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यह आवश्यक
है कि किसी व्यक्ति पर कोई गंभीर आरोप लगाया गया है। ऐसा व्यक्ति इस आशंका के
आधार पर कि उसे किसी समय भी गिरफतार किया जा सकता है, अग्रिम जमानत के लिए आवेदन
कर सकता है। अग्रिम जमानत अनुदत्त करते समय न्यायालय को यह अधिकार होता है कि वह
उसकी ईप्सा करने वाले व्यक्ति पर कतिपय शर्ते अधिरोपित करे। जो व्यक्ति जमानत
के लिए आवेदन प्रस्तुत करता है, उसे यह अवश्य ही दर्शित करना पढ़ेगा कि उसके पास
यह विश्वास करने का कारण है कि उसे अजामतीय अपराध के लिए गिरफतार किया जा सकता
है, उसका ऐसा विश्वास भय पर आधारित ना होकर युक्तियुक्त कारणों पर आधारित होना चाहिए।
अग्रिम जमानत के आवेदन पर विचार करते समय
न्यायालय को यह बात सदैव ध्यान में रखनी चाहिए कि पुलिस की अभिरक्षा में व्यक्ति
के अधिक उपयोगी सूचना और सामाज्ञ्री प्राप्त की जा सकती है और न्यायालय को यह भी
उपधारणा करनी होगी कि पुलिस अधिकारी अपनी अभिरक्षा में रखे गए व्यक्ति से जिम्मेदारी
के साथ और बिना किसी तीसरी श्रेणी का बर्ताव किए पूछताछ का कार्य संपादित करे। न्यायालय
का दृष्टिकोण उस समय जबकि वह धारा 438 के अंतर्गत आवेदन पत्र से संव्यवहार कर रहा
हो, वैसा नहीं हेाना चाहिए। जैसा की वह उस समय अपनाता है, जबकि वह गिरफतारी के पश्चात
ही नियमित जमानत की अर्जियों के निस्तारण में अपनाता है। सीबीआई यदि यह आशंका व्यक्त
करती है कि धारा 438 के अंतर्गत आवेदक व्यापक रूप से प्रभावशाली व्यक्ति है और
इस अन्य पद पर वह विद्यमान है उसका प्रभाव वह उस पर डाल सकता है जिससे इसके
पूछताछ में बाधा पढ़ सकती है। तो गिरफ्तारी के पूर्व जमानत मंजूर करते समय इस तरह
के अभिकथन पर ध्यान देना चाहिए। आवेदक को गिरफ्तार ना किया जाये, ऐसा कोई निबंध
आदेश ना पारित किया जाये जिससे आवेदक को जमानत पर रिहाय कर दिया जाए। यदि वह किसी
भी समय अपराध के लिए गिरफ्तार किया जाता है, जमानत की अर्जी केवल उस व्यक्ति
द्वारा की जा सकती है जो गिरफतार नहीं किया गया है और उस अर्जी पर गिरफ्तारी के
पूर्व एक प्रकम पर इस आशय का निर्देश जारी किया जा सकता है।
कठोर, दुर्भर और ऐसी अतिशय शर्तो का
अधिरोपण नहीं करना चाहिए, जिनसे अग्रिम जमानत के वास्तविक उद्देश्य को पराभव का
सामना करना पड़े। यदि अभियुक्त को ऐसी किसी शर्त के अधीन रखा जाता है, जो उसके
भिन्न है, जो धारा 438 में उल्लिखित है तो वह न्यायालय की अधिकारिता के परे
होगा। अग्रिम नमानत मंजूर करते समय न्यायालय द्वारा जिन शर्तो का अधिरोपण किया जा
सकता है वे उपर्युक्त धारा 438 व 435 में प्रवृत्त है।
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