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भारत में
जेल सुधार की ओर सरकार का ध्यान सन 1836 में गया जब प्रशासन के अध्ययन हेतु अखिल भारतीय जेल समिति को नियुक्त किया गया।
इस समिति ने वंदियों को सार्वजनिक निर्माण कार्यो में लगाने का विरोध किया। 1868
ईसवी में द्धितीय अखिल भारतीय जेल समिति नियुक्त की गई। इसके बाद 1877 के कारागार
सम्मेलन में यह सिफारिश की गई कि वंदियों को सार्वजनिक निर्माण कार्यो जैसे सड़क
बनाना, नहर खोदना आदि में मजदूर के तौर पर लगाया जाना चाहिए।
1920 में अखिल भारतीय
जले समिति को नियुक्त किया गया जिसने अपराधियों कें साथ मानवीय व्यवहार सिफारिश
की। इस कमेटी के अध्यक्ष सर एलेक्जेंडर बाड्रियू ने यह उल्लेख किया कि अपराधी
के जीवन में सबसे नाजुक क्षण जेल जाना नहीं है अपितु वह क्षण होता है जब वह जेल से
छूट उस समाज में लौटता है जहॉ वह पहले ही अपने चरित्र और सम्मान को खो चुका हो।
इस दिशा में महत्वपूर्ण कदम स्वाधीनता
के बाद उठाये गये यह अनुभव किया गया कि अपराधियों को बंद जेलों में रखने से उनके
सुधार और पुर्नवास में मदद नहीं मिलती। अत: दो बातों की ओर विशेष ध्यान दिया गया। अपराधियों को स्वतंत्र
समाज से मिलने-जुलने के अधिक से अधिक अवसर सुलभ हो। कैदियों कें लिए दीवारों से
भीतरी और दीवारों और दीवारों से बाहरी दुनिया के बीच की दूरी कम से कम हो। इस
उद्देश्य की पूर्ति के लिए खुले शिविरों की योजना को अपनाया गया, यह योजना
अपराधियों के सुधार की प्राबेशन और पेरोल व्यवस्था का ही एक विस्तृत रूप है।
इस दिशा में कार्य करने की दृष्टि से उत्तर
प्रदेश भारत का प्रथम प्रदेश है जहां सन 1949 में खुले शिविर के स्थापना की गई।
आदर्श बदीग्रह लखनऊ के साथ एक खुले शिविर को संलग्न किया गया। इसका अनुकरण
आंध्रपद्रेश द्वारा किया गया जहां सन 1954 में दोष सिद्धों कें लिए एक एग्रीकल्चरण
कॉलोनी आरंभ की गई। इसके एक वर्ष बाद महाराष्ट्र द्वारा यर्वदा में एक खुले
बंदीग्रह को आरंभ किया गया। इन राज्यों में खुले जेलों की सफलता ने अन्य राज्यों
को भी इस दिशा में प्रोत्साहित किया।
अत: राज्यों में भी खुले शिविरों की स्थापना
हुई और बंदियों को कृषि फार्मो औद्योगिक प्रतिष्ठानों और निर्माण कार्यो में
लगाया गया। अपराधों की रोकथाम के लिए दण्ड तथा सुधार ऐसे अभिकरण है जो आधुनिक युग
में प्रचलित है। अपराधियों को अपराध की पुर्नरावृत्ति से विरत करने के लिए यह आवश्यक
है कि उनका सुधार हो। आधुनिक अपराध शास्तियों का मत है कि जिस प्रकार शारीरिक
विकृतियेां से शरीर रूण हो जाता है
उसी प्रकार अपराध भी सामाजिक व्याधि है जो
सामाजिक संबधो की व्यवस्था को प्रभावित करता है। अपराधी भी एक प्रकार का रोगी है
जिसे र्प्यापत उपचार तथा सुधार द्वारा समाज में पुर्नवासित किया जा सकता है इस
निमित्य, विगत शताब्दी से अनेक सुधारात्मक संस्थाओं का विकास हुआ है जिनका
मुख्य उद्देश्य अपराधी को अपराधिकता से विमुख करना है।
भारत वर्ष में सर्वप्रथम मद्रास राज्य
में सन 1926 में वोस्टल स्कूल की स्थापना हुई उसके पश्चात बंगाल बंबई तथा
मैसूर व मध्यप्रदेश में एक एक वोस्टल स्कूल स्थापित
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