Tuesday, 6 February 2018

पार्ट – 93

कुल शब्‍द 444
समय 11 मिनिट
पार्ट – 93

भौतिक विज्ञान में प्रयोग का अर्थ होता है कृत्रिम परिस्थियों में प्रकृति की घटनाओं को घटित कराना। इस चरण में यह देखा जाता है कि परिकल्‍पित कारणों के आधार पर प्राकृतिक घटनाओं को कृत्रिम परिस्थितियों में घटाया जा सकता है या नहीं। यदि परिकल्पित कारणों कें आधार पर घटना घट जाती है तोवह कारण उस घटना का नियम या सिद्धांत बन जाता है इस परिस्थिति में तथ्‍यों को बहुत बढ़ी संख्‍या में एकत्र किया जाता है। वस्‍तुत: भौतिक विज्ञान का यह चरण अत्‍यंत महत्‍वपूर्ण है।  प्राकृतिक नियमों की जानकारी और इसका प्रमाणीकरण इसी चरण में पूर्ण हेाता है।
          वेद विज्ञान के अनुसार प्रयोग का स्‍वरूप भावातीत ध्‍यान है इस चरण में तथ्‍यों को संचात्‍मक दृष्टि से एकत्र ना करके बल्कि गुणात्‍मक दृष्टि से एकत्र किया जाता है। इस विज्ञान में तथ्‍य के लिए एक नया शब्‍द ‘तत्‍व’ दिया गया है। यह तत्‍व मंत्रों कें रूप में प्राप्‍त होता है। मंत्रों का बार बार अभ्‍यास करने से अपेक्षित प्राकृतिक नियम का बोध हो जाता है। जो स्‍थान भौतिक विज्ञान में प्रयोग का है ठीक वही स्‍थान वेद विज्ञान में भावातीत ध्‍यान का है।
          भौतिक विज्ञान में जो कार्य परिकल्‍पना का होता है ठीक वही कार्य वेद विज्ञान में भाव अथवा विचार का है भौतिक विज्ञान का प्रयोग के पूर्व घटनाओं कें सम्‍बन्ध में विभिन्‍य प्रकार की परिकल्‍पना की जाती है और इन्‍हीं परिकनाओं को प्राथमिकता के आधार पर प्रयोगशाला में सिद्ध किया जाता है सिद्ध हो जाने पर सिदांत बन जाता है।
          जबकि वेद विज्ञान मे परिकल्‍पना के स्‍थान पर प्राकृतिक घटनाओं के कारण को जानने के लिए आंतरिक रूप से भाव अथवा विचार करना पढ़ता है। भाव से आशय मन की उस स्थिति से जिसमें अपेक्षित ज्ञान के लिए संकल्‍प किया जाता है। संकल्‍प का यह स्‍वरूप अत्‍यंत सहज और सरल होता है यदि मन जटिल है और अहम के आधार भाव को अपनी चेतना में आने दिया जाता है तो अपेक्षित ज्ञान की प्राप्ति नहीं हो पाती। भाव की उत्‍पत्ति एक बच्‍चे की चेतना के समान होती है। भावातीत ध्‍यान में उतने के पूर्व मन में एक संकल्‍प या भाव रखा जाता है।  य‍ही भाव मंत्रों के माध्‍यम से भावातीत ध्‍यान करते हुए सिद्ध हो जाता है अर्थात उभरते हुए विज्ञान की भांति सिद्धांत के स्‍वरूप की प्राप्ति हो जाती है।

          भौतिक विज्ञान में प्राकृतिक नियमों की प्राप्ति संपूर्ण ब्रह्रांड की व्‍यवस्‍था के रूप में होती है जबकि वेद विज्ञान में नियमों की प्राप्ति व्‍यवस्‍था के रूप में ना होकर व्‍यक्तिगत के रूप में होती है यह बात अत्‍यंत महत्‍वपूर्ण है व्‍यकित्‍व से आशय नियमों की उस आकृति से जिसमें शक्त्‍ि निहित होती है और इस आकृति विशेष को ही देवी और देवता कहते है शक्ति का निषेधात्‍मक 

No comments:

Post a Comment

70 WPM

चेयरमेन साहब मैं आपसे कहना चाहता हूँ कि हम लोग देख रहे है कि गरीबी सबके लिए नहीं है कुछ लोग तो देश में इस तरह से पनप रहे है‍ कि उनकी संपत...