Sunday, 4 February 2018

40 WPM Hindi Dictation for Court, SSC, CRPF, Railways, LDC Exam Post-85 Mater Link। महाराणा प्रताप

कुल शब्‍द 422 समय 10 मिनिट पार्ट 285

 स्‍वतंत्रता के अप्रतिम पुजारी महाराणा प्रताप मेवाड़ं के सिसोदिया वंश में उत्‍पन्‍न हुये थे जो अपने को सूर्य वंशी मानते है उनके पिता महाराणा उदय‍ सिं‍ह थे। वनवीर के सड़यत्र से सुप्रसिद्ध स्‍वाभी भक्‍त दासी पन्‍ना धाय ने अपने पुत्र चंदन की बलि देकर उनकी जीवन रक्षा की थी।
         महाराणा प्रताप का जन्‍म विक्रमी संबंत 1597 ज्‍येष्‍ठसुदी तृतीया तद्वनुसार सन 1640 ईसवी में हुआ था उनकी माता जयंतीबाई पाली के प्रतिष्‍टत सरदार अखयराज सोनगरा की पुत्री जयंतीबाई थी। राणा उदय सिंह के पुत्रों में प्रताप ज्‍येष्‍ठ थे।
         महारणा उदय सिंह के समय आगरा में मुगल बादशाह अकबर का शासन था। अकबर ने एनकेन प्रकारेण राजपूत राजाओं से मित्रता स्‍थापित कर भारत का चक्रवर्ती सम्राट बनने का सपना संजोया था। राजपुताने के राजा मानसिंह जैसे अनेक  राजाओं ने अकबर के झासे में आकर अकबर की आधीनता स्‍वीकार कर ली। केबल मेवाड़ का सिसोदिया राजकुल ही ऐसा था, जिसने मुगलों से हमेशा लोहा लिया था। 1568 में राणा उदय सिंह के शासनकाल में अकबर ने चितौढ़ पर आक्रमण किया था। महाराणा उदय सिंह विपरीत परिस्थितियों के कारण चित्‍तौण के सेनापति का दायित्‍व जयमल्‍ल राठौर और पत्‍ता चूढ़ावत को सौंप कर अपने परिवार के  साथ अरावली के पहाड़ो में चले गये। प्रताप भी उस समय मन मसोस कर उनके साथ चल दिए अकबर ने चित्‍तोढ दुर्ग के चारों ओर घेर लिया। जयमल्‍य और पत्‍ता में नेतृत्‍व में युद्ध हूआ। 25 फरवरी, 1568 का वह पावन दिन बलिदान दिवस बन गया। चित्‍तोण के तीसरे जौहर में हजारों बीरांगनों ने सशरीर अपनी आहूति दी। रणबांकरों ने युद्ध में अपना बलिदान दिया। परंतु चित्‍तौण अकबर के कब्‍जें में चला गया। उदय सिंह इस सदमें को सहन नहीं कर सके वे लगातार बीमार रहने लगे। चार साला तक गोगुंदा के राजमहल में स्‍वयं को बंद कर लिया और 28 फरवरी, 1572 को उनका स्‍वर्गवास हो गया। महारणा उदयसिंह ने अपनी कनिष्‍ट रानी के आग्रह पर उसके पुत्र जगमल्‍य को अपनी मृत्‍यु से पूर्व की अपना उत्‍राधिकारी घोषित कर दिया था। प्रताप ने पिता की इच्‍छानुसर प्रभु रामचंद्र के आदर्श का पालन करते हुए संहासन त्‍यगते हुए मेवाड़ से कही जाने की तैयारी कर ली पर वहां के सरदार भंली भांति जानते कि आज मेवाड़ पर ही आज सारे भारत पर मुगलों का आंतक फैला हुआ है इस संकट काल मे मेवाड़ की तथा हिंदु गौरव की रक्षा केवल प्रताप ही कर सकते है इसलिए चूढ़ावत् सरकार कृष्‍ण सिहं तथा प्रमुख सेनापति झालाराव के प्रयासों से फाल्‍गुन सदी 15 विक्रमी संबंत 1628 तद्नुसार 3 मार्च, 1572 को चित्‍तौण से 18 मील उत्‍तर-पश्ख्मि मे गौगुदा में


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