Saturday 28 April 2018

30 WPM


जहां तक अपीलार्थी के विद्यवान अधिवक्‍ता द्वारा उठाये गये दूसरे बिंदु का प्रश्‍न है, इस संबंध में यह कहना उचित होगा कि जो कपड़ा मृतिका मौसमी पहने हुई थी, उस पर मानव का खून लगा पाया गया। उन कपड़ों को पुलिस ने शील करके अन्‍य वस्‍तुओं के साथ विधि विज्ञान प्रयोगशाला को भेजा था। शव के विच्‍छेद के समय मृतिका के दो भागों पर अन्‍य प्रकार की स्‍लाईट बनाई गई थी और उन्‍हे विधि विज्ञान प्रयोगशाला को भेजा गया था। यद्धपि दण्‍ड प्रक्रिया संहिता की धारा 342 के अधीन अभियुक्‍त द्वारा किए गए कथन का मजिस्‍ट्रेट या पीठासीन अधिकारी द्वारा प्रमाणन ना किया जाना एक अनियमितता हो सकती है, यह किसी भी प्रकार से विचारण को स्‍वत: दूषित नहीं करती। अब यह सुस्‍थापित विधि है कि आरोप विरचित करने में कोई लोप भी विचारण को दूषित नहीं करेगा। जब तक कि उसे अभियुक्‍त को उससे कोई नुकसान नहीं पहुंचाता हो। यह भी सुस्‍थापित है कि यदि प्रारंभिक प्रकम पर इस आशय का कोई आक्षेप ना किया गया हो तो वाद में अपील या पुनरीक्षण के प्रकरण पर जब तक आवेदक तथ्‍यों के आधार पर न्‍यायालय का यह समाधान ना कर दे कि उसके साथ अन्‍याय हुआ है, ऐसा कोई लोप कार्यवाही को दूषित करने का प्रभाव नहीं रख सकता है।
      आवेदक के विरूद्ध श्री दुबे ने यह भी दलील दी थी कि अभियुक्‍त ने विचारण समय में न्‍यायालय के समक्ष स्‍वयं के दोषी होने का अभिवाक् करते हुए उक्‍त कथन नहीं किया था, अपितु विद्यवान विचारण न्‍यायालय ने सादे कागज पर उसके हस्‍ताक्षर ले लिए थे। इस प्रकार की दलील दिया जाना अनुज्ञात नहीं किया जा सकता। विधि की यह उपधारणा है कि ऐसे सभी कार्य को जो विधि के अनुसरण में किया जाना अपेक्षित है, विधि द्वारा विहित प्रक्रिया का अनुसरण करते हुए किए जाते है। जब तक अन्‍यथा की स्थिति साबित ना की जाये, आवेदक द्वारा यह हमेशा उपदर्शित किया जाता है कि अभिलेख पर तत्‍समय ऐसी कोई भी साम्राग्री पेश नहीं की गई थी जिससे किसी के हस्‍ताक्षर का मिलान किया जा सके।

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