Sunday, 11 February 2018

20 मिनट की नॉनस्टॉप हिंदी श्रुतलेख 35 WPM POST-LDC4


कुल शब्‍द 721
समय 20 मिनिट

संचनालय, खेल एवं  युवा कल्‍याण मध्‍यप्रदेश भोपाल के आदेश क्रमांक 3355 स्‍थान दिनांक 07/11/2006 द्वारा प्राथी को दिनांक 09/08/2006 से अनाधिकृत रूप से अनुपस्थित रहने के  कारण तत्‍काल प्रभाव से निलंबित किया गया था तथा आदेश क्रमांक 3374 स्‍थान दिनांक 24/10/2007 द्वारा निलबंन से बेहाल किया गया था जिसके पालन में प्रार्थी 24/10/2007 को अपने कर्तव्‍य पर उपस्थित हुआ। इस प्रकार प्रार्थी दिनांक 07/11/2006 से 23/10/2007 तक निलंबन के अधीन रहा।
         संचालक खेल एवं युवा कल्‍याण मध्‍यप्रदेश के ज्ञापन क्रमांक 4590 स्‍थान दिनांक 22/01/2007 द्वारा प्रार्थी को दो पदों का  आरोप दिया गया।
         अनाधिकृत  रूप से दिनांक 09/08/2006 से लगातार अनुपस्थित रहकर मध्‍यप्रदेश सिविल सेवा नियम 1965 के नियम 3 एवं 7 के प्रावधानों का उल्‍लंघन किया।
         अनाधिकृत रूप से मुख्‍यालय से बाहर चले जाना एवं निवास का सही  पता नहीं देना। प्रार्थी द्वारा आरोपों का  उत्‍तर दिया गया तथा आरोप अस्‍वीकार किए गए। प्रार्थी द्वारा बताया गया कि प्राथी अपनी पत्नि एवं स्‍वयं की बीमारी के कारण अवकाश कर रहा तथा समय समय पर अवकाश आवेदन पत्र, अस्‍वस्‍थता प्रमाणपत्र सहित कार्यलय में  प्रस्‍तुत करता रहा  था।
         संचालक, खेल एवं युवा कल्‍याण मध्‍यप्रदेश के आदेश क्रमांक 1115 स्‍थान दिनांक 01/06/2010 द्वारा प्रार्थी के विरूद्ध विभागीय जांच संस्थित की  गई जिसमें श्री मुकेश श्रीवास्‍तव अतिरिक्‍त पुलिस अधीयक्ष दमोह को  जांच अधिकारी नियुक्‍त किया गया तथा आदेश क्रमांक 1814 स्‍थान दिनांक 28/03/2010 द्वारा श्री सीताराम सत्‍या नगर पुलिस  अधीयक्ष दमोह को प्रस्‍तुत कर्ता अधिकारी नियुक्‍त किया गया।
         विभागीय  जांच उपरांत संचालक खेल एवं युवा कल्‍याण मध्‍यप्रदेश तथा श्री मुकेश श्रीवास्‍तव जांच अधिकारी की अनुशंसा अनुसार मध्‍यप्रदेश शासन खेल एवं युवा कल्‍याण विभाग मध्‍यप्रदेश के आदेश  क्रमांक 941/956/2011/9/दिनांक 19/05/2017 द्वारा प्राथी का 14/08/2006 से 23/08/2007 तक 435 दिन की अविध को  डाईजाने घोषित कयिा गया इसमे 07/11/2006 से 23/10/2007 तक 350 दिन की निलबंन अवधि भी सम्मिलित है।
         प्रार्थी को नियमों की उपेक्षा करते हुए दण्‍ड दिया गया है जिसमें प्राथी के पक्ष पर

तत्‍कालीन हल्‍का पटवारी के साथ मिलकर सड़यंत्र रचकर अधिक भूमि पर नामांतरण करा लिया है। इस प्रकार शील रानी उसके पुत्र तथा तत्‍कालीन हल्‍का पटवारी ने छल  कारित करके अधीनस्‍थ न्‍यायालय को गुमराह करके प्रतिअपीलार्थी की भूमि हड़पने का कुचक्र रचा है। अधीनस्‍थ न्‍यायालय ने भी हल्‍का पटवारी के पतिवेदन को ही आधार मानकर संशोधन पर 1650 वर्गफुट भमि पर नामांतरण का आदेश पारित कर दिया है। जबकि रजिस्‍टर्ड विक्रय पत्र से केवल 563 वर्गफुट भूमि ही विक्रय की गई है। इस कारण अधीनस्‍थ न्‍यायालय द्वारा पारित आदेश निरस्‍त किया जाना तथा प्रतिअपीलार्थिनी शील रानी तथा तत्‍कालीन हल्‍का पटवारी को दण्डित किया जाना न्‍याय हित में है एवं अपीलाथी ने खसना नम्‍बर 522(1) में से 523 वर्गफुट भमि का विक्रय किया वहां तक नामांतरण करना एवं खसरा नम्‍बर 521 जो किसी अन्‍य का है उसकी भमि पर नामांतरण नहीं करना था।
        यह कि, अधीनस्‍थ न्‍यायालय द्वारा पारित आदेश प्राकृतिक न्‍याय सिद्धांत के विरोध में है। प्राकृतिक न्‍याय का यह सर्वमान्‍य सिद्धांता  है कि हितधारी व्‍यक्ति को सुनवाई का अवसर दिये बिना कोई आदेश पारित नहीं किया जाना चाहिए यदि ऐसा आदेश पारित भी किया जाता है तो प्रारंभत: ही इस आधार पर भी अधीनस्‍थ न्‍यायालय द्वारा पारित आदेश शून्‍य है और निरस्‍त किया जाना न्‍याय हित में है और विक्रय पत्र के आधार पर एवं अपीलार्थी के स्‍वामित्‍व में अधिकार के खसरा नम्‍बर 522(1) की भ‍ूमि पर खसरा नम्‍बर 521 की भूमि जो अन्‍य व्‍यक्ति की है उस पर नामांतरण नहीं करना था।
        यह कि राजस्‍व न्‍यायालय कों स्‍वयत्‍य प्रभावित करने की अधिकारिता नहीं है किंतु अधीनस्‍थ नयायालय द्वारा पारित आदेश से अपीलार्थी एवं अन्‍य व्‍यक्ति क स्‍वयत्‍व को प्रभावित किया है। जितनी भूमि अपीलार्थी ने विकय्र ही नहीं की है उतनी भूमि पर प्रतिअपीलार्थी का नामांतरण कर दिया है। इस गलत नामांतरण आदेश के कारण प्रतिअपीलार्थी उस भूमि को अपना बताने लगी है जो उसने खरीदी ही नहीं है तथा प्रतिअपीलार्थी भूमि को विक्रय करने की फिराक में है। अपीलार्थी द्वारा विक्रय से मना करने पर प्रतिअपीलार्थी तथा उसका पुत्र लड़ाई झगड़ा को आमादा होता है।
        विधिक सूत्र है कि न्‍यायालय के कार्य से किसी व्‍यक्ति को कोई हानि नहीं होती है किंतु अधीनस्‍थ न्‍यायालय द्वारा पारित आदेश से अपीलार्थी के स्‍वामित्‍व व अधिकार की 1087 वर्गफुट भूमि के स्‍वयत्‍य पर अधिकार के बादल छा गये है। अत: अधिनस्‍थ न्‍यायालय द्वारा संशोधन पंजी पर जो आदेश पारित किया वह अधिकार क्षेत्र के बाहर होने से निरस्‍त किया जाना

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