Monday, 5 February 2018

40 WPM Hindi Dictation for High Court, SSC, CRPF, Railways, LDC Exam Post- Legal Matter 288

40 WPM Hindi Dictation for High Court, SSC, CRPF, Railways, LDC Exam Post- Legal Matter 288

कुल शब्‍द 433 समय 10 मिनिट 40 सेंकेंड

न्‍यायालय प्रणाली में विचारण का तात्‍पर्य उस कार्यवाही से है जिसका उद्देश्‍य अपराधी को दोषसिद्धी या दोषमुक्ति प्रदान करना है। यह केवल अपराध के विचारण से सम्‍बंधित है ना कि अन्‍य कार्यवाहियों से। इसका संचालन न्‍यायाधीश द्वारा किया जाता है। अपराध शास्तियों ने विचारण के संबंध में निम्‍न स्‍तरों का उललेख किया है। अभियुक्‍त की सक्षम न्‍यायाधीश के पेश किया जाता है। अभियुक्‍त  की सक्षम न्‍यायाधीश के सक्षम पेश किया जाता है न्‍यायाधीश साक्षियों के आधार पर यह निश्‍चय करता है कि अभियुक्‍त्‍ के विरूद्ध लगाये गये आरोप सही है अथवा निराधार। यदि न्‍यायालय अभियोजन में लगाए गए आरोपो को सही पता है तो उसे दण्डित करेगा। इसेक विपरीत, यदि आरोप निराधार है तो न्‍यायालय अभियुक्‍त को दोषमुक्ति प्रदान करेगा।
        विचारक के समय दोनों पक्ष साक्ष्‍य करके अपने अपने साक्ष्‍य पेश करते है। अभियोजन तथा अभियुक्‍त दोनों पक्षों के साक्ष्यिों के परीक्षण के बाद यदि न्‍यायालय अभियुक्‍त्‍ को  दोषी पता है, तो उसे दण्डित करेगा अन्‍यथा दोषमुक्ति प्रदान करेगा। अभियोजन के निमित्‍य साक्ष्‍य के सम्‍बन्‍ध में अनेक समस्‍याएं पैदा होती है।
        अभियोग से सम्‍बंधित साक्ष्‍यकारों की साक्ष्‍य देने के लिए प्रेरित करना कठिन होता है प्राय:साक्ष्‍यकार, अभियुक्‍त के भय, बार बार न्‍यायालय में उपस्थित होने की असुविधा तथा अन्‍य खर्च केकारण साक्ष्‍य नहीं देना चाहते। आपराधि घटनाओं के बारे में साक्ष्‍य प्राय: निश्चित दिन तथा समय को याद नहीं रख पाते। विचारण में अत्‍याधिक समय लगने के कारण, वे घटना के पूरे विवरण नहीं बतला सकते। अत: विचारण की दृष्टि से साक्ष्‍य अधिक उपयोगी नहीं रह पाता। इसके अतिरिक्‍त अनेक अभियोगों में मिथ्‍या साक्ष्‍य एकत्र किए जाते है मिथ्‍या साक्ष्‍य के कारण न्‍याय गलत दिशा को चला जाता है।
        मजिस्‍ट्रेट द्वारा विचारण किए जाने वाले मामलों को तीन श्रेणियों में विभाजित कर सकते है। वारंट मामलों का विवरण, समन मामलों का विचारण, संक्षिप्‍त विचारण।
वारंट मामला उस मामलें को कहते है जो ऐसे अपराध से संबंधित हो जो प्राणदण्‍ड, आजीवन कारावास अथवा दो वर्ष से अधिक की अवधि के कारावास से द‍ण्‍डनीय हो।
        जब कभी पुलिस रिपोर्ट के आधार पर कोई वारंट मामला मजिस्‍ट्रेट के समक्ष संस्‍थित किया जाता है तेा अभियुक्‍त को न्‍यायालय के समक्ष प्रस्‍तुत किया जाता है अथवा यह स्‍वयं उपस्थित होता है तो सर्वप्रथम वह इस बात का समाधान करेगा कि धारा 207 की व्‍यवस्‍थाओं का अनुपालन किया जा चुका है।

        यदि धारा 173 के  अ‍धीन पुलिस रिपोर्ट और उसके साथ भेजी गई दस्‍तावेजों पर विचार कर लेने पर और अभियुक्‍त  की ऐसी परीक्षा जैसे मजिस्‍ट्रेट आवश्‍यक समझे कर लेने पर और अभियोजन और अभियुक्‍त को सुनवाई का अवसर देने के पश्‍चात मजिस्‍ट्रेट अभियुक्‍त्‍ के विरूद्ध आरोप को निराधार समझे तो वह उसे 

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