Thursday, 8 March 2018

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समय 9 मिनिट 25 सेकेंड

भगत सिंह से नीचे की अदालत में पूछा गया था कि क्रांति से उन लोगों का क्‍या मतलब है? इस प्रश्‍न के उत्‍तर में उन्‍होंने कहा था कि क्रांति के लिए खूनी लड़ाईया अनिवार्य नहीं है और ना ही उसमें व्‍यक्तित्‍व प्रतिहिंसा के लिए कोई स्‍थान है। वह बम और पिस्‍तौल का संप्रदाय नहीं है। क्रांति से हमारा अभिप्राय है अन्‍याय पर आधारित मौजूदा समाज-व्‍यवस्‍था में आमूल परिवर्तन। समाज का प्रमुख अंग होते हुए ही आज मजदूरों को उनके प्राथमिक अधिकार से वंचित रखा जा रहा है और उनकी गाढ़ी कमाई का सारा धन शोषक पूंजीपति हड़प जाते है। 


दूसरों के अन्‍यदाता किसान आज अपने परिवार सहित दाने-दाने के लिए मोहजाज है दुनियाभर के बाजारों को कपड़ा मुहैया कराने वाला बुनकर अपने तथा अपने बच्‍चों के तन ढकने भर को भी कपड़ा नहीं पा रहा है। सुंदर महलों का निर्माण करने वाले राजगीर, लोहार तथा बढ़ई स्‍वयं गंदे पाड़ो में रहकर ही अपनी जीवन लीला समाप्‍त कर जाते है। इसके विपरीत समाज के जोक शोषक पूंजीपति जराजरा सी बातों के लिए लाखों का बारा-न्‍यारा कर देते है।

यह भयानक असमानता और जबरदस्‍ती लादा गया भेदभाव दुनिया को एक बहुत बड़ी उठल पुथल की ओर लिए जा रहा है, यह स्थिति अधिक दिनों तक कायम नहीं रह सकती। स्‍पष्‍ट है कि आज का धनिक समाज एक भयानक ज्‍वाला मुखी के मुख पर बैठकर रंगरेलिया मना रहा है और शोषकों कें मासून बच्‍चे तथा करोड़ो शोषित लोग एक भयानक खड् की कगार पर चल रहे है। महराजा विक्रमादित्‍य अपनी वीरता और न्‍यायप्रियता के लिए प्रसिद्ध है। उनके दरवार में 9 रत्‍न थे। उनमें एक थे कालीदास 


एक बार महाकवि कालीदास राजा विक्रमादित्‍य के साथ बैठे हुए थे। गर्मियों कें दिन थे। राजा और महाकवि कालिदास गर्मी से बेहद परेशान थे दोनों के शरीर पसीनें से लतपथ थे। प्‍यास के मारे बार बार कंठ सूखा जा रहा था। दोनों के पास मिट्टी की एक एक सुराही रखी हुई थी । प्‍यास बुझाने के लिए थोड़ी-थोड़ी देर में उन्‍हें पानी लेना पड़ रहा था। राजा विक्रमादित्‍य बहुत ही सुदंर व्‍यक्ति थे। जबकि कालीदास उतने सुदंर नहीं थे। विक्रमादित्‍य का ध्‍यान महाकवि के चेहरे की ओर गया हो चुटकी लेने के लिए बोल पड़े महाकवि इसमें संदेह नहीं है कि आप अत्‍यंत विद्यान

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