Friday, 2 February 2018

Hindi Dictation Post1 सुप्रीम कोर्ट ने सोशल जस्टिस

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सुप्रीम कोर्ट ने सोशल जस्टिस से जुड़े मामलों के लिए एक अलग विशेष बेंच बनाने का फैसला लेकर न्यायपालिका की एक अहम जिम्मेदारी को रेखांकित किया है। जनहित याचिकाओं की शक्ल में आए ऐसे तमाम मामले बाकी हजारों मुकदमों के बीच अलग-अलग बेंचों में लंबित पड़े हैं। अदालत ने महसूस किया कि इन मामलों की बारीकी को समझने और इन्हें जल्दी किसी नतीजे तक पहुंचाने के लिए एक खास सामाजिक दृष्टि की जरूरत है।
ये ऐसे मामले हैं जो महिलाओं बच्चों और समाज के अन्य कमजोर तबकों के हितों और उनके अधिकारों से जुड़े हैं। ऐसे मामले अगर समय पर अदालत का ध्यान नहीं खींच पाते तो कमजोर तबकों के संवैधानिक अधिकारों के उल्लंघन का खतरा पैदा हो जाता है। गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट में लंबित ऐसे करीब 200 मामलों में से65 पर सुनवाई नई स्पेशल बेंच में शुरू की जाएगी। आगे चल कर वे मामले भी इस बेंच को स्थानांतिरत किए जा सकते हैंजिन पर दूसरी बेंचों में सुनवाई पहले ही शुरू हो चुकी है।

बहरहालसामाजिक न्याय को आगे बढ़ाने में यह बेंच कैसी भूमिका निभाती हैयह तो तब स्पष्ट होगा जब बेंच अपना काम शुरू करेगी और इसके फैसले आने लगेंगे। अभी जो कुछ प्रमुख मुकदमे इस बेंच के सामने आने वाले हैंउनका जिक्र भी इसकी प्रकृति के बारे में एक राय बनाने के लिए काफी है। एक अहम मुकदमा इस बारे में है कि गोदामों में पड़े सरप्लस अनाज के भंडार को क्यों न सूखाग्रस्त क्षेत्रों के लोगों में बंटवाने की व्यवस्था की जाए।
ऐसे ही बेघरों के लिए आश्रय स्थल सुनिश्चित करवानेपौष्टिक भोजन के अभाव में महिलाओं और बच्चों की असामयिक मौत रोकने की व्यवस्था करनेसभी नागरिकों को (चाहे उनकी आर्थिक स्थिति कैसी भी हो) स्वास्थ्य संबंधी सुविधाएं मुहैया कराने जैसे मुद्दे भी इन जनहित याचिकाओं में उठाए गए हैं। साफ है कि ये तमाम मुद्दे सरकार की ऐसी जिम्मेदारियों से जुड़े हैंजिनकी अनदेखी करने का चलन इधर बढ़ता जा रहा है। अगर सुप्रीम कोट की ताजा पहल इस चलन पर अंकुश लगा सकी तो इससे भारतीय लोकतंत्र की जमीन मजबूत होगी।


जरा सोचिये देश में जब कभी भी आम या स्थानीय स्वराज (के चुनाव होते हैं तब कितने प्रतिशत मतदान होता है ? ४० %,५० % या फिर कभी कभार ६० % . इससे अधिक मतदान बहुत काम बार होता है। इसके बाद जिस दल की सरकार बनती है उसको मिलने वाले वोटों का प्रतिशत भी २० प्रतिशत से अधिक नहीं होता। यानि कि सरकार उनकी बनती है जिसे मात्र २० प्रतिशत लोगों का समर्थन हासिल हो। यहाँ विडम्बना है। और यहाँ विडम्बना इसलिए भी है  क्‍योंकि लोग वोट देना ही नहीं चाहते।

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