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पार्ट – 294
विधि अनुसार है कि मामला – प्रथम दृष्टया
प्रकरण सुविधा का संतुलन अपरिमित क्षति
वाद ग्रस्त भूमि संयुक्त हिंदु परिवार
की खानदानी सम्पत्ति है जिसका बंटवारा आज दिनांक तक नहीं हुआ है प्रकरण में प्रस्तुत
दस्तावेजों से यह प्रमाणित है कि सम्पत्ति संयुक्त हिंदु परिवार की सम्पत्त्ि
है। वादीगण प्रतिवादी क्रमांक 1 की पुत्रियां है।
प्रतिवादी के कोई पुत्र नहीं था केवल पुत्रियां है। इस कारण वादीगण का
वादग्रस्त भूमि में स्वामित्व व अधिकार है। प्रतिवादी क्रमांक 2 व 3 ने दुरभि
संधि करके कपट पूर्वक विक्रय पत्र संपादित कराया है तथा वादीगण के स्वामित्व व
अधिकार की भूमि का विक्रय पत्र संपादित कर दिया गया है। वाद ग्रस्त संपत्ति पर आज
भी संयुक्त हिंदु परिवार का ही कब्जा है। प्रतिवादी क्रमांक 3 की वादग्रस्त
भूमि पर विक्रय पत्र के आधार पर कब्जा प्राप्त नहीं हुआ है। सम्पत्ति अभिभक्त
खानदानी सम्पत्ति हे और प्रतिवादी क्रमांक 1 को कोई प्रतिफल नहीं मिल है। अत:
वादीगण के सहस्वामित्व के कब्जे में प्रतिवादी क्रमांक 3 व उसके मातहतों ने
शून्व व अवैध विक्रय पत्र के आधार पर कब्जे में दखअंजाजी की तो वादीगण के स्वामित्व
प्रभावित हो। इस कारण प्रथम दृष्टया प्रकार वादीगण के पक्ष में है इस संबंध में -
एमपीएलजे 1993 पृष्ठ 614 का न्यायिक
दृष्टांत अवलोकनीय है जिससे स्पष्ट लेख है कि सिविल प्रक्रिया संहिता, आदेश 39
नियम 1 एवं 2 अंतरिम व्यादेश कार्यवाहियों की जटिलता के कारण वादियों को
अपूर्णनीय क्षति होने की संभावना यद्यपि वादी का अभिनाम उसमें गंभीर प्रश्नों के
विचारणीय होने से वादी का दावा जिसे दोषपूर्ण अथवा तंग करने वाला अथवा तंग करने
वाला नहीं कहा जा सकता, वादी का प्रथम दृष्टया मामला बनना कहा जा सकता है। - जहां
वाद सम्पत्ति निश्चित रूप से वाद सम्पत्ति निश्चित रूप से वादी के कब्जे में
है, सुविधा की दृष्टि से उनका पलड़ा भारी है वाद सम्पत्ति के कब्जे से निकाली गई
/ वाद सम्पत्ति और उसके भाग अन्य व्यक्तियों को विक्रय किए गए है एवं 1984 के
अधिनियम क्रमांक 15 के तहत दखलकारों के परिनिर्धारण में है वहां मुकदमें की
बहुतायत कार्यवाहियों की
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