Saturday 28 April 2018

40 WPM HINDI


विचारण न्‍यायालय के अभिलेख में संलग्‍न आरोप पत्र के अवलोकन से यह स्‍पष्‍ट है कि लिपिकीय त्रुटि के कारण आरोप पत्र में अभियुक्‍त पर धारा 25 वी आयुध अधिनियम का आरोप विरचित किया गया है जबकि अभियुक्‍त के आधिपत्‍य से जैसा कि अभियोजन पक्ष कथन से स्‍पष्‍ट है, देशी कट्टा और दो जिंदा कारतूस बरामद किए गए थे, जो अग्‍नायुध आयुध है। अभिप्राय यह है कि अभ्यिुक्‍त पर धारा 25 ए आयुध अधिनियम के अंतर्गत आरोप पत्र विरचित किया जाना चाहिए था। इस बिंदु पर अपील ज्ञापन में कोई आपत्ति नहीं की गई है और साथ ही साथ अभियोजन साक्षीगण का कूट परीक्षण करते हुए बचाव पक्ष को इस बात का पूर्णत: भान रहा है कि उस पर अग्‍नायुध जप्‍ती का आरोप रहा है और उसने इसी आरोप के संदर्भ में अपना बचाव किया है। अत: उक्‍त तकनीकि या लिपीकीय त्रुटि की    उपेक्षा किया जाना ही उचित होगा।
      प्रकरण में प्रस्‍तुत की गई संपूर्ण साक्ष्‍य को दृष्टिगत रख्‍ते हुए अभियोजन अभियुक्‍त युक्तियुक्‍त संदेश से परे धारा 25ए आयुध अधिनियम के अंतर्गत दण्‍डनीय अपराध का आरोप स्‍थापित करने में     पूर्णत: सफल रहा है। विचारण न्‍यायालय के  निष्‍कर्ष उचित  और वैधानिक है और उनमें हस्‍तक्षेप किए जाने की  कोई औचित्‍यता या आवश्‍यकता प्रकट नहीं होती है। अपील ज्ञापन में ली गई आपत्तियां स्‍वीकार किए जाने     योग्‍य नहीं है। बचाव पक्ष को उनके द्वारा प्रस्‍तुत किए गए न्‍याय द्ष्‍टांतो से कोई लाभ नहीं मिलता।फ इस अपराध के आरोप में अभियुक्‍त को दोषसिद्ध कर विचारण मजिस्‍ट्रेट ने कोई त्रुटि नहीं की है। विचारण मजिस्‍ट्रेट द्वारा किया गया दण्‍ड भी समानुपातिक है और अत्‍याधिक नहीं है। अभियुक्‍त को न्‍यूनतम दण्‍ड से  दण्डित किया गया है। दण्‍डाज्ञा भ्‍ज्ञी हस्‍तक्षेप अयोग्‍य है। यह दाण्डिक अपील सारहीन और निरर्थक होने से खारिज किए जाने योग्‍य है। नि:संदेह यह सत्‍य है कि संहिता के अध्‍याय 7 के अंतर्गत आने वाली किसी भी धारा में आतंकवादी क्रियाकलाप या अंतर्राष्‍ट्रीय अपराध या ऐसा अपराध, जिसके अंतर्गत मुद्रा अंतरण के अपराध अतरवर्लित है। शब्‍दों का उपयोग नहीं किया गया है किंतु केवल इतना ही पर्याप्‍त नहीं है कि यह अभिनिर्धारित किया जाए कि भारत के राज्‍य क्षेत्र के भीतर यदि किसी अपराधी द्वारा कोई अन्‍य संज्ञेय अपराध कारित किया गया है तब भी इन उपबंधों का अवलंब लिया जा सकता है। संहिता के अध्‍याय 7 के अंतर्गत आने वाले उपबंधों का ठीक और उचित निर्वचन यह है कि इन उपबंधों का अवलंब केवल तब लिया जा सकता है जब इनका संबंध दो संविदाकारी राज्‍यों से हो।

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