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लीला सेमसन
एंड कंपनी द्वारा सेंसर बोर्ड के विभिन्य पदों से स्तीफा दे दिए जाने के बाद अब
केन्द्र सरकार ने फिल्म निर्माता पहलाद नेहलानी ने बोर्ड का नया अध्यक्ष बनाया
है। साथ ही 9 अन्य सदस्यों की नियुक्ति कर बोर्ड का पुर्नगठन भी कर दिया गया है।
लेकिन जैसा कि जाहिर है, इस मामले में कहानी केवल किसी फिल्कम को मान्यता देने,
ना देने के मानदंडों तक ही सीमित नहीं थी। लीला सेमसन की नियुक्ति यूपीए सरकार
द्वारा की गई थी और उन्हें सोनिया गांधी की करीबी माना जाता था।
गतवर्ष जब मई
में नरेन्द्र मोदी जी के नेतृत्व में एनडीए की सरकार बनी थी तभी यह तय हो गया था
कि लीला सेमसन को देर सबेर सेंसर बोर्ड से अपना बोरिया बिस्तर बांधना होगा। नई
सरकार की अपनी गहमागमियों और काम के दबाव के चलते ऐसा होने में भले ही खासा समय लग
गया, लेकिन इस दौरान सरकार और ‘सेंसर के रिश्तों में किसी तरह के कोई आसार भी
नहीं दिखे। वास्तव में लीला सेमसन एंड कंपनी तो पूर्व सरकार के प्रति ही अपनी वफादारी
जताने के लिए तत्पर नजर आई और उसने कुछ इस अंदाज में सामूहिक स्तीफे दिए मानों
इसके बाद उन्हे कल्चरल हल्कों में शहीद का दर्जा दिया जाने लगा।
विवाद का तात्कालिक
कारण बनी डेरा सच्चा सौदा के प्रमुख संत गुरमीत राम रहीम की फिलम मेंसेंजर आफ गॉड
राम रहीम सिंह के अनुयाईयों की बड़ी तादाद है। संत गुरमीत ने उनपर ही केन्द्रित इस
फिलम की रिलिज के लिए केन्द्रीय फिलम प्रमाणन बोर्ड में अर्जी दी थी। लीला सेमसन
एंड कंपनी इस बात से भलीभांति परिचित थी कि हाल ही में हरियाणा में हुए विधानसभा
चुनावों में डेरा सच्चा सौदा ने भाजपा का समर्थन किया था। जब सेंसर बोर्ड द्वारा
फिल्म को पास करने से इंकार करने के बाद उसे फिलम प्रमाणन अपीलीय ट्रिब्यूनल ने
हरी झंडी दे दी, तब तो इस पर बखेड़ा खड़ा होना ही था। और ऐसा ही हुआ भी। दूसरी तरफ
फिल्म के विरोध में पंजाब के अनेक कस्बों में विरोध प्रदर्शन होने लगे, जहां
डेरा सच्चा सौदा को पंसद नहीं किया जाता।
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