Tuesday, 6 March 2018

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इतिहास बताता है कि भारत अनेक प्रकार की प्राकृतिक आपदाओं का शिकार होता रहा है। चक्रवात, बाढ, भूकंप और सूखा इनमें से प्रमुख आपदाये है। देश का 60 प्रतिशत भूभाग विभिन्‍य तीव्रताओं के भूखंडों की संभावना वाला क्षेत्र है, जबकि चार करोड़ हेक्‍टेयर से अधिक क्षेत्र में बाढ़ के संभावना बनी रहती है। तथा 68 प्रतिशत क्षेत्र में सूखे की आशंका मडराती रहती है। इससे ना केवल हजारों जीवन की क्षति होती है बल्कि भारी मात्रा में निजी, सामूदायिक और सार्वजनिक सम्‍पत्त्यिों को क्षति पहुचंती है। यद्यपि वैज्ञानिक और भौतिक रूप से देश में भारी प्रगति हुई है लेकिन आपदाओं के कारण जनधन की क्षति में कमी होती नहीं दिखाई देती।
भारत सरकार ने अपने आपदा प्रबंधन दृष्टिकोण में आमूल परिवर्तन किया है। यह नीति अब केवल राहत पहुंचाने तक सीमि नहीं है, बल्कि आपदाओं से निपटने की तैयारियां उनके शासन और बचाव और पर ज्‍यादा जोर दिया जा रहा है। दष्टिकोण में यह परिवर्तन इन धाराओं के फलस्‍वरूप आया है कि विकास प्रक्रिया में जब तक आपदा समन को उचित स्‍थान नहीं दिया जाता, विकास की प्रक्रिया लंबी समय तक जारी नहीं रखी जा सकती। सरकार के नये दृष्टिकोण का एक महत्‍वपूर्ण पहलू यह भी है कि आपदा समन के उपाय विकास से संबंधित सभी क्षेत्रों में अपनाए जाने

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