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उपाध्यक्ष महोदय इस समय देश केसामने सबसे बड़ी समस्या खाने पीने की
चीजों की है इस संबंध में एक माननीय सदस्य का जो भाषण सदन में हुआ उससे मुझे कोई आश्चर्य नहीं हुआ। मैं इस
बात को मानता हूं और सारे देश के लोग भी मानते है।
मै समझता हूं कि विरोधी पक्ष के
लोग भी मानते है कि आज देश में गल्ले की कमीं है परंतु प्रश्न यह है कि इस गल्ले
की कमीं को हम किस तरह से पूरा कर सकते है अपने ही देश में उत्पादन बढ़ाकर या
दूसरे देशों में जिस तरह से हम गल्ला मंगवा रहे है उसी तरह से मंगवाकर क्या कमीं
पूरी करे। आज लोगों में गल्ले की कमीं की वजह से उत्तेजना फैल रही है परेशानी
बढ़ रही है और दिक्कते बढ़ रही है।
यह बिलकुल स्पष्ट है खासतौर से कुछ दिन पहले
केरल के संबंध में इस सदन में बहस हुई। बंगाल में भी गल्ले की कमी की वजह से
हालात खराब हो रहे है। लेकिन मैं समझता हूँ कि देश के जितने सूबे है उन सब में करीब
करीब वैसी ही हालात है। ऐसी हालात में हमारे देश के अंदर अपने प्रयत्नों से और
अपनी मेहनत से गल्ले का अधिक से अधिक उत्पादन किया जाए इसमें कोई दो राय नहीं
है।
मैं खासतौर से अपने
सूबे के संबंध में कहना चाहता हैवहां पर काफी जमीन है जिनमें सिंचाई की कोई भी व्यवस्था
नहीं है अगर वहां पर छोटी सिंचाई योजनाओं कें जरिए सिंचाई की व्यवस्था की जाए तो
सिफ उस जमीन में कम से कम 35 हजार टन एक फसल में पैंदावार बढ़ सकती है।
उपाध्यक्ष महोदय जहां पर उतपादन बढ़ाने और
दूसरे देशों कें उपर निर्भर नहीं रहने की बात है। हमें देखना होगा कि सिंचाई की व्यवस्था और खाद इन दोनों में
किसकी आवश्यकता पहले है।
मैंने पहले भी यह कहा है कि
खाद्य के उपर अगर ज्यादा जोर दिया गया और सिंचाई के कामों की उपेक्षा की गई तो
नतीजा यह हो सकता है कि अनाज की कमी वाले इलाकों में जहां पर सिंचाई की व्यवस्था
नहीं है उत्पादन नहीं होगा। इस संबंध में मैं इस बात और कहना चाहता हूं कि देश
में जो कुछ भी हम पैदा करते है उसका वितरण ठीक प्रकार से होना चाहिए।
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