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आवेदन पत्र अंतर्गत आदेश 39 नियम 1 व 2 व्यवहार प्रक्रिया संहिता के
निराकरण के लिए तीन बिंदुओं का निराकरण किया जाना है। मुआबजा राशि भी प्रतिवादिनी
क्रमांक 1 को अदा नहीं की गई है। विक्रय
पत्र दिनांक 11/02/2013 मे मुआबजा राशि के संबंध में लेख है कि 22 लाख 46 हजार
रूपया विक्रेता ने आप क्रेता से नगद चुकता पा लिये है। मुआबजा राशि रजिस्ट्रार
महोदय के समक्ष अदा नहीं की गई है। इस संबंध में सम्मानीय उच्च् न्यायालय का
न्यायिक दृष्टांत जो मध्य प्रदेश बीकली नोट 1994 भाग 2, नोट नम्बर 187 का
अवलोकनीय है जिसमे स्पष्ट लेख है कि संपत्ति अंतरण अधिनियम 1882 धारा 55 विक्रय
विलेख प्रतिफल का संदाय रजिस्ट्रार के समक्ष नहीं किया गया – संदेह उत्पन्न
होता है। उपरोक्त परिस्थितियों से यह विधिवत् प्रमाणित है कि सुविधा का संतुलन
वादीगण के पक्ष में है।
वादग्रस्त भूमि
वादीगण की आजीविका का एक मात्र साधन है यदि वादिनीगण को बल पूर्वक बादग्रस्त भूमि
से वेदखल कर दिया गया तेा वादीगण का वाद
निष्फल हो जायेगा तथा उन्हे अपने स्वामित्व व स्वाधिकार की भूमि से हाथ धोना
पड़ेगा जिसकी पूर्ति रूपये पैसे के माध्यम
से किया जाना संभव नहीं है। अत: वादीगण के हित में स्थाई व्यादेश
वादग्रसत भूमि को प्रतिवादीगण को विक्रय करने एवं कब्जा करने से रोका जाना न्याय
हित में है। वादग्रस्त भूमि खसरा नम्बर 645 रकबा 1.30 हेक्टेयर, में से 0.50
हेक्टेयर इसी प्रकार खसरा नम्बर 646 रकबा 0.49 हेक्टेयर में से 0.24 हेक्टेयर
अर्थात अभिभूमि शामिल है जिसका बटवारा नहीं हुआ है। विक्रय पत्र साथ नक्शा संलग्न
है। इससे स्थिति स्पष्ट होती है कि आज दिनांक तक प्रतिवादी ने भूमि के विक्रय
पत्र के बटवारा नहीं कराया है। और नक्शा भी बटांक अर्थात बटवारा नहीं होने की पुष्टि होती है। ऐसी स्थिति में यदि भूमि विक्रय कर दिया जाता है या जबरन कब्जा
किया जाता है तो वादीगण को अपूर्णनीय क्षति होगी।
अत: वादीगण लिखित
तर्क प्रस्तुत कर सम्मानीय न्यायालय से निवेदन करते है कि वादीगण के पक्ष में
अस्थाई निषेधाज्ञा प्रदान की
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