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हमारे देश
में पिछले सालों में अर्थव्यवस्था में पारदर्शिता लाने के प्रयास किए है।
विमुद्रीकरण और इसके बाद जीसटी लागू करने के जो कदम सरकारों ने उठाये वे इन्हीं
प्रयासों की देन है। यही प्रयास अभी जारी है। प्रतिकर अर्थव्यवस्था की ओर अग्रसर
हमारे देश में अब लागों कें घर के पते को भी नियमित नम्बर दिए जाने की तैयारी का
स्वागत किया जाना चाहिए। ऐसा करने पर बेनामी सम्पत्ति का पता लगाने में आसानी
रहेगी। इस बात को इंकार नहीं किया जा सकता। सीमित आईडी यानी आदर्श डिजीटल एड्रेस
नम्बर मालूक करना। हालांकि इतना आसान नहीं है लेकिन इस व्यवस्था को आए दिन
प्रोजेक्ट के रूप में धीरे धीरे लागू किया जा सकता है। अमेरिका में इसी तरह की व्यवस्था
है हर घर के डिजीटल पते के साथ कोई भी उस मकान के बारे में संपूर्ण ब्यौरा एक ही
क्लिक पर आसानी से जान सकता है। यानी यह सब जानकारी की कोई घर कब और किसने खरीदा
तथा उसे कब कब बेचा गया। इतना ही नहीं बलिक यह भी जानकारी रहती है कि अब उस घर में
मरम्मत का काम कब और किसने कराया? ऐसी सूचनाए डिजीटल एड्रेस में रहीं तो सम्पत्ति
विवादों का एक हद तक समाधान आसानी से हो सकेगा। हमारे देश में मकान व भूखण्डो के
खरीद-बेचान में गड़बडि़यों के मामले सामने आते रहते है। डिजीटल पते में एक व्यक्ति
के पास कौन कौन से मकान और भूखण्ड है इसकी जानकारी आसानी से मिलेगी यानी ऐसी सम्पत्ति
के खरीद-बेचन करने से पहले पूरी जानकारी जुटाना आसान रहेगा। जो लोग डिजीटल एड्रेस
लागू करने में लोगो की प्राईवेसी खत्म होने की तनख्वाह बताते है उनको यह समझना
चाहिए कि सोशल मीडिया के दौर में जब हम खुद ही सार्वजनिक करने में लगे है तो ऐसे
सवाल बेईमानी है। जब हर व्यक्ति सोशल मीडिया पर अपनी निजी जानकारी शेयर करने में लगा
है ऐसे में फिर किस प्राईवेसी को लेकर हम चिंता कर रहे है? खाली पड़ी जमीनों का
किस दायरे में लाया जायेगा तो भी सरकारों को प्रापटी टेक्स की वसूली में भी
सुविधा होने वाली है। इतना ही नहीं पानी-बिजली जैसी मूलभूत सुविधाओं से जुड़े
मैकमों को भी अपनी सेवाएं देने में सुविधा रहेगी क्योंकि किसी भी पते को ट्रेस
करना आसान होगा। लेकिन एक बात हमें ध्यान रखनी होगी कि ऐसे प्रोजेक्ट को लागू करने
से पहले विशेषज्ञों की राय भी ली जाये। कही ऐसा नहीं हो कि हड़बढ़ी में लागू की गई
नोटबंदी और जीएसटी जेसी बिसंगतियों का बाद में सामना हो। बात तो यह भी जरूरी है कि
हम धीरे धीरे विभिन्य पहचान पत्रों की अनिवार्यता कम करते हुए किसी एक ही पहचान
पत्र को लागू करे चाहे वह पैन नम्बर हो या आधार नम्बर।
सरकार आधार के बाद अब घरों की भी यूनिक
आईडी बनाना चाह रही है। इसके तहत घर की लोकेशन के आधार पर
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