कुल 465
समय 10
मिनिट
20/02/1996
की घटना होकर 29 तारीख को न्यायालय के समक्ष पहुंचा हो यह अभियोजन से यह अपेक्षा
नहीं की जाती कि मजिस्ट्रेट को प्रथम सूचना रिपोर्ट के घंटे विलय का वह स्पष्ट
करे परंतु तत्समय विद्यमान परिस्थिति के अंतर्गत उसे यथा संभव युक्तियुक्त समय के
भीतर अवश्य भेंज देना चाहिए। अत: जहां कोई रिपोर्ट दिन में बारह बजे दाखिल की गई
है और प्रकरण के तथ्यों और परिस्थितियों कें संदर्भ में तथा पुलिस थाने पर पुलिस
बल की पर्याप्त संख्या के अभाव को ध्यान में रखकर यदि उसे शाम छह बजे भेज दिया
जाता, वहां यह नहीं कहा जायेगा कि विलंब किया गया।
इस संहिता की धारा 157-1 में प्रयुक्त तत्काल शब्द का तात्पर्य
निसंदेह केवल यह है कि एक युक्तियुक्त संदेह के भीतर और बिना किसी अयुक्तियुक्त
विलबं उसे मजिसट्रेट को अग्रसारित कर देना चाहिए। फिर भी उसकी प्रति को तत्काल
नहीं भेजा जाता तो केवल इसी कारण अभियोजन का संपूर्ण प्रकरण संदेहपूर्ण नहीं बन
जाता अपितु इस बजह से न्यायालय को सतर्क हो जाना पड़ता है और विलंक का स्पष्टीकरण
जानने का प्रयास करना होगा यदि नहीं किया जाता तो यह सावधानी रखनी चाहिए। निर्दोष
व्यक्तियों को मिथ्यापूर्ण ढंग से नही फसाया गया है।
जहां घटना प्रात: दस बजे के लगभग घटित हुई हो और क्षतिव्यक्ति को
अस्पताल में इसका वोट खरीदने का विजनेस बना जाता है। इस प्रक्रिया में बैंक
दिवालिया होते रहते है। चूंकि सारे बैंक सरकारी है तो उनहें नाकाम नहीं होने दिया
जा सकता और सरकार के पास टेक्स लगाने और नोट छापने के अधिकार है। इसलिए सरकार फिर
अपनी ही बैंके खरीदती है । रिकेपीटलाईजेशन से बैंकों से आप बान्ड जारी करवा सकते
है। जिसकी मदद से आप अन्य कंपनियां जैसे अतिरिक्त
नगदी बाले सार्वजनिक उपक्रमों को खरीद सकते है। अब मुझे बताईयें की क्या हमारी
माइलों माइंडर बाइंडर से भी ज्यादा चतुर पूंजीवादी नहीं है? यदि उसका इकोनामिक कैच-22 था तो भारत सरकार का कैच-23 होगा।
आपकों यह पूछने की इच्छा हो सकती है कि कैच-22 का मेरा यह व्यंग
बैंकों को उबारने के लिए नवीनतम कार्यक्रम की मेरी सराहना से कैसे मिलता है। यह
अच्छा कार्यक्रम है क्योंकि मौजूदा परिस्थितियों में यहीं संभव था यदि आप डॉक्टर
है और अस्थमा के भीषण के अटैक में आपके रोगी का दम घुट रहा हो तो पीर में साईड
अफेक्ट की परवाह किए बिना स्टेराईड पंप करने के अलावा आप क्या करेंगे? 70 फीसदी बैंकिंग सरकारी हो, वे दिवालिया होने के
करीब हो तो आप क्या करेंगे? फंड खड़ा करने के लिए बान्ड
जारी करने का आईडिया चतुराई भरा है। लेकिन अब नगदी से मालामाल अन्य सार्वजनिक
उपक्रम, जिनमें ज्यादातर ऊर्जा की मोनोपाली है को यह बान्ड
खरीदने को कहा जायेगा यह विचलित करने वाली बात है। हम
इतने भी नासमझ नहीं है कि उनसे इंदिरा गांधी की सबसे खराब विरासत, बैंको के राष्ट्रीयकरण को उलटने की मांग करे।
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