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प्राचीर
विहीन या खुले बंदीग्रह की अवधारणा वर्तमान शताब्दी के सुधारवादी दर्शन पर आधारित
है। जिस प्रकार किशोर अपराधियों कें सुधार तथा पुर्नवास के लिए प्रोबेशन तथा वाल न्यायालयों
की स्थापना पर जोर दिया गया है उसी प्रकार अनियत दण्डादेश पेरोल तथा खुले
बंदीग्रह को अपराधियेां कें सुधार व पुर्नवास की दृष्टि से उपयोगी माना गया है।
आधुनिक दण्ड शास्त्रियों का मत है कि अपराधी
को जेल में निरूदेष बंद किए रहने की अपेक्षा उसका रचनात्मक पुर्नवास लाभदायक है।
जब तक जेल में बद है तब तक उसके सामने कोई समस्या नहीं है उसके सामने सबसे बड़ी
समस्या उस समय आती है जब वह जेल से छूटकर अपने उस समाज में जाता है जहां उसकी सामाजिक प्रतिष्ठा समाप्त हो
चुकी है। खुले बंदीग्रह अपराध है को समाज
के सामान्य जीवन के साथ समायोजन में मदद करते है।
विगत दशकों में खुले बंदीग्रह
की संभावनाओं पर काफी विचार विमर्श हुआ है। सन 1950 में हेग के सम्पन्न वारहवीं
अंतराष्ट्रीय दण्ड एवं पश्चाताप कांग्रेस द्वारा खुले बंदीग्रह की संभावनाओं पर
विचार किया गया। इसके बाद इस विषय पर ‘लेटिन अमेरिकन सोमिना 1953 मध्यपूर्व
सोमिना 1953 एशिया व सुदूर पूर्व सम्मेलन और विश्व कांग्रेस जेनेवा द्वारा विचार
किया गया’
खुले बंदीग्रह का अभिप्राय बंदीग्रह ऐसे अभिप्राय बंदीग्रह ऐसे स्वरूप
से है जिसमें अपराधी के सुधार व पुर्नवास की दिशा में सर्किय कार्य किया जाता है।
इस संदर्भ में कुछ परिभाषाए है। खुले बंदीग्रह की यह विशेषता है कि इसमें बंदियों
को भागने से रोकने के लिए कोई ठोस भौतिक
अवरोध जैसे दीवार ताले सीकचे और हथियार बंद दस्ते नही होते। उनका संचालन आत्मानुशासन
पर आधारित व्यवस्था तथा उस समूह के प्रति उत्रदायित्व की भावना द्वारा होता है
जिसमें वह रहता है।
अधिक सुरक्षा व्यवस्था वाली प्राचीर
विहीन जेल को आधी खुली जेल कहा जा सकता है जिसमें वे बंदी रखे जा सकते है जो आरंभ
मे न्यूनतम सुरक्षा हेतु पूरी तरह योग्य नहीं समझे जा सकते किंतु जिनमें
नियंत्रण खुली जेल की तुलना में अधिक से अधिक उदार रखा जाता है।
खुले बंदीग्रहों का मुख्य लक्ष्य अपराधी
का सुधार करना है खुले बंदीग्रह आधुनिक सुधारवादी दण्डनीति पर आधारित है इनमें
अपराधी के अंदर आत्मसम्मान और आत्मविश्वास की भावना का विकास किया जाता है।
खुले बंदीग्रह में अपराधी बाहरी समाज के संपर्क में आता है। फलस्वरूप जेल से
रिहाई के बाद उसे पुर्नवास में मदद मिलती है। खुली जेलों में केवल उन्हीं
अपराधियेां को रखा जाता है जिनमें पर्याप्त अनुशासन और सद्व्यहार का विकास हो
चुका हो।
अत: अपराधी को सदैव अपने सुधार की प्रेरणा मिलती है। बंद जेलों में जेल कर्मचारियेां का ध्यान
अपराधियों के सुधार की ओर कम होता है। अपराधियों कें साथ उनका व्यवहार कर होता है
किंतु इन जेलों में जेल कर्मचारियों का धयान अपराधियेां की समस्या की ओर होता है।
भारत में जेल सुधार की ओर सरकार का ध्यान सन 1836 में गया जब बंदीग्रह प्रशासन के अध्ययन् हेतु अखिल
भारतीय जेल समिति को नियुक्त किया गया । इस समिति ने बंदियों को सार्वजनिक कार्यो
में लगाने का विरोध
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