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मुझे प्राय: पूछा
जाता है कि मैा क्यों नये युवा कलाकारों की प्रदर्शिनियों का उद्घाटन करता हूँ।
या पहली बार लिखने वाले ऐसे लेखको की किताब का विमोचन करता हूं जिन्होंने अभी खुद
को साबित नहीं किया है क्योकि आप तो बहुत बड़े कलाकारों कें प्रदशनों पर अपनी
मुहर लगा चुके है। आपने कुछ बहुत ही आला दर्जे के लेखकों का किताबों की दुनिया में
परिचय कराया है। आप क्यो जानबूझकर नये लोगों के साथ जोखिम लेगे? ऐसे मेरे आलोचक
कहते है। आपके सराहे काम को खारिज करने वाले आप पर गुमराह करने का आरोप लगाए तो क्या
होगा?
मुझे लगता है कि वे अपनी जगह सही है वे सब कुछ मौकों पर में गुमराह कर भी
सकता हूं। कुछ किताबे संभव है कि वाकई औसत दर्जे की हो। कुछ कलाकृतिया एकदम खराब
हो किंतु मिलाकर मैं बहुत बार सही साबित हुआ हूं। खासतौर पर जब फिल्म में नई प्रतिभा
को मौका देने का मामला हो। अंग्रेजो के इतने लंबे शासन के नतीजे में हम वे हो गए है, जो नेपोलियन ने ब्रिटेन के लिए
आलोचात्नात्मक ढ़ंग से कहा था। दुकानदारों का राष्ट्र हम जोखिम लेने को खारिज
कर देते है और मैं ही ऐसा नहीं कह रहा हूं।
टाईम्स आफ इंडिया ने एक सर्वे में पता
लगाया कि भारत ऐसा देश है, जहां दुकानों का घनत्व दुनिया मे सबसे ज्यादा है। हर
एक हजार लोगों पर ग्यारह खर्ची दुकाने। अमेरिका या सिंगापुर ती तुलना में तीन
गुना। ब्रिटेन की तुलना में दो गुना। हम जोखिम लेने से बचते है। मामला स्टॉक और
शेयर का हो तो यह रवैया एकदम ठीक है। जैसा कि हम सब जानते है कि ना जाने कौन से
कारण से और मुझे लगता है पूरी तरह पूर्ण कारण से,ज्यादातर लोग तब शेयर खरीदते है
जब उनकी कीमत ज्यादा होती है। और बढ़ती रहती है। और जब वे सस्ते हो जाते है तो
उन्हें डम्प कर देते है।
भीड़ का अनुसरण करने की प्रवित्ति, अंजाने प्रदेश में
जाने की इच्छा से अधिक बलवती होती है। दुर्भाग्य से यही प्रवित्ति हमारा परिचय
है और इसी कारण हम नई प्रतिभा खोजने में हमेशा सुस्त होते है। खासतौर पर खेल जैसे
क्षेत्र में सबकुछ इस बात पर निर्भर होता है कि आप कितनी जल्दी किसी भी प्रतिभा
देखकर उसका विकास कर पाते है।
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