कुल शब्द 466
पार्ट 291
समय 11 मिनिट 35
सेंकेंड
सिविल प्रक्रिया
संहिता संशोधन अधिनियम 1976 द्वारा संशोधन किया गया है। इस धारा में अधिक संयोधन
किया गया होने से यह धारा पूर्णत: नई संशोधित अत: स्थापना की गई है। इस धरा के
अनुसार उच्च न्यायालय सारभूत तथ्य के प्रश्न जिनका विचार विचारण न्यायालय अथवा
अपील न्यायालय में नहीं किया है अथवा गलत किया है, पर द्वितीय अपील में विचार
करने हेतु संक्षम बना दिया गया है। इस धारा में विद्यादक के पश्चात तथ्य शब्द
का कम कर दिया गया है, किंतु फिर भी हय धारा तथ्य संबंधी निष्कर्ष के विरूद्ध
द्वितीय अपील से संबंधित ही मानी गई है।
इस धारा के प्रारंभिक शब्द में तथ्य के
विवाद्यक के संबंध में स्पष्ट उल्लेख है, जिससे तथ्य के आधार पर उच्च न्यायालय
द्वितीय अपील ऐसे समय में की जाना उचित माना गया है, जबकि अवधारण निम्न एवं प्रारंभिक
न्यायालय द्वारा नहीं किया गया हो अथवा जिसका धारा 100 में निर्दिष्ट विधि के
किसी प्रश्न पर विनिश्चय के कारण दोषपूर्ण रीति से अवधारण किया गया हो। यह धारा
100 की अफवाद है जिसमें यह बताया गया है कि, केवल विधि के प्रश्न और वह भी सारभूत
विधि के प्रश्न पर ही द्वितीय अपील प्रस्तुत की जा सकती है, अत: तथ्य के आधार
पर अपील किया जाना संभव ही नहीं है।
इस धारा में सीमित परिसीमा में ऐसे तथ्य
के आधार पर उल्लेख किए गए है जिन पर अपील सुना जाना संभव है। पूर्व की धारा जिसमे
सन 1976 के अधिनियम क्रमांक 104 द्वारा संशोधन नहीं किया है। यह बात जो लघुवाद न्यायालय
द्वारा प्रसंगेय माने गये उस संबंध में महत्वपूर्ण न्याय-दृष्टांत निम्न
प्रकार है। किंतु बाद में व्यादेश का अनुतोष मांग लिया हो तो वह लघुवाद न्यायालय
द्वारा प्रसंगेय ना होकर उस पर द्वितीय अपील की जाना संभव होगा। अंतरकालीन लाभ की
वसूली का वाद विचारण किया जा सकता है अत: उसे यह धारा प्रभावित करती है।
इस धारा की विषय वस्तु जो 3000 रूपए
निश्चित की गई है, वह मूल वाद के पुर्नमूल्यांकन से संबंधित है, डिकी में यह मूल
वाद का मूल्यांकन वाद व्यय एवं ब्याज आदि की राशि जोड़े जाने से अधिक हो सकता
है। किंतु उसका निश्पादन के संबंध में दिनांक 17/06/1992 को इस धारा के अधीन ही
विचार किया जायेगा। क्योंकि मूल वाद का मूल्यांकन रूपयों तक ही था। डिकी का आकार
उपरोक्त बताए अनुसार वाद में अधिक हो जाने पर भी इस धारा पर उसका कोई प्रभाव नहीं
पड़ता है।
इस धारा में यह बताया गया है कि धारा 100
में वर्णित आधार के अतिरिक्त अन्य किसी आधार पर द्वितीय अपील संस्थित नहीं की जा
सकेगी। जिसक उद्देश्य केवल धारा 100 के उपबंधों एवं आधारों की पुष्टि करना मात्र
है जो आधार धारा 100 में मात्र द्वितीय अपील के लिए निर्दिष्ट किए गए है , उनके
अतिरिक्त और किसी अन्य आधार पर यह निष्कर्ष कि वादी प्रतिवादी का गोदी पुत्र
No comments:
Post a Comment