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अपने स्कूल
के तमाम वर्षो में वह किनारे खड़े होकर अपने दोस्तो को उछलते कुदंते मुड़ते,
झुकते भागते देखती थी। लेकिन तब वह उस समूह का हिस्सा ही, जिसे मोटा कहा जा सकता
है। यह 31 साल पुरानी बात है कि अब अंजली सरायोगी 43 साल की हो गई है। उनकी अठारह
साल की एक संतान है और वे कोलकाता में अपना डायग्नोस्टिक क्लीनिक चलाती है।
पिछले महीने में वे देश की एक मात्र महिला बन गई है, जिनन्होंने दक्षिण अफ्रीका
की कॉमरेड मैराथन के 92 संस्करण में मेडल जीता है।
यह दुनिया की सबसे पुरानी अल्ट्रा
मेराथन है। यह रेस डरबन और पीटर मेरेटस
वर्ग के बीच हुई। यह वहीं जगह जहां से गांधी जी को 7 जून 1893 से ट्रेन से उतार दिया गया था। अंजली ने 87 किलोमीटर की
रेस 8 घंटे में पूरी की। अंतिम पढ़ाव पर पहुचने बाली 3546 महिला प्रतिभागियों में
उनकी 84वीं रेंक रहीं हालांकि रेस में बिलरोमन मेडल जीतने के लिए कुल 17 हजार लोग
शामिल हुए थे। यह मेडल वर्ष 2000 में पहली कामरेड मेराथन जीतने के लिए उनके सम्मान
में शुरू किया गया था। दीपावली पर्व आज हम जिस रूप में मनाते है वो सदियों की
सांस्कृतिक यात्रा का परिणाम है।
यह उत्सव चाणक्य के दौर के कौमुदी महोत्सव का
उत्राधिकारी है तो लक्ष्मी आराधना के रूप में प्राचीन तांत्रिक पूजा की झलक भी इसमें है।
जानते है कब कौन सी परमप्रा इस पर्व में जुडती गई और पहली बार कब प्रमाणिक
ऐतिहासिक किताबों में इनका उल्लेख मिलता है। यह जानकारी इंटरनेट पर कहीं नहीं है
इसे दस किताबों का अध्ययन करके तैयार किया गया है। चंद्रगुप्त तथा चाणक्य के
समय पाटली पुत्र में कौमुदी नामक महोत्सव बड़ी पैमाने पर मनाया जाता था। इस दौरान
जलाशयों के किनारे और नौकायों में दीपक जलाये जाते थे।
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