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Hindi Dictation for High Court, SSC, CRPF, Railways, LDC Exam Post- Legal Matter 287
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पुलिस का
अभिप्राय राज्य के उस अभिकरण से है जिसका कार्यविधि तथा व्यवस्था को बनाए रखना
है। प्रोफेसर सदरलैण्ड के अनुसार, ‘पुलिस शब्द प्राथमिक रूप से राज्य के उन
एंजेटो की ओर संकेत करता है जिनका कार्य कानून और व्यवस्था को बनाए रखना है और
नियमित अपराधी संहिता को लागू करना है’। सामाजिक तथा न्यायिक मशीनरी में पुलिस का
योगदान महत्वपूर्ण होता है। अपराधी जब पकड़ा जाता है तो , उसका सर्वप्रथम सम्पर्क
पुलिस के साथ होता है विधि का अपनुपालन तथा नागरिकों के जीवन व सम्पत्ति की रक्षा
का दायित्व पुलिस पर होता है। इस प्रकार पुलिस का अभिप्राय राज्य के उस अधिकर्ता
से है जो विधि तथा अवस्था के अनुपालन संबंधी कार्यों को सम्पन्न करती है। भारत
में ईस्ट इंडिया कंपनी से पूर्व विधि तथा व्यवस्था के अनुपालक के रूप में कोइ
प्रथक पुलिस प्रणाली नहीं थी। सर्वप्रथम वारने हेंरेटस ने सन् 1874 ईववीं में
पुलिस सुधार की ओर ध्यान दिया। भारत में पुलिस का कार्यों का अध्ययन कुछ निम्न
शीर्षकों के अंतर्गत किया जा सकता है। निरोधात्मक कार्य, अपराधियों की गिरफ्तारी
के संबंधित कार्य अपराधी के अन्वेषण संबंधी कार्य, पुलिस के निरीक्षक कार्यो में
लोकशांति, यातायात नियंत्रण, जनजीवन तथा सम्पत्ति की रक्षा प्रमुख है। अपराध
प्रक्रिया संहिता 1974 के अंतर्गत पुलिस के निरोधक कार्यों की चर्चा की गई है।
पुलिस संज्ञेय अपराधों को घटित होने से रोकने के लिए हस्तक्षेप कर सकती है।
संज्ञेय अपराध को होने से रोकने के लिए पुलिस गिरफ्तारी कर सकती है पुलिस झूठे
नापतौल के मापकों का परीक्षण कर सकती है। पुलिस मजिस्ट्रेट के आदेश के बिना भी
अपराधी केा अपनी हिरासत में ले सकती है।
सामान्यत: पुलिस न्यायालयों के लिखित
आदेश पर बंदीकरण का कार्य करती है लेकिन कुछ परिस्थितयों में पुलिस बिना वारंट के
भी गिरफतारी कर सकती है। संज्ञेय अपराध की दशा में, उस दशा में जब अभियुक्त के
पास ऐसा सामान बरामद हो जिसका चुराई हुई होने का संदेह हो। उस दशा में जब कोई व्यक्ति
पुलिस को अपने कार्य सम्पादन से रोकता हो।
पुलिस जिन व्यक्तियों को बिना वारंट के
गिरफतार करती है, उन्हें 24 घंटे से अधिक अपनी हिरासत में नहीं रख सकती। इससे अधिक हिरासत में रखने के लिए न्यायाधीश
का आदेश लेना आवश्यक होता है।
अन्वेषण का उद्देश्य उन परिस्थितियों
तथा तथ्यों को निश्चित करना है जिसमें अपराध सम्पन्न हुआ है। संज्ञेय अपराध की
दशा में, पलिस न्यायाधीश से आदेश प्राप्त किए बिना भी अन्वेषण कर सकती है।
असंज्ञेय अपराध की दशा में पुलिस को न्यायाधीश से आज्ञा लेनी पढ़ती है। अन्वेषण
द्वारा अपराधी का पता लगाया जाता है। और तत्संबंधी साक्ष्य एकचित कर संचित व्यक्ति
को परीक्षण के लिए न्यायालय की सामने
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