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सरकार जब कानून बनाती है तो कहती है कि मजदूरों के साथ न्यायपूर्ण
व्यवहार करे तो यह जिम्मेदारी सरकार के भी उपर आ जाती है कि वह न्यायपूर्ण
मालिक बने किंतु मैं आपको बतला देना चाहूंगा कि पब्लिक सेक्टर में सरकार भी ओर से
न्यूनतम वेतन निर्धारित किया गया है।
हमारे महाराष्ट्र में और मध्यप्रदेश में
कोयला खानों में काम करने वाले मजदूरों को काफी मेहनत करनी पढ़ती है धूप में काम
करना पढ़ता है उसी तरह से मैग्नीज की खानों में भी जो अपने देश का एक बढ़ा महत्वपूर्ण
उद्योग है मजदूरों को परिश्रम से काम करना पढ़ता है। हमारी हिंदुस्तान की सरकार
ने तीन साल पहले उनका वेतन निर्धारित किया आप जानते है कि जो मजदूर हेाते है उनको
खाने को भी ज्यादा लगता है तो इतने में वह कैसे पेट भर सकते है।
इतनी मजदूरी
निर्धारित किए हुए तीन साल बीत गए है फिर भी उनके वेतन में कोई बृद्धि नहीं हुई है
और दूसरी ओर हम देखते है कि जब सरकारी नौकर का इंक्रीमेंट डयू हो जाता है तो वह एक
दिन में नहीं रूकता वह कहने लगता है कि इस महीने में इंक्रीमेंट था इस महीने की
पगार में उसे शामिल क्यों नहीं किया गया? दूसरी तरफ मजदूरो की वही मजदूरी है जो
कि बहुत साल पहले निर्धारित की गई थी। मंहगाई बढ़ती जा रही है मगर उसके वेतन में
बृद्धि न के बराबर है। मैं यह कहने जा रहा था कि एक तरफ वे मजदूर है जिनको की अच्छा
वेतन मिलता है जिनको की छुट्टिया भी मिलती है। जिनको मेडिकल की सुविधा है जिनको की
सारी सुविधाए मिलती है और दूसरी ओर वे मजदूर है जिनको की काम करने के बाद भी
निर्धारित वेतन कभी पूरा नहीं मिलता है।
श्रीमान में आपके सामने बीढ़ी उद्योग के मजूदों का जिक्र कर रहा था
उसे कोई बोनस नहीं मिलता है उसे कोई छुट्टी नहीं मिलती है। उसे अन्य कोई सुविधा भी नहीं मिलती है इसलिए मैं यह कहना चाहूगा कि
आज जो हमारे लेबर के संबंध में कानून बने हुए है वे ठीक नहीं है अगर आप सुप्रीम
कोर्ट के जजमेंट को खोलकर देखेगे तो आप इस बात को देख सकेंगे कि लेबर पैसेज का
निपटारा करने के लिए वहां अलग से बेंच बनानी पड़ी कोई भी कानून आता है तो
कारखानेदारों की मनोवृत्ति यही रहती है कि कैसे उनका
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