागर द्वारा घोषित किया गया था। विपक्षी जबाव द्वारा अवार्ड से दुखित होकर माननीय मध्‍यप्रदेश जबलपुर के समक्ष याचिका प्रस्‍तुत की गई। याचिका क्रमांक 1433/16 पंजीबद्ध है। माननीय उच्‍च न्‍यायालय जबलपुर द्वारा अंतरिम आदेश दिनांक 24/08/2016 पारित किया गया है। अनावेदक जबाव द्वारा आदेश के परिपालन में धारा 17 भी औद्योगिक जबाव अधिनियम अंतर्गत भुगतान संबंधी प्रक्रिया सम्‍पन्‍न की गई है। आवेदक के लिए विपक्षी जबाव द्वारा नियमानुसार भुगतान किया गया है। विपक्षी जबाव की ओर से प्रस्‍तुत याचिका माननीय उच्‍च न्‍यायालय जबलपुर के समक्ष विचाराधीन रहने के दौरान आवेदक हरनाम सिंह गौढ द्वारा आवेदन पत्र अंतर्गत धारा 33 (सी -100) प्रस्‍तुत किया गया है। जिसका प्रकरण क्रमांक 25/17 आईडीएफ है। विपक्षी विवाद द्वारा इस प्रकरण में जबाव प्रस्‍तुत किया गया। जबाव प्रस्‍तुत करने के पश्‍चात माननीय न्‍यायालय द्वारा प्रकरण क्रमांक एमसीसीके-2/2017 आईडीआर पंजीबद्ध कर आदेश दिनांक 13/04/2017 आदेश पत्रिका पर आदेश पारित किया गया था। आदेश पारित किए जाने के पश्‍चात मूल प्रकरण क्रमांक 29/2014 आईडीआर अवार्ड घोषणा दिनांक 29/02/2016 के पेज क्रमांक 5 एवं कंडिका क्रंमाक 13 की दूसरी लाईन में सेवा निवृत्त्‍ि का 30/11/2015 को काटा जाकर 20/11/2013 किया गया। जिस पर न्‍यायालय श्रीमान श्रम न्‍यायालय सागर द्वारा सील मुद्रा एवं हस्‍ताक्षर अंकित किए गए है। जिस पर दिनांक 13/04/17 हस्‍ताक्षर के नीचे अंकित है जिसकी प्रमाणित सत्‍य प्रतिलिपी विभाग द्वारा प्राप्‍त की गई। प्रमाणित प्रतिलिपी, प्रतिलिपी शाखा से प्राप्‍त होने के पश्‍चात माननीय उच्‍च न्‍यायालय जबलपुर के समक्ष विचाराधीन याचिका में प्रस्‍तुत किए जाने बावत् प्रेषित की गई। माननीय श्रम न्‍यायालय सागर द्वारा मूल प्रकरण 39/2014 आईडीआर एवं प्रकरण क्रमांक एमसीसीए 2/2017 आईडीआर आदेश पत्रिका दिनांक 13/04/2014 की प्रमाणित प्रतिलिपी माननीय उच्‍च न्‍यायालय जबलपुर के समक्ष  विचारधीन याचिका में प्रस्‍तुत बावत् जबाव द्वारा प्रेषित की जा चुकी है।
         यह कि प्रकरण क्रमांक 2/2017 आईडीआर आदेश पत्रिका दिनांक 13/04/2017 अनुसार प्रकरण का निराकरण उसी दिनांक को किया गया है। इस आदेश पत्रिका में इस प्रकरण के अलावा प्रकरण क्रमांक सीओसीएफ 24/2017 आईटी एक्‍ट पक्षकार हरगोविंद गौढ विरूद्ध वन मण्‍डल सागर एवं 26/2017 आईटी एक्‍ट पक्षकार रामकुमार गौढ विरूद्ध वन मण्‍डल अधिकारी एवं अन्‍य आदेश पत्रिका के पेज 3 की दसवी लाईन में स्‍पष्‍ट रूप से लेखबद्ध किया गया है कि – इस प्रकार पत्रिकाओं को कार्यवाही के पश्‍चात समाप्‍त किया जाता है। यह प्रकरण पत्रिका मूल अभिलेख के साथ संलग्‍न रखी जावे। इस प्रकरण के पंजीबद्ध किए जाने के पूर्व उभयपक्ष द्वारा माननीय न्‍यायालय के समक्ष कोई भी आवेदन पत्र प्रस्‍तुत नहीं किया गया। उभय पक्ष द्वारा कोई सहायता माननीय न्‍यायालय से नहीं चाही गई, उभय पक्ष के लिए कोई विधिवत सूचना पत्र नहीं दिया गया और सम्‍मानीय श्रम न्‍यायालय द्वारा स्‍वमेव लगभग एक वर्ष की अवधि के पश्‍चात पंजीबद्ध किया जाकर प्रकरण का निराकरण दिनांक 13/04/2017 को किया गया है। विपक्षी जबाव द्वारा प्रतिलिपी शाखा से इस प्रकरण में नियमानुसार प्रमाणित सत्‍य प्रतिलिपी प्राप्‍त की गई। प्रमाणित सत्‍य प्रतिलिपी प्राप्‍त होने के पश्‍चात विभाग द्वारा माननीय उच्‍च न्‍यायालय जबलपुर के