Tuesday, 6 February 2018

पार्ट 300

कुल शब्‍दा 422

समय  10 मिनिट

पार्ट 300

वेद और वैदिक वांग्‍यमय के चालीस क्षेत्र है। यह वेद और वाग्‍यम हमारे शरीर में ही स्थित है हमारे शरीर की रचना इन्‍हीं  के सूक्ष्‍म संपदनों से हुई है। इसकी  वैज्ञानिक जानकारी हमारे लिए अत्‍याधिक मूल्‍यवान है क्‍योंकि वेद पूर्ण ज्ञान है और समस्‍त व्‍यक्ति जगत का आधार है। महार्षि अत्‍याधिक वैदिक टेक्‍नोलॉजी के द्वारा हम अपनी चेतना को जागृत कर उसके गुणों से जीवन को पोषित  कर पूर्ण वि‍कसत रिद्धी सिद्धी वान एवं सर्वगुण  सम्‍पन्‍न एवं चेतनावान बन सकते है।

         कालांतर में वेद और वैदिक वांग्‍यमय को जो इतना विस्‍तृत परिवार है उसका ज्ञान एवं उपयोग वर्तमान जीवन में लुप्‍त हो गया था। वेदों के परिवार के सदस्‍य इधर उधर विखर गये थे। जिससे मनुष्‍य  उसके ज्ञान के आधार पर अपना जीवन यापन ना कर सके, परिणाम स्‍वरूप अपने प्रकार के रोग, दुख, समस्‍या एवं कठिनाईयों से जूझता हुअा विकास की दिशा में प्रगति नहीं कर पा रहा है। जैसा कि अभी हमने बताया कि वेद पूर्ण ज्ञान है और ज्ञान का गठन चेतना में ही होता है जिसे महर्षि जी ने यूनिफाइड फील्‍ड योगिक क्षेत्र कहा है। ज्ञाता ज्ञान और गेय  तीनों संहिता  रूप में इसी क्षेत्र में स्थित है जिन्‍हें वेद की भाषा में ऋषि देवता एवं छंद की संहिता कहा है। इसमें  ऋषि ज्ञाता है, देवता ज्ञान पाने की क्रिया, एवं छंउ ज्ञेय हे अर्थात जिस विषय को जानना है मानव शरीर की चेतना में ही वेदों का  गठन और संरचना है इसी  गठन में वेद और वैदिक वांग्‍मय के 40 क्षेत्र स्थित है इन्‍हीं वैद और वैदिक वांग्‍मय के स्‍पदनों के द्वारा शरीर कर निर्माण एवं संचालन होता है यह 40 क्षेत्र शरीर के विभिन्‍य भागों का प्रतिनिधितव्‍ करते है । ऋगवेद  का संबंध पूरे शरीर से यह प्रत्‍येक व्‍यक्ति की चेतना में प्रकृति के नियमों की वह अव्‍यक्ति है जहां क्रियाशीलता और शांति  दोनों एक साथ विद्यमान है। भावातीत चेतना का यह क्षेत्र अनंत, असीमित, नित्‍य शांतियुक्‍त, आत्‍म निर्भर व स्‍वसंदर्भी   क्षेत्र है ऋगवेद मे प्रथम मण्‍डल में 192 सूत्र, अध्‍याय 64, अष्‍टक 8 है। भौतिक शरीर मे प्रथम मण्‍डल के 192 सूत्र शरीर के स्‍नायु संस्‍थान के 192 नरवस इनका प्रतिनिधित्‍व करते है। सामवेद के स्‍पंदनों से शरीर के जिस भाग की  रचना हुई  है उसे सेंसरी सिस्‍टम कहते हे। सामवेद ऋषि प्रधान वेद  है यह दृष्‍टया यानी साक्षी भाव का सूचक है सामवेद की रायानी कौसुमी जैमिनी तीनों शाखाए की जागृति  को चेतना में अनुभव कराके ज्ञान उपलब्‍ध कराया जाता है। सामवेद की 1000 शाखाए हा जो भौतिक शरीर मे अनुभव के या बोध के केन्‍द्रीय ग्राह्रयता इन्द्रिय बोध

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