Monday, 9 April 2018

45 WPM Hindi dictation


462

स्‍वप्‍न सब देखते है, कल्‍पनाएं सब के मन में जन्‍म लेती है परन्‍तु ऐसे व्‍यक्ति बहुत कम होते है, जो उन्‍हें साकार करने का प्रयत्‍न करते है और उनसे भी कम संख्‍या होती है उन व्‍यक्तियों की जो अपने स्‍वप्‍नों को सचमुच साकार कर पाते है।
     स्‍वप्‍नों की बात करना क्‍या केवल स्‍वप्‍न लोक की वस्‍तु है? नहीं, यदि स्‍वप्‍न ना होते, उनको देखने वालों ने उन्‍हें यर्थाथ जीवन से सम्‍बद्ध ना माना होता तो हम आज सभ्‍यता के वर्तमान शिखर पर कदापि नहीं होते। इन स्‍वप्‍नों की बदोलत ही हम आज अंतरिक्ष की खबरे लाने में समर्थ है, चंद्रलोक की सैर करने में सक्षम है, विश्‍व ब्रह्रांड की माप करने का दम भरते है आदि। कोन नहीं जानता है कल्‍पनाशील कलाकार ही पत्‍थर के सामान टुकड़े में कलाकृति की कल्‍पना करने में समर्थ होता है। ना मालूम कितने व्‍यक्तियों ने पक्षियों को आकाश में उन्‍मुक्‍त भाव से उड़ते देखा होगा और सोचा होगा कि वे भी आकाश में पक्षियों की भांति विचरण कर सकते है, परंतु अपने इन कल्‍पनाओं को साकार करने का संकल्‍प किया राईट बंधुओं ने और वे हमाको हवाई जहाज दे गए। जेम्‍स वाट और एडीसन ने स्‍वप्‍न देखें और उनहे साकार करने के प्रयत्‍न करते हुए उनहोंने हमें विज्ञान के विभिन्‍य उपकरण प्रदान कर दिए। इस दुनिया में सभ्‍यता एवं उन्‍नति ने नाम पर हम जो कुछ भी देखते है वह सब स्‍वप्‍न दृष्‍टाओं के स्‍वप्‍नों की ही योगफल होता है विश्‍व के इतिहास में से स्‍वप्‍न दृष्‍टाओं के वृत्‍तांत निकाल दीजिए, फिर देखिए कि इतिहास में क्‍या पढ़ने योग्‍य रहा जाता है। स्‍वप्‍नदृष्‍टया वस्‍तुत: मानवता के अग्रदूत हैं। वे कठोर श्रम एवं अनवरत साधना करते हुए, अपने खून पसीने को एक करते हुए अपने स्‍वप्‍नों को साकार करने वाले साधक हैं। इन्‍होंने ही कंटकाकीर्ण वनों को साफ किया तथा पथरीली राहों को काट छांट कर मानवता के लिए साफ सपाट सड़को का निर्माण किया है मानव कल्‍याण के इन साधको की भांति क्‍या आप भी मानव को भय एवं बंधनों से मुक्‍त करने का स्‍वप्‍न देखने की कामना करते है।
     परम्‍परागत रूप से मनुष्‍य को जो कुछ प्राप्‍त होता है उसमें सर्वाधिक महत्‍वपूर्ण है, कल्‍पना की वृद्धि अर्थात स्‍वप्‍न देखने की शक्ति के अनुसार जो अपने लक्ष्‍य की प्राप्ति के लिए प्रार्णपण से जुट जाते है अपने प्रयत्‍न के कृतकार्य होते है। विजय के स्‍वप्‍न को साकार करने की ललक भरे जापनी युवको ने अपनी लाशों से खाई को काट दिया था और जापानी फौजों के लिए रास्‍ता बना दिया था। सन् 1904 में रूस जैसे विशाल देश पर, छोटे से देश जापान की सनसनी विजय का यही रहस्‍य था। उन्‍हीं के स्‍वप्‍न साकार होते है जो धूल मट्टी कीचर कांटे कंकर के बीच भी काम में लगे रहने में सुख की अनुभूति करते हैं।
     आज कोई भी इस ऐतिहासिक तथ्‍य को जुठला नहीं सकता।


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