Wednesday, 7 February 2018

पार्ट ; 106


पार्ट ; 106

शब्‍द 420

बौद्धिक सम्‍पदा एक बहुत विस्‍तृत अवधारणा है जिसके कई पहलु होते है। बौद्धिक सम्‍पदा की विषय वस्‍तु, मानव की बौद्धिकता या मानव मन की प्रतिया होती है। मानव मन की बौद्धिक उपज होने के कारण ही इसे बौद्धिक सम्‍पदा कहा  जाता है। शाब्‍दिक अर्थो में बौद्धिक सम्‍पदा का तात्‍पर्य उन वस्‍तुओं या रचनाओं से है जो मानव बुद्धि के प्रयोग से उत्‍पन्‍न होती है। यह एक ऐसा उत्‍पाद होता है जो मानव के बौद्धिक प्रयोग या बौद्धिक मेहनत या कसरत के फलस्‍वरूप आता है। इस प्रकार यह व्‍यक्ति के बौद्धिक श्रम से उत्‍पन्‍न होने वाला उत्‍पाद है यह मतिष्‍कीय अवधारणाओं की दर्शनीय अभ्ज्ञिव्‍यक्‍त तथा मतिष्‍तक और हाथ देानों का सम्मिलत कार्य होता है। विस्‍तृत अर्थो में बौद्धिक सम्‍पदा पद अपने अंतर्गत्‍ विचारों, अवधारणाओं तकनीकी जानकारी और अन्‍य रचनात्‍मक अभिव्‍यक्तियों के साथ साथ साहित्‍यक, कलात्‍मक या यांत्रिक अभिव्‍यक्तियों को सम्मिलित करता है।
बौद्धिक सम्‍पदा सम्‍पति का स्‍वयं में एक वर्ग है जो  सम्‍पत्ति के परम्‍परागत स्‍वरूप चल और अचल सम्‍पत्ति वर्ग से अलग होता है। जैसा की इसके नाम से  स्‍प्‍ष्‍ट है कि यह मानव मन की बौद्धिक उपज होती है जो सामान्‍यत: उन विषिष्‍ट सूचनाओं या ज्ञान से संबंधित होती है जिसको भौतिक सम्‍पत्तियों के रूप में परिवर्तित किया।
वीपो के 1967 के महासम्‍मेलन में बौद्धिक सम्‍पदा की परिभाषा विकसित हुई थी। बौद्धिक सम्‍पदा साहित्‍यक कलात्‍मक या वैज्ञानिक कार्यों से संबंधित हो सकती है। कलाकारों द्वारा प्रस्‍तुत और प्रसारित हो सकती है। विभिन्‍य क्षेत्रों में की जाने वाली वैज्ञानिक खोजे, अविस्‍कार, औद्योगिक डिजायन, व्‍यापान चिनह, सेवा चिन्‍ह, व्‍यसायिक नाम, प्रतीक आदि सभी से बौद्धिक सम्‍पदा की‍ परिधि मे आते है।
         विधिक अर्थो में बौद्धिक सम्‍पदा कई विधिक अधिकारों का समूह या छतरी अवधारणा है इन विधिक अधिकारों का धारणकर्ता बौद्धिक सम्‍पदा की विषय वस्‍तु के उपर अनन्‍य अधिकारों का प्रयोग करने का अधिकारी होता है।
         इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि बौद्धिक सम्‍पदा मानव के बौद्धिक श्रम से उत्‍पन्‍न होने वाला उत्‍पाद है।
         इसके अंतर्गत ऐसी वस्‍तुए आती है जो अमूर्त या अभौतिक होती है और विधि के अंतर्गत अधिकारों का विषयवस्‍तु होती है।
         विधि की दृष्टि में मानव बुद्धि से उत्‍पन्‍न अमूर्त या अभौतिक उत्‍पाद जमीन जायजाद की तरह अमूल्‍य हेाता है। इसे  जो व्‍यक्ति उत्‍पन्‍न करता है विधि उसे उसका स्‍वामी मानती है। इसका केन्‍द्र बिंदु मतिष्‍क का उत्‍पाद होता है।
         यह मूलत: मानव निर्मित सम्‍पदा होती है जो भौतिक रूप से पूर्णत: या अधिकांशत: अदृश होती है।
इसे देखने समझने तथा उसका मूल्‍यांकन करने के लिए भी विशेष बौद्धिक दृष्टि की

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