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8 नवम्बर
2016 को भारत में कुछ ऐसा हुआ जिससे पूरे देश में हलचल मच गई। रात आठ बजे प्रधान
मंत्री नरेन्द्र मोदी ने जी अचानक ही राष्ट्र को संबाधित किया और 500 एवं 1000
रूपए के नोटो को खत्म करने का ऐलान सुनाया। इसका लक्ष्य केवल काले धन पर नियंत्रण
ही नहीं बल्कि जाली नोटो से छुटकारा पाना भी था।
यह योजना करी छह महीने पहले बननी
शुरू हुई थी। सरकार के इस फैसले की जानकारी केवल कुछ लोगों को ही थी जिनमें मुख्य
सचिव नृपेन्द्र मिश्रा, पूर्व और वर्तमान आरबीआई गर्वनर, वित्त सचिव अशोक लवासा,
आर्थिक मामलों कें सचिव शक्तिदास कांत और वित्तमंत्री अरूण जेटली शामिल थे। योजना
को लागू करने की प्रक्रिया दो महीने पहले शुरू हुई थी। इससे पहले भी, इसी तरह के
उपायों को भारत में लागू किया गया था।
जनवरी
1946 में, 1000 और 10000 रूपए के नोटों को वापस ले लिया गया था। और एक हजार, पांच
हजार एवं दस हजार रूपए के नए नोटों को 1954 में फिर से शुरू कर दिया गया था। इसके
बाद भी कई फैसले लिए गए ताकि काले धन पर अंकुश लगाया जा सके। दरअसल कई लोग जाली
नकदी को भारत के खिलाफ आतंकबादी गतिविधियों में स्तेमाल कर रहे थे। जिसके परिणाम
स्वरूप नोटों को खत्म करने का निर्णय लिया गया था। अतीत में भाजपा ने नोटबंदी का
जोरदार विरोध किया था। भाजपा प्रवक्ता मीनाक्षी लेखी ने यह भी कहा कि वह लोग जो
अनपढ़ है और बैंकिंग सुविधाओं का लाभ नहीं उठा सकते ऐसे लोगों के लिए इस तरह के उपाय
फलदायी नहीं होगे।
मुख्य रूप से कुछ समय
के अंतराल में स्वयं जनता 2000 के नोट को चलन से बाहर कर देगी क्योंकि कम
दाम की वस्तु खरीदते समय कोई भी दुकानदार आपसे 2000 के नोट नहीं लेगा। इसके चलते
काले धन में बढ़ोत्तरी ही होगी। सरकार को इस विषय पर शुरू से ही सचेत रहने की
आवश्यकता है। इस नोटबंदी का असर कुछ ऐसा
देखा गया कि अनेक बाजारो में दुकानों को छापों के डर की बजह से बंद कर दिया गया।
हवाला करने वाले भी इधरी उधर फिरने लगे और सोचने लगे कि इस तरह की भारी नगदी के साथ क्या करना चाहिए। माना जा
रहा है कि रियल स्टेट आदि के दाम कम
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