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समय 10
मिनिट
इस संबंध
में कोई विवाद नहीं है कि प्रत्यर्थी उक्त अवधि के दौरान अस्वस्थ था यद्यपि
जारी किए गए प्रमाण पत्र की तारीख में कुछ त्रुटिया हो सकती है तथापि अपीलार्थी
द्वारा इस बात का खंडन नहीं किया गया है कि प्रत्यर्थी अवसादक मनोविकृति और किसी
गंभीर रोग से पीडि़त था। इस संबंध में भी विवाद नहीं किया गया है कि प्रत्यर्थी
को उसकी नियुक्ति की तारीख से अब तक अपीलार्थी बोर्ड की सेवा के दौरान इससे पूर्व
कोई दंड नहीं दिया गया था अत: इन परिस्थितियों में आपराधिकृत अनुपस्थिति के आरोप
के लिए सेवा से हटाने का दंड अधिरोपित करना अत्यंत कठोर और दण्डनीय होगा।
उक्त मामले में ऐसा दण्ड निरंतर अवचार
के संचई प्रभाव के रूप में या ऐसे अन्य कारणो से दिया जाता है जहां आरोप अत्यंत
गंभीर होते है और जहां यदि भ्रष्टाचार का आरोप साबित हो जाता है। मामले में प्रत्यर्थी
के विरोध ऐसा कोई अभिकथन नहीं है। इसके अलावा विद्यवान एकल न्यायाधीश ने पदुच्यति
के आदेश को अपास्थ्य करते समय प्रत्यर्थी
को पिछली मजदूरी देने से इंकार करके सही किया है क्योंकि प्रत्यर्थी सुसंगत अवधि
के दौरान कर्तव्य का निर्वहन करने में असफल रहा है।
यह उललेखनीय है कि विलंब न्यायालय के
मार्ग में अड़चन है। कतिपय परिस्थितियों में विलंब और उल्लेख घातक नहीं हो सकता
है। किंतु अधिकांश परिस्थितियों में असाधारण विलंब से उस मुकदमेंबाज कें लिए जो न्यायालय
में समावेदन करता है, घोर संकट पैदा होगा। विलंब से मुकदमेबाजी की ओर निष्क्रियता
और अर्कमण्डयता प्रतिबंधित होती है। ऐसा मुकदमेंबाज जो आधारभूत मानको को भूल गया
अर्थात टालमटोल करने वाला समय का सबसे बड़ा लुटेरा है।
विधि किसी व्यक्ति को अमर पक्षी की तरह सोने और जागने की अनुज्ञा नहीं देती। विलंब
से खतरा पैदा होता है और मुकदमेबाजी को क्षति कारित होती है। वर्तमान मामले में
यद्यपि न्यायालय को समावेदन करने में चार वर्ष का विलंब हुआ है तथापि रिट न्यायालय ने इस ओर ध्यान
नहीं दिया। न्यायालय का यह कर्तव्य है कि वह इस बात की समवीक्षा करे कि क्या
इतने बड़े विलंब की किसी न्यायोचित के बिना अनदेखी की जानी चाहिए। इसके अलावा
प्रस्तुत मामले में ऐसी विलंबित परिस्थिति और अधिक महत्वपूर्ण हो जाती है।
यह निगरानी इस आधार पर प्रस्तुत की गई
कि विद्यवान विचारण न्यायालय का आदेश कानूनन व विधिविरूद्ध व त्रुटिपूर्ण है।
विचारण न्यायालय ने इस महत्वपूर्ण तथ्य पर विचार नहीं किया कि आवेदिकाख्
अनावेदक की वैध पत्नि है जिसके भरण-पोषण का विधिक व नैतिक उत्रदायित्व अनावेदक
का ही है। विचारण न्यायालय ने इस बात पर भी विचार नहीं किया।
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