माननीय
अध्यक्ष जी मैं इस बजट का समर्थन करता हूँ लेकिन समर्थन करते हुए एक दो बाते कहना
उचित समझता हूं इस संशोधन के जरिए चाय के बागानों में काम करने वाले मजदूरों कें हित संबंधी विषयों
पर चर्चा की गई है। उनको हर प्रकार की सुविधाएं दिए जाने की बात का तो कोई भी व्यक्ति
विरोध नहीं कर सकता है। सब लोग समर्थन ही करेंगे। यह अच्छा होता कि जितने बागान
है यदि सरकार उन्हे अपने कब्जे में कर ले तो इससे मजदूरों का ज्यादा भला हो
सकता था लेकिन अभी तक इतने साल बीत जाने के बाद भी ऐसा कुछ होता हुआ नहीं दिख रहा
है। इस विषय पर चर्चा करते हुए मैं दो बाते और कहना चाहता हूं जो मुझे अकसर चिंतित
करती है। एवं मैने उनपर एक्राग मन से विचार भ्ज्ञी किया है। मैंने स्वयं देखा है
कि अभी अगस्त माह में रेल्वे कर्मचारी संगठन की बैठक हुई थी उसकी रेली में बहुत
बड़ी संख्या में बागानों के मजदूर भी आए थे वे झंडे लेकर आए थे उनमें महिलांए
नौजवान एवं बच्चे सभी शामिल थे उनकी शिकायत थी कि हम लोगों में से बहुत से लोग
हिदीं भाषी क्षेत्रों कें है लेकिन हमारे क्षेत्र के इस फूलों में हिंदी पढ़ने
की कोई व्यवस्था नहीं है। चाय बागानों
कें मालिकों ने इसकी कतई व्यवस्था नहीं की है जिसके कारण बहुत कठिनाई होती है।
सरकार का नियम है कि यदि काफी संख्या में
ऐसे लोग हो और जिस भाषा को वे लोग जानते है उसी भाषा में उनहें शिक्षा
मिलनी चाहिए। यदि यह बात सही है तो उनक बच्चों को अनपढ़ रखने से क्या लाभ होगा जो भाषा वे नहीं जानते उसमें
पढ़ना उनके लिए संभंव नहीं होगा। इसलिए आप देखें कि इस तरह का काम करने वाले
मजदूरों की शिक्षा उस भाषा में होनी चाहिए
जिसे वह अच्छी तरह से जानते हो। चाहे वह हिंदी हो तमिल हो या कोई और भाषा मजदूरो
के कल्याण के इस बजट का संबंध है और यदि मजूदर शिक्षित नहीं होगा तो कल्याण की
बात भी नहीं समझेगा इसलिए उनकी इस शिकायत को दूर करे ताकि उनमें व्यापक संतोष दूर
हो सके। अब दूसरी बात दुर्घटना के विषय ही है। दुर्घटनाए चाय के बागानों में बड़ी
मात्रा में होती रहती है जिससे मजदरों कें जीवन मरण पर बात बन आती है लेकिन उनके
लिए जो मुआबजा आदि उनको मिलना चाहिए वह उचित तरीके से उनको नहीं मिलता है मैं
निवेदन करना चाहता हूं कि आप से शीघ्र ही इस ओर ध्यान दे क्योंकि जहां पर इस तरह
की बात है जहां आप के कानून को नहीं माना जाता है वहां इस पर रोक लगाए। आप ऐसा
नहीं कह सकते क हमारे देश में बढ़े बढ़े लोग नियम कानून नहीं तोड़ते है जब सरकार
खुद अपने कानूनों को तोड़ती है तो मिल मालिकों कें बारे में कहना तो गलत ही है आप
जो कानून बना रहे है उनका पालन हो इस बात
को देखना राज्य एवं केन्द्र सरकार दोनों का काम है। उपाध्यक्ष महोदय मैं
आपके सामने एक बात और रखना चाहता हूं और वह यह है कि देश में बेकारी बढ़ती जा रही
