Monday 12 March 2018

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प्रतिदावा को मात्र धन के बाद में स्‍वीकार किया जा सकता है, कब्‍जा एवं स्‍वामित्‍व के बाद में नहीं। इसी सिदांत को जसंबत सिंह बनाम दर्शन कुमार एआईआर 1983 पटना के वाद में विरोधी दृष्टिकोण और अपनाया और  अभिधारित किया कि प्रतिदावा धन-संबंधी वाद तक ही सीमित नहीं है मुजरा और प्रतिदावा मे भिन्‍यता है। मुजरा वादी के विरूद्ध प्रतिदावा है किंतु प्रतिवादी जब प्रतिदावा पेश करता है तो वह प्रतिवाद होता है।

        यही दृष्टिकोण पंजाब एवं हरियाण उच्‍च न्‍यायालय ने सुमन कुमार बनाम सेंट थॉमस स्‍कूल एआईआर 1988 पंजाब एवं हरियाणा 38 के वाद में अपनाया। अभिनिर्णीत किया कि प्रतिवादी किसी भी प्रकार के वाद में प्रतिदावा प्रस्‍तुत कर सकता है। आवश्‍यक नहीं कि ऐसा वाद धन संबंधी हो।

        किंतु उड़ीसा उच्‍च न्‍यायालय ने इस मत का समर्थन किया। मेसर्स रामसेवक बनाम सरफुद्दीन एआईआर 1991, उड्रीसा 51 के वाद में अभिधारित किया कि प्रतिदावा उन वादों में संभव है जो धन-संबंधी नहीं है।

        बंबई उच्‍च न्‍यायालय ने एमएफ कटारिया बनाम एचएफ कटारिया एआईआर 1994 बाम्‍बे 198 के वाद में इस मत को स्‍वीकार किया कि प्रतिदावा आदेश 8 नियम 6-क के अंतर्गत्‍ धन संबंधी वाद तक ही सीमित नहीं है।
        प्रतिवाद पत्र में यह अभिवाक् नहीं किया गया था कि प्रतिवादी बीमार यूनिट था और वादी कोई धनराशि वसूल नहीं कर सकता था। संसोधना प्रार्थना पत्र द्वारा यह अभिवाकृ किया जाना था कि प्रतिवादी बीमारा यूनिट था और बीमारी के दौरान, के समय का ब्‍याज नहीं लगाया जा सकता।

        यह ऐसा अभिवाक् नहीं है जिससे वादी के वाद पर कोई प्रभाव डाले। ना तो साक्ष्‍य ही पेश किए गए थे ना ही निश्चित किए गये थे। प्रतिवादी बीमार यूनिट था अथवा नहीं तभी अनिश्चित किया जा सकता है जब ऐसा अभिवाक् करने की अनुमति प्रदान कर दी जाती है। इस स्‍तर पर यदि  अभिवाक् करने की अनुमति प्रदान कर दी जाती है तो वादी के वाद पर कूप्रभाव नहीं पढ़ेगा। (मेसर्स जे एस टिन्‍स) फेब्रीकेशन बनाम यूको बैंक।


 आदेश 8 नियम 1 का उपनियम 1, न्‍यायालय को शक्ति प्रदान करता है कि वह प्रतिवादी को जबाव दावा दाखिल करने के लिए न्‍यायोचित समय प्रदान करे। प्रत्‍येक मामले के तथ्‍यों एवं परिस्थितियों कें आधार पर न्‍यायालय जबाव दावा दायर करने का समय प्रदान करता है, किंतु प्रतिवादी अधिकार के रूप में जबाव दावा दाखिल करने के कई अवसर की मांग नहीं कर सकता।

        अस्‍थाई निषेधाज्ञा आदेश पारित करने के पूर्व किसी भी समय न्‍यायालय प्रतिवादी से जबाव दावा दाखिल करने के हेतु कह सकता है। ऐसे मामले में वादी को अधिकार प्राप्‍त हो जाता है कि अस्‍थाई निषेधाज्ञा प्राप्‍त करने हेतु प्रति जबाव दावा प्रस्‍तुत करे। यह अधिकार उसे आदेश 8 नियम 9 के तहत प्राप्‍त होता है। यद्यपि आदेश 8 नियम 9 के अंतर्गत्‍ प्रार्थना नहीं की जा सकती किंतु धारा 151 कें अंतर्गत प्राप्‍त शक्ति का प्रयोग करते हुए प्रार्थना पत्र न्‍यायालय द्वारा स्‍वीकार किया जा सकता है।
       

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