समक्ष विचाराधीन याचिका में प्रस्‍तुति बावत् प्रेषित की गई। यह कि एमसीए 2/2017 आदेश पत्रिका दिनांक 13/04/2017 का निराकरण होने के पश्‍चात एवं प्रमाणित सत्‍य प्रतिलिपी नियमानुसार प्रापत होने के पश्‍चात माननीय श्रम न्‍यायालय सागर द्वारा जाबक पत्र क्रमांक 331/2017 सागर दिनांक 12/05/2017 श्री प्रशांत कुमार सेन, थाने के भारसाधक अधिकारी ने किसी अपराध के घटित रिपोर्ट के बारे में लिखने से इंकार किया है, तथा बताई गई रिपोर्ट के पूर्णत: विपरीत तथा झूटी रिपोर्ट लिखी है, तब उसे भारतीय दण्‍ड संहिता की धारा 177 के अधीन दोष सिद्ध पाया जा सकता है। प्रथम सूचना धारा 154, दण्‍ड प्रक्रिया सं‍हिता के अधीन ऐसा ब्‍यान है जिस पर पुलिस अधिकारी को शब्‍द का पता लगाने तथा सामाज्ञ्री एकत्रित करने के लिए अन्‍वेषण को शुरू करना होता है। यह अनुश्रुत साक्ष्‍य पर भी हो सकती है। यह धारा 193, भारतीय दण्‍ड विधान की अपेक्षाओं की पूर्ति नहीं करती चाहे यह मिथ्‍या सिद्ध भी हो जाये। धारा 154, दण्‍ड प्रक्रिया संहिता के अधीन ब्‍यान देते समय सूचना देने वाला व्‍यक्ति सपथ द्वारा अथवा कानून के किसी स्‍पष्‍ट उपबंध से तथ्‍य बताने के लिए विधिक रूप से आवद्ध नहीं है किसी प्रयोजन के लिए की गई एफआई का ब्‍यान से विद्धेष पूर्ण अभ्यिोजन की कार्यवाही की जा सकती है किंतु यह धारा 193, भारतीय दण्‍ड विधान के अधीन दण्‍डनीय अपराध का आधार नहीं हो सकता । इसलिए धारा 154 का ब्‍यान धारा 340, दण्‍ड प्रक्रिया संहिता के अधीन अभियोजन का भी आधार नहीं हो सकता।
         जब एफआईआर लेखबद्ध कराने वाले व्‍यक्ति की जब एफआईआर लिखाने के बाद मृत्‍यु हेा गई है तब एफआईआर के बृतांत को अनदेखा नहीं किया जा सकता क्‍योकि यह घटना का सबसे पहला बृतांत है जो कि दाण्डिक विचारण के लिए महत्‍वपूर्ण होता है। अब यह सुस्‍थापित विधी है कि  जब कोई मजिस्‍ट्रेट किसी अपराध के फायनल रिपोर्ट प्राप्‍त करता है और यह तय करता है कि अपराध का संज्ञान ना लिया जाये और कार्यवाही समाप्‍त की जाये अथवा वह इस विचार का है कि एफआईआर में उल्लिख्ति कुछ व्‍यक्तियों कें विरूद्ध कार्यवाही करने के लिए पर्याप्‍त आधार नहीं है, तब मजिस्‍ट्रेट का यह कर्तव्‍य है कि एफआईआर की सूचना देने वाले व्‍यक्ति को नोटिस दे तथा उसे रिपोर्ट पर विचार करते समय सुनवाई का अवसर दे।
         जब एफआईआर की सूचना देने वाला न्‍यायालय  में उपस्थित होता है और फायनल रिपोर्ट के स्‍वीकार किए जाने वाले विरोध प्रकट करता है तब मजिस्‍ट्रेट उसे प्रोटेस्‍ट पिटीशन अथवा कुछ अन्‍य सामाज्ञ्री अथवा सपथ पत्र यह दर्शित करने के लिए दाखिल करने की अनुमति दे सकता है कि उक्‍त फायनल रिपोर्ट क्‍यों ना स्‍वीकार की जाये।
         इसके अतिरिक्‍त किसी घटना में चोटग्रस्‍त व्‍यक्ति अथवा मृत्‍क का कोई संबंधी मजिस्‍ट्रेट से किसी नोटिस की प्राप्ति का हकदार नहीं है किंतु यदि उसे किसी भी स्‍त्रोत से यह सूचना मिलती है कि फायनल रिपोर्ट पर मजिस्‍ट्रेट द्वारा विचार किया जाना है तो वह मजिस्‍ट्रेट से निवेदन कर सकता है। मजिस्‍ट्रेट ऐसा निवेदन सुनने के लिए आबद्ध है। यदि मजिस्‍ट्रेट पुलिस द्वारा प्रस्‍तुत फायनल रिपोर्ट में से कुछ अभियुक्‍तों के विरूद्ध तेा अपराध का संज्ञान लेता है और कुछ के विरूद्ध फायनल रिपोर्ट स्‍वीकार कर लेता है। तब भी मजिस्‍ट्रेट से अपेक्षा है कि

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