Thursday, 8 March 2018

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सामान्‍य मौसमी अभिवृत्तियों में किसी खास स्‍थान पर होने वाले विशिष्‍ट परिवर्तन को जलवायु परिवर्तन कहा जाता है। मौसम में अचानक परिवर्तन फसल चक्र का परिवर्तित होना, वन‍स्‍पतियों की प्रजातियों का लुप्‍त होना। तापमान में बृद्धि हिमनदियों का पिघलना तथा समुद्र जल स्‍तर में लगातार बृद्धि ऐसे सूचक है जिनसे जलवायु परिवर्तन की परिघटना का पता चलता है। 

हिमनदों के पिघलने को जलवायु परिवर्तन का सबसे संवेदनशील सूचक माना जाता है। पृथ्‍वी पर हिमनदियों के लगातार कम होने तथा उनके स्‍तर के नीचे खिसकने से समुद्र कें जलस्‍तर में बृद्धि हुई है। विश्‍व ग्‍लेशयर मॉनीटरिग सर्विस पृथ्‍वी पर स्थित ग्‍लेशियर का निरीक्षण करती है। इस संस्‍था के अनुसार ग्‍लेशियरों की पिघलने की प्रक्रिया लगातार जारी है। 

जलवायु परिवर्तन की परिघटना तथा हिमनदियों के पिघलने से समुद्र के जलस्‍तर में बृद्धि चिन्हित की  गई है। जलवायु परिवर्तन कई कारणों से हुआ है किंतु वातावरण में ग्रीन हाउस गैसो की मात्रा के निरंतर बढ़ते रहने को सबसे बड़ा कारण माना जाता है। पृथ्‍वी पर आने वाली सौर उर्जा की बड़ी मात्रा अवरक्‍त मात्रा के रूप में पृथ्‍वी के वातावरण से बाहर  चली जाती है। इस उर्जा की कुछ मात्रा ग्रीन हाउस गैसो द्वारा अवशोषित होकर पुन: पृथ्‍वी तक पहंच जाया करती है। जिससे तापक्रम अनुकूल बना रहता है।

 ग्रीन हाऊस गैसे में मीथेन कार्बनडाई ऑक्‍साईड, नाईट्रस ऑक्‍साईड इत्‍यादि है। वातावरण अर्थात वैश्विक तापबृद्धि की संज्ञा दी गई है। सही तौर पर देखा जाए तो ग्‍लोवल वार्मिग भी जलवायु परिवर्तन का एक रूप है। जलवायु परिवर्तन बढते प्रदूषण एवं ग्‍लोबल वार्मिग को देखते हुए वीसवीं शताब्‍दी में संयुक्‍त  राष्‍ट्र एवं अन्‍य वैश्विक संगठनों ने पर्यावरण की सुरक्षा की बात करना शुरू किया। 

ओजोन परत के संरक्षण के लिए 1985 में वियना सम्‍मेलन हुआ एवं इसकी नीतियों को विश्‍व के अधिकतर देशों ने 1988 में लागू किया। वियना समझौते के परिणाम स्‍वरूप 1987 में ओजोन परत में छेद करने वाले पदार्थ पर मांट्रियल समझौता हुआ। इसके बाद इस विषय से संबंधित कई समझौते एवं सम्‍मेलन विश्‍व के कई अन्‍य शहरों में किए गए। 


वैश्विक स्‍तर पर बढ़ती जलवायु परिवर्तन की समस्‍या के खतरे को ध्‍यान में रखते हुए विश्‍व मौसम संगठन यानी वर्ल्‍ड मेटोरोलॉजिकल ऑर्गनाईजेशन डब्‍ल्‍यू एम ओ एवं संयुक्‍त राष्‍ट्र परिवर्तन यानी यूनाईटेड नेशन्‍स इनवायरमेंट यानी यूएनईपी ने मिलकर 1988 में इंटरगर्वमेंटल पेनल ऑन क्‍लाईमेट चेंज यानी आईपीसीसी का गठन किया। यह संगठन जलवायु परिवर्तन के लिए जिम्‍मेदार वैश्विक निकाय के रूप में महत्‍वपूर्ण भूमिका निभाता है।

 विश्‍व मौसम संगठन एवं संयुक्‍त राष्‍ट्र पर्यावरण कार्यक्रम के लगभग 200 सदस्‍य देश आईपीसीसी के भी सदस्‍य है। इसका मुख्‍य कार्य जलवायु परिवर्तन के बढ़ते खतरे इसके प्रभाव एवं इसके अनूकूलन व इसे  कम करने के उपायों से जुड़े वैज्ञानिक आकलनों को पेश करना है। ताकि इनपर आधारित वैज्ञानिक तकनीकि व आर्थिक जलवायु परिवर्तन के बढ़ते खतरे इसके प्रभाव इसके अनुकूलन व इसे  कम करने के उपायों से जुड़े वैज्ञानिक ऑकलनों को पेश करना है ताकि इन पर आधारित वैज्ञानिक तकनीकी व आर्थिक सामाजिक सूचनाओं वाली एक निष्‍पक्ष पारदर्शी व गहन ऑकलन  रिपोर्ट तैयार की जा सके। इससे मानवीय गतिविधियों कें कारण तेजी से बदल रही जलवायु के संभावित खतरों से प्रथ्‍वी को बचाने के उपाय ढूढने में मदद मिलेगी। आईपीसीसी ना तो अनुसंधान कार्य करता है और ना जलवायु संबंधी।

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