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विविधता
में एकता ही भारत की पहचान है। बार बार नये राज्यों के गठन से देश की एकरूपता एवं अखण्डता पर नकरात्मक प्रभाव पड़ता है। आवश्यकता
पड़ने पर प्रशासनिक सुविधा के लिए राज्यों
में जिलों की संख्या बढ़ाना विकास की दृष्टि से ज्यादा फायदेमंद होगा।
इससे
विकास को गति मिलेगी। ज्यादातर स्थितियों में देखा जाता है कि नेतागण अपना उल्लू
सीधा करने के लिए या सियासी लाभ के लिए ही जनता को अलग अलग राज्य की मांग हेतु
उकसाते है। प्राय: नये राज्यो के गठन की मांग के वक्त विकास का हवाला दिया जाता
है।
किंतु, राज्यों के पुर्नगठन से यदि
विकास को गति मिलती तो इसका उदाहरण हमें अब तक कई बार मिल चुका होता। अत:
यदि हमें देश का विकास करना है और इसकी अखण्डता को अछुन्न बनाये रखना है, तो
हमें नये राज्यों का नहीं बल्कि विकास की नीतियों का पुर्नगठन करना होगा। इस तरह
स्पष्ट है कि भाषा, क्षेत्र या विकास का
हवाला देकर नये राज्यों की मांग सर्वधा अनुचित है।
जब जब क्षेत्रीयता एवं
प्रांतीयता की भावना राष्ट्रीय हितों से संघर्ष करती है तब तब देश की एकता एवं
अखण्डता के लिए खतरा उत्पन्न हो जाया करता है। पिछले एक दशक के दौरान इन्ही सब
कारणों से एशिया के अनेक देशों में विखण्डन हो चुका है।
https://hindidictation.blogspot.in/2018/03/post-505.html
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