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हिंदी
भाषा की अधिकृत लिपी बनने में बड़ी कठिनाईयों का सामना करना पड़ा है। अंग्रजों की
भाषा नीति फारसी जो अधिक लिखी हुई थी इसलिए हिंदी को भी फारसी लिपी में लिखने का
संडयंत्र किया गया।
हिंदी भाषा और फारसी लिपी का धार्मिक
फोर्ट बिलियम कॉलेज की देन थी। फोर्ट बिलियम कॉलेज के हिंदुस्तानी विभाग के
सर्वप्रथम अध्यक्ष जॉन जिप्स क्राईट थे। उनके अनुसार हिंदुस्तानी पीठ की तीन
शैलिया थी- दरवाली या फारसी शैली, हिंदुस्तानी
शैली व हिंदवी शैली। देश फारसी शैली को यूरोल तथा हिंदगी शैली को गवारू मानते थे।
इसलिए उनहोंने हिंदुस्तानी शैली को प्राथमिकता दी। उन्होंने हिंदुसतानी के जिस
रूप को बढ़ाव दिया उसका मू लआधार तो हिंदी ही था। किंतु उसमें अरबी-फारसी शब्दों
की बहुलता थी और वह फारसी लिपी में लिखी जाती थी। जींस क्राईस्ट में हिंदुस्तान
के नाम पर असल में उर्दु भाषा का प्रचार किया।
1823 ईसवी में हिदुस्तानी विभाग के अध्यक्ष
के रूप में बिलियम क्राईस्ट की नियुक्ति हुई । उनहोंने हिंदुस्तानी के नाम पर
हिंदी (नागरी लिपी में लिखित) पर बल दिया। क्राईस ने जिस क्राईस द्वारा जनित भाषा
संबंधी भ्रांति को दूर करने का प्रयास किया लेकिन क्राईस के बाद कॉलेज की
गतिविधियों कें कोई विशेष प्रगति नहीं हुई।
वर्ष 1830 ईसवी में अंग्रेज कंपनी द्वारा
अदालतों में फारसी के साथ साथ देशी भाषाओं को भी स्थान दिया गया। वास्तव में, इस
विज्ञप्ति का पालन 1834 ईसवी में ही शुरू हेाता था। इसके बाद बंगाल में बांग्ला
भाषा और बांग्ला लिपी प्रचलित हुई। संयुक्त प्रांत उत्तर प्रदेश बिहार व मध्य
प्रांत (मध्य प्रदेश में) भाषा के रूप में हिंदी का प्रचलन हुआ लेकिन लिपी के
मामले में नागरी लिपी के स्थान पर उर्दु लिपी का प्रचार किया जाने लगा। इसका मुख्य
कारण अदालती अमलों की क्रपा तो थी ही। साथ ही मुसलमानों ने धार्मिक आधार पर की
जानते उर्दु का समर्थन किया और हिंदी को कचहरी से नही चिठ्ठा से बाहर निकाल करने
का आंदोलन चालू किया।
1857 के विद्रोह के बाद हिदु-मुस्लमानों
के पारस्परिक विरोध में ही सरकार अपनी सुरक्षा समझने लगी। अत: भाषा के क्षेत्र
में उनकी नीति भेष पूर्ण हो गई। अंग्रेज विद्यवानों के दो दल हो गए। दोनों ओर से
पक्ष-विपक्ष में अनेक तर्क-वितर्क पेश किए गए। तीन सहाब उर्दु ग्राउद साबह हिंदी
का समर्थन करने वालों में प्रमुख थे। नागरी लिपी और हिंदी तथा फारसी लिपी और उर्दु
का अभिन्य संबंध हो गया था। अत: दोनों से दोनों के पक्ष विपक्ष में काफी विवाद
हुआ।
फारसी
लिपी के स्थान पर नागरी लिपी
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