है और इसे रोकने का कोई उपाय सरकार अभी तक नहीं कर पाई है। सरकार अपने दूसरे
कार्यो में ऐसी उलझी रहती है कि उसे इस ओर ध्यान देने का समय ही नहीं है। यदि वे
कार्य की समस्या की तरफ सरकार ने ध्यान नहीं दिया तो देश का जो बेरोजगार वर्ग है
वह क्रांति कर सकता है और अगर ऐसा हुआ तो सरकार को बड़ी परेशानी का सामना करना
पढ़ेगा अत: मेरा सुझाव है कि सरकार को जल्दी से जल्दी इस समस्या की ओर ध्यान
देना चाहिए यह बेकारी ऐसी नहीं है फूंक मारते ही दूर हो जायेगी इसके लिए सरकार को
योजनाबद्ध तरीके से काम करना पढ़ेगा। नये नये रोजगार के अवसर ढूढ़ने होगे। पढ़ाई
के ढ़ाचे में परिवर्तन करना पढ़ेगा तथा कुटीर उद्योगों के साथ साथ लघु उद्दयोंगों
की ओर भी बढ़ावा देना होगा। महोदय अब में इस देश में फैली अराजकता आवश्यक वस्तुओं
कें मूल्यों को बृद्धि के बारे में भी चाहता हूं मैं उन बातों को नहीं दोहराना
चाहता हूं जो मेरे दोस्तों ने इस सदन कही है एक बात मैं जरूर कहूंगा इस बात
हिंदुस्तान की चारो तरफ की परिस्थिति बढ़ी खराब है और इसमें किसी एक बात कि किसी
जिम्मेदारी नहीं है लोगों के पास सामान खरीदने के लिए पैसा नहीं है लोग भूखें मर
रहे है ऐसी हालात में आसामाजिक तथ्य उनके साथ मिल जाते है और दुकानों को लूटने की
कोशिश करते है इसी प्रकार दंगे फसाद हमारे देश में बढ़ रहे है इन सब का कारण मूल्यों
में बृद्धि से लगाया जा सकता है। लोगों में बेरोजगारी पहले से ही काफी है और उस पर
भी अगर उनहें आवश्यक वस्तुए सस्ते दामों पर ना मिल सके तो उनकी हालात और भी
खराब हो जाती है । एक बात बिलकुल साफ और सही है कि अगर सामान बाजार में होगा चाहे
वह चीनी हो गेहूं हो चावल हो या कुछ भी हो और लोगों के पास उसे खरीदने के लिए पैसा
नहीं है तो वे केवल लूटपाट ही करेगे। इसके अलावा चीजों के दाम इतने बढ़ चुके है कि
गरीबों कें लिए उन्हें खरीदना भी मुश्किल हो गया है। इस सब की जिम्मेदारी किस की
है। क्या उस गरीब की है या देश के बढ़े बढ़े राजनीतिज्ञ दलों की है। मेरे विचार
में इस सब की जिम्मेदारी केन्द्र सरकार की है। और इसके लिए मैं केन्द्र सरकार
को बता देना चाहता हूं कि जल्दी से जल्दी इसका कोई ना कोई इंतजाम किया जाये।
सभापित महोदय आज हमारे देश में जमाखोरों तथा सरकारी अफसरों में एक समझौता हो चुका
है। सरकार ठोक व्यापार को अपने हाथ में लेना चाहती है। परंतु जमाखोरों को इससे
बहुत नुकसान होगा और इसलिए वे सरकारी अफसरों से मिल गए है और इसलिए वे इस नीति को
विफल करना चाहते है। इन शब्दों के साथ मंत्री महोदय से निवेदन करना चाहता हूं कि
देश में जो गरीबी तथा भुखमरी का दौर चल रहा है इसको रोकने के लिए सरकार द्वारा कुछ
ना कुछ इंतजाम किया जाए।
Hindi Dictation For High Court, SSC, CRPF, Railways, LDC, Steno Exam With Matter
Friday, 27 April 2018
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