Friday, 9 March 2018

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मध्‍यप्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों की जीविका  का प्रमुख आधार कृषि है परंतु प्रदेश की लगभग 70 प्रतिशत कृषि वर्षा पर आधारित है। इस कारण अल्‍पवर्षा तथा सूखे की स्थिति में ग्रामीण जीविका विपरीत रूप से प्रभावित होती है। इसके अतिरिक्‍त वर्षा आधारित कृषि क्षेत्रों में अत्‍याधिक दोहन के कारण भूजल भण्‍डारों पर भी विपरीत प्रभाव पड़ता है तथा वानस्‍पतिक आवरण में कमी के कारण मृदा का अपरदन बहने से खेतों की उपजाऊ मिटटी भी क्षेत्र से कटकर बाहर चली जाती है। अत: वर्षा आधारित कृषि क्षेत्रों में यदि धारणीय ग्रामीण जीविका यानी सस्‍टेनेबिल रूरल लाईव लिवों का लक्ष्‍य प्राप्‍त करना है तो ऐसे प्रयास आवश्‍यक है जिनसे सूखे का प्रभाव कम हो और सुनिश्चित खेती के लिए पर्याप्‍त पानी तथा उपजाऊ मिट्टी उपलब्‍ध हो सके।

इस हेतु सतहीं जल का संग्रहण, भूजल संर्वधन मिट्टी के कटाव पर रोक तथा वानस्‍पति आवरण में बृद्धि के कार्य ही सर्वोत्‍त्‍म उपाय है और इन कार्यो की आयोजना व क्रियान्‍वयन के लिए जलग्रहण क्षेत्र प्रबंधन संवोत्‍म वैज्ञानिक व तनकीकि विकल्‍प है। इस अवधारणा को ध्‍यान में रखते हुए भारत सरकार, ग्रामीण विकास मंत्रालय, भमि संसाधन विभाग द्वारा जलग्रहण क्षेत्र विकास कार्यक्रम का आकलन कर जल संग्रहण क्षेत्र प्रवधन परियोजनाओं का क्रियान्‍वयन प्रारंभ किया गया है । इस तरह जल ग्रहण क्षेत्र विकास कार्यक्रम ग्रामीण क्षेत्रों के लिए ना केवल रोजगार मूलक कार्यक्रम है अपितु यह कार्यक्रम प्राकृतिक संसाधनों जैसे पानी, मिट्टी व वनस्‍पति के यथोचित प्रबंधन द्वारा धारणीय ग्रामीण विकास के अत्‍यंत उपयोगी है।

जलग्रहण क्षेत्र प्रबंधन परियोजना के प्रमुख उद्देश्‍य से जलग्रहण क्षेत्र के विकास के सिद्धांता के आधार पर विभिन्‍य जलग्रहण क्षेत्र विकास कार्यो , (मृद्रा संरक्षण, जल संरक्षण व संबंर्धन प्राकृतिक वानस्‍पतिक की आच्‍छादन आयमूलक गतिविधियों) का ऐसा परिणाम मूलक क्रियान्‍वयन करना है जिससे निम्‍न लक्ष्‍य प्राप्‍त  किया जा सके। सतही जल संरक्षण और भूजल संवर्धन के द्वारा गांवों में सिंचाई के लिए, पीने के लिए और निस्‍तार तथा पशुओं कें लिए पानी की सुनिश्‍चता करना ताकि अकाल या सूखे की परिस्थितियों में भी इससे निपटने की क्षमता विकसित हो सके।

         पानी का समुचित विवरण तथा उचित प्रबंधन एक फसली कृषि क्षेत्र का दो फसली कृषि क्षेत्र में परिवर्तन, फसल प्रबंधन तथा कृषि उत्‍पादन में इष्‍टम बृद्धि बढक भूमि को विकसित कर इस उत्‍पादन हेतु उपयोग में लाना। पशुओं कें लिए पर्याप्‍त चारे का उत्‍पादन, आवश्‍कतानुसार वानस्‍पतिक आच्‍छादन में बृद्धि, संसाधनहीन ग्रामीणों कें लिए आयमूलक गतिविधियों द्वारा स्‍वरोजगार के साधन उपलब्‍ध कराना। महिलाओं को बचत एवं साख हेतु प्रेरित कर स्‍वालंबी एवं सशक्‍त  